शिवपुरी। महाराष्ट्र समाज शिवपुरी ने गुरूवार को क्षत्रपति शिवाजी महाराज की जन्म जयंती हर्षोल्लास के साथ मनाई। इस मौके पर आयोजित विचार गोष्ठी में मु य वक्ता सुबोध ट बुर्णीकर ने कहा कि शिवाजी महाराज को बाल्य काल में ही शौर्य एवं पराक्रम की शिक्षा दीक्षा उनकी माता जीजा बाई ने दी थी।
शिवाजी ने अपने कार्यकाल में सदा अन्याय के खिलाफ अलख जगाई। उनके नेतृत्व में कई युवाओं ने महाराष्ट्र राज्य में मुगलों के अधीन किलों को भी ध्वस्त किया। इस मौके पर मंच पर महाराष्ट्र समाज के लोकपाल यूजे इंगले, ट्रस्ट के अध्यक्ष श्रीकांत तेलंग, समाज के अध्यक्ष विनय राहुरीकर मंचासीन थे।
श्रीगणेश मंदिर परिसर में आयोजित कार्यक्रम में आगे बोलते हुये कार्यक्रम के मु य वक्ता म.प्र. विद्युत वितरण कंपनी के सहायक यंत्री सुबोध टे बुर्णीकर ने कहा कि शिवाजी ने अपनी मां के साथ-साथ गुरू समर्थ रामदास स्वामी के सानिध्य में अपने जीवन का काफी उत्सर्ग किया। श्री टे बुर्णीकर का मानना है कि किसी भी बच्चे में अनुशासन, राष्ट्र प्रेम, भक्ति भावना को जागृत अगर कोई कसर सकता है तो वह बच्चे की प्रथम गुरू मां ही हो सकती है। उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन प्रसंग के कई अनछुये पहलुओं को भी उजागर किया साथ ही कई प्रसंग एवं व़ृतांत का भी सारगर्भित ढंग से उल्लेख किया। कार्यक्रम में महाराष्ट्र समाज ट्रस्ट की महिला उपाध्यक्षा श्रीमती शोभा चितले ने भी शिवाजी महाराज के जीवन वृतांत पर प्रकाश डालते हुये कहा कि शिवाजी जैसा वीर योद्धा कम देखने में इस देश में मिला है।
महाराष्ट्र समाज ट्रस्ट के पूर्व सचिव श्रीकृष्ण यारदी ने भी इस मौके पर वीर रस से ओतप्रोत एक गीत भी प्रस्तुत किया। विचार गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुये समाज के लोकपाल यूजे इंगले ने कहा कि इस तरह के आयोजन समाज को दिशा प्रदान करते हैं। अतिथियों का स्वागत समाज के शोभा चितले, शरद जावडेकर, संजय बांगीकर, संतोष दर्शनी, श्रीमती अभिनाश जावडेकर, सुभाष चालीसगांवकर, दिवाकर चितले, अतुल देसाई आदि ने किया। कार्यक्रम का संचालन महाराष्ट्र समाज के अध्यक्ष विनय राहुरीकर ने किया। कार्यक्रम में डॉ. एनव्ही मुले, श्रीमती निधि मुले, श्रीमती सरिता राहुरीकर, एसएन सिनखेडकर, विलास चांदुलकर, श्री गु फेकर, छत्री ऑफिसर अशोक मोहिते, रामू सिनखेडकर, श्रीरंग चितले, लक्ष्मण मरकले, श्रीमती गोहदकर, श्रीमती छाया चितले, कु.वाणी राहुरीकर, वैभव राहुरीकर, अभिषेक सिनखेडकर विशेष रूप से उपस्थित थे।