श्वेताम्बर जैन समाज के पर्यूषण पर्व शुरू

शिवपुरी। पर्यूषण पर्व और अन्य लौकिक पर्वों में अंतर यह है कि लौकिक पर्व जहां मौज मस्ती और आनंद के लिए होते हैं। वहीं पर्यूषण पर्व का उद्देश्य आत्मा का कल्याण है और इन 8 दिनों में व्रत, उपवास, सामायिक धर्म, ध्यान आदि आराधना की जाती है। ताकि आत्मा उन्नति के पथ पर अग्रसर हो सके। उक्त उद्गार पोषद भवन में राजस्थान से पधारीं जैन श्राविकाओं ने उपस्थित धर्मावलंबियों को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

वहीं जैन श्वेता बर मूर्तिपूजक समाज के पर्यूषण पर्व मद्रास से पधारे श्रावक भाईयों के सानिध्य में मनाये जा रहे हैं।

काफी वर्षों के बाद श्वेता बर जैन समाज में किसी भी साधू और साध्वी का चातुर्मास नहीं हुआ। इस कारण उत्साह कम देखने को मिल रहा है और धर्म, ध्यान तथा तपस्याएं भी कम हो रही हैं। पर्यूषण पर्व पर इसी कारण धर्मोपदेश देने के लिए श्वेता बर समाज मूर्तिपूजक संघ ने मद्रास से श्रावक भाईयों को बुलाया है। वहीं स्थानकवासी समाज में राजस्थान से पधारीं तीन श्राविकाएं धर्मोपदेश दे रही हैं। पर्यूषण पर्व के पहले दिन एक श्राविका ने अंतगढ़ सूत्र का वाचन किया।

वही दूसरी श्राविका ने बताया कि पर्यूषण पर्व लोकोत्तर पर्व है और इन 8 दिनों में धार्मिक आचरण कर आत्मा का कल्याण किया जाता है। उन्होंने कहा कि वैसे तो प्रत्येक इंसान को अपनी पूरी जिंदगी में धर्म का आचरण करना चाहिए। लेकिन सांसारिक आवश्यकताओं के कारण ऐसा संभव न हो तो चातुर्मास में चार माह धर्म के सुरक्षित रखने चाहिए। लेकिन ऐसा भी न हो पाए तो 8 दिन दुनियादारी से दूर रहकर धार्मिकता को अंगीकार कर आत्मा का कल्याण करना चाहिए। तीसरी श्राविका ने अपने प्रवचन में कहा कि हम सब का लक्ष्य शिवपुरी है और यह सौभाग्य की बात है कि आप शिवपुरी में रह रहे हैं और हमें भी यहां आने का सौभाग्य मिला है।

उन्होंने कहा कि जीवन का एक-एक क्षण हमें आत्मा के कल्याण में गुजारना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि अंतिम स्वांस में भी धार्मिक आचरण हो तो जीवन सफल हो जाता है। वहीं जैन श्वेता बर श्री संघ के पर्यूषण पर्व के प्रथम दिन मद्रास से पधारे श्रावक भाइयों द्वारा श्रावक के कर्तव्यों को समझाया। व्या यान में उन्होंने कहा कि आठ दिन चलने वाले इन विशेष दिनों में हमों कई बातों का ध्यान रखना है। जिसमें प्रमुख रूप से तीन दिन जिनमें अष्ठानिका के प्रवचन होते हैं उन नियमों का पालन करना चाहिए। बच्चों को इन आठों दिनों में मंदिर, जैन पाठशाला एवं धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करना चाहिए और अपने साथ लाकर उन्हें धर्म का ज्ञान देना चाहिए।