शूअरों का शूटआउट शुरू, मृत सूअरों के आंकलन को लेकर मीडिया से बनाई दूरी

शिवपुरी। हाईकोर्ट के आदेश के बाद शहर में शुरू किया गया सूअर शूट आउट अभियान कल से एक बार फिर प्रारंभ हो गया। लेकिन इस बार शूट आउट अभियान से मीडिया को दूर रखने का पूरा प्रयास हुआ। ठेकेदार ने कल रात 11 बजे पत्रकारों से कहा था कि कलेक्टर के न होने के कारण अभियान शुरू नहीं होगा। लेकिन इसके बाद सूअरों को मारने का काम शुरू कर दिया गया।

स्वास्थ्य अधिकारी अवधेश कुशवाह ने बताया कि पहले मृत सूअरों की सं या को लेकर मीडिया ने सवाल उठाए थे उसी कारण मीडिया से पर्देदारी की गई है। जबकि मीडिया ने सिर्फ ठेकेदार और नगरपालिका के विरोधाभास को स्पष्ट किया था। ठेकेदार नबाव सफात अली ने 10-12 दिन पहले एक रात में 1084 सूअर मारने का दावा किया था। जिसे नपा प्रशासन ने गलत बताया था। बीती रात ठेकेदार और नपा प्रशासन एक स्वर में 284 सूअर मारने की बात कह रहे हैं। 

प्राप्त जानकारी के अनुसार शहर में कल रात शूट आउट अभियान टीबी अस्पताल के पास से शुरू हुआ और इसके बाद ह माल मोहल्ला,गल्र्स स्कूल क्षेत्र, सब्जी मण्डी, विवेकानंद कॉलोनी, बाईपास चौराहा, ठकुरपुरा, मंशापूर्ण मंदिर, बड़े हनुमान मंदिर, शिवमंदिर टॉकीज के पास, कलार बाग, बाबू क्वार्टर, बैंक कॉलोनी, मीट मार्केट, माधव चौक चौराहा, शंकर कॉलोनी, डॉ. एमडी गुप्ता के सामने वाला पार्क आदि क्षेत्रों में शूटर नबाव सफात अली ने सूअरों को निशाना बनाया। अभियान के दौरान पुलिस बल और स्वास्थ्य अधिकारी अवधेश कुशवाह, नपा के उपयंत्री सुनील पाण्डे, आरडी शर्मा आदि भी थे। शूटर सफात अली अपने साथ 8 सूअर उठाने वाले लोगों को भी लेकर आया था। जिनका भुगतान नगरपालिका करेगी। शूट आउट अभियान सुबह 5 बजे तक चला। स्वास्थ्य अधिकारी अवधेश कुशवाह ने बताया कि मृत सूअरों की सं या 284 है तथा इतने ही कारतूस खर्च हुए हैं।

मृत सूअरों की गिनती पड़ रही भारी
शूट आउट अभियान के दौरान मारे गए सूअरों की सं या को लेकर विवाद खड़ा हो गया था। ठेकेदार का कहना है कि उसने तीन दिन में 2300 सूअरों को मारा था। गिनती के आंकड़े खुद उसके हैं, क्योंकि नगरपालिका के किसी भी कर्मचारी ने मृत सूअरों की गिनती कर उनकी पुष्टि नहीं की। सबसे अधिक विवाद 6 घंटे में एक ही रात्रि में 1084 सूअर मारने के दावे से उपजा था और इस दावे पर जब मीडिया ने सवाल उठाया और उसकी पुष्टि नपा प्रशासन ने की तो ठेकेदार की ओर से असहयोग और निगेटिव रिपोॢटंग की दलील दी गई।

सूअरों को मारने के ठेके  से ज्यादा सस्ता था पकडऩे का ठेका
शहर में सूअरों को शूट करने को लेकर अङ्क्षहसा की पैरवी करने वालों ने विरोध किया था और इन संगठनों ने मांग की थी कि शहर में सूअरों को मारने के स्थान पर सूअरों को पकड़कर शहर से बाहर किया जाए। लेकिन नपा ने तर्क दिया कि सूअरों को पकड़वाने की दर 850 रूपये है और शूट आउट करने की दर 250 रूपये है। जिससे नपा को नुकसान है।

सूअर पकडऩे के लिए  ठेकेदार डी बरूआ निगोवेशन के बाद 600 रूपये में सूअर पकडऩे के लिए राजी हो गए थे। इस दर में सभी प्रकार के खर्चे शामिल हैं। जिनमें सूअर पकडऩे से लेकर उन्हें ट्रकों के जरिए बाहर भेजने का खर्च भी शामिल है। इस राशि के अतिरिक्त नगरपालिका को एक पैसा भी खर्च करने की आवश्यकता नहीं थी। 

मृत सूअरों को जमीन में दफन करने के लिए गड्ढ़े खोदना तथा प्रदूषण फैलने की आशंका से भी नपा प्रशासन मुक्त रहता। लेकिन सूअरों को मारने के खर्च में  ठेकेदार और उसकी टीम का रहना खाना भी शामिल है। इसके अलावा मृत सूअरों को उठाने वाले मजदूरों को 500 रूपये की दर से प्रतिदिन नगरपालिका 4000 रूपये की राशि का भुगतान भी कर रही है।

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