कहानी - मां की ममता

वो कहते है न माँ शब्द अपने आप में परिपूर्ण है दुनिया में हम चाहे कितने भी रिश्ते से क्यू न बधे हुए है लेकिन माँ के हमारा जीवन अधुरा होता है हर रिश्ते को आप से कुछ पाने की आस रहता है लेकिन माँ का पुत्र के बीच एक ऐसा रिश्ता है जो एक माँ अपने अपने संतान को जीवनपर्यन्त सिर्फ देना है माँ भूखी सो सकती है लेकिन कभी भी अपने संतान को भूखे पेट सोना सपने में भी नही देखना चाहती है माँ तो हर वक्त अपने संतान के कल्याण की बात सोचती है की किस प्रकार उसकी संतान आगे बढे और जग में नाम करे।

एक दिन थॉमस अल्वा एडिसन | Thomas Alva Edison स्कूल से अपने घर आया और स्कूल से मिले हुए हुए पेपर को अपनी माँ से देते हुए बोला की “माँ मेरे शिक्षक ने मुझे यह पत्र दिया है और कहा है की इसे केवल अपनी माँ को ही देना, बताओ माँ आखिर इसमें ऐसा क्या लिखा है मुझे जानने की बड़ी उत्सुकता है”. तब पेपर को पढ़ते हुए माँ की आखे रुक गयी और तेज आवाज़ में पत्र पढ़ते हुए बोली “आपका बेटा बहुत ही प्रतिभाशाली है यह विद्यालय उसकी प्रतिभा के आगे बहुत छोटा है और उसे और बेहतर शिक्षा देने के लिए हमारे पास इतने काबिल शिक्षक नही है इसलिए आप उसे खुद पढाये या हमारे स्कूल से भी अच्छे स्कूल में पढने को भेजे”।

ये सब सुनने के बाद एडिसन अपने आप पर गर्व करने लगा और माँ के देखरेख में अपनी पढाई करने लगा. लेकिन एडिसन के माँ के मृत्यु के कई सालो बाद एडिसन तो एक महान वैज्ञानिक बन गया और एक दिन अपने कमरों की सफाई कर रहा था तो उसे अलमारी में रखा हुआ वह पत्र मिला जिसे उसने खोला और पढने लगा उसमे लिखा था की “आपका बेटा मानसिक रूप से बीमार है जिससे उसकी आगे की पढाई इस स्कूल में नही हो सकता है इसलिए उसे अब स्कूल से निकाला जा रहा है” इसे पढ़ते ही एडिसन एक भावुक हो गया और फिर अपनी डायरी में लिखा की “ थॉमस एडिसन तो एक मानसिक रूप से बीमार बच्चा था लेकिन उसकी माँ ने अपने बेटे को सदी का सबसे प्रतिभाशाली व्यक्ति बना दिया”।

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जीवन में हम क्या है कैसे है यह महत्वपूर्ण नही है लेकिन अगर अपने ऊपर माँ की ममता और प्यार हो तो मानसिक रूप से भी बीमार बच्चे की भविष्य और नियति को बदला जा सकता है और बच्चा माँ के आचल से दुनिया का सबसे महान व्यक्ति भी बन सकता है।

संसार का सुन्दरतम शब्द “माँ”
संसार का सबसे सुन्दरतम व प्यारा शब्द “माँ” है? सबसे प्यारा, सबसे सुन्दरतम शब्द संसार में है– “माँ” l इसमें इतनी मीठास भरी हुई है ! माँ का पूरा स्नेह, पूरा प्यार. ! माँ या पिता, यानि दोनों का प्यार l माँ और पिता का जो दर्जा है वो सचमुच देवताओं से भी कहीं बढ़कर है l हमने परमात्मा को नहीं देखा, हमने भगवान को नहीं देखा, लेकिन हमने अपने माता-पिता को साकार देखा है l हमारे माता-पिता इस संसार में हमारे लिए भगवान का ही रूप हैं l परमात्मा इस सृष्टि का पालन-पोषण करता है, यह हम जानते हैं l लेकिन वो किस ज़रिये से करता है, किस तरीके से करता है? शास्त्रों में माता-पिता के लिए कहा जाता है – “मातृ देवो: भव:”, माँ देवता के समान है l “पितृ देवो: भव:”, पिता देवता के समान है और “आचार्य देवो: भव:”, हमारे जो आचार्य हैं वो देवता के समान हैं l
रामचरितमानस में महिमा बखानी गयी :-श्री रामचरितमानस में एक सारगर्भित व प्रभावकारी चौपाई आती है-
“मात पिता गुरु प्रभ के बानी l बिनहि विचार कहिये शुभ जानी ll”

माता-पिता और गुरु की आज्ञा को हितकारी समझ कर उनकी पालना करनी चाहिए l ये सदैव हितकारी वचन बोलते हैं, आपकी भलाई के लिए बोलते हैं, इसलिए उनको देवता-तुल्य माना गया है l माता-पिता की परिक्रमा करने का भी विधान है l परिक्रमा आप समझते हैं? परिक्रमा का मतलब होता है – प्रदक्षिणा, पुण्य प्रदक्षिणा जिसे कहा जाता है l परिक्रमा हमारी हिंदू संस्कृति का बहुत महत्वपूर्ण अंग है l आपने अगर कभी देखा हो कि हम मंदिरों की पूजा करते हैं, यज्ञ की पूजा करते हैं और जिस स्थान पर किसी महापुरुष के चरण पड़े हैं यानी गंगा जैसे स्थान की हम परिक्रमा करते हैं l उस स्थान को पवित्र जानकर उसकी परिक्रमा की जाती है l अधिकतर मंदिरों के बाहर परिक्रमा का एक पथ बना होता है, रास्ता बना होता है, इसलिए इसे ”प्रदक्षिणा” कहा जाता है l माता-पिता की प्रदक्षिणा को बहुत उत्तम गिना जाता है l जब उनके चारों तरफ परिक्रमा की जाती है, उनके चरणों का स्पर्श भी किया जाता है l माता-पिता के चरणों का स्पर्श करने से या बड़े-बुजुर्गों के चरणों का स्पर्श करने से “बल, बुद्धि, विद्या और आयु” मिलते हैं l बल यानि पावर या शक्ति, बुद्धि यानि इन्टेलेक्ट विद्या मतलब पढ़ाई, आयु मतलब उम्र.