शिवपुरी। एक ओर जहां नगर पालिका के नए सीएमओ ने आते ही अपने कड़े तेवर दिखाकर सूअरों को ना केवल शहर से भगाने की बात कही वरन हाईकोर्ट के आदेशों का पालन करते हुए यदि सूअर शहर से बाहर नहीं हुए तो उन्हें शूट आउट करने से भी परहेज नहीं किया जाएगा।
इसके लिए बकायदा एक समाचार पत्र में विज्ञप्ति भी प्रकाशित कर दी गई। इस आदेश के बाद सूअर हत्या को लेकर हिंसा प्रवत्ति के रूप में कांग्रेस के शहर अध्यक्ष राकेश जैन आमोल ने अपना बयान दिया और सूअरों को मुखलाफत की। ऐसे में यही बयान अब उन्हें भारी पड़ता नजर आ रहा है। जिसमें अन्य कांग्रेसियों ने राकेश जैन का विरोध किया और वह सूअरों को लेकर आपनी बयानबाजी करने लगे है।
इधर नगरपालिका शिवपुरी शहर में व्याप्त हजारों की सं या में सूअरों को गोली से मारने की तैयारी करने में जुटी हुई है। नगरपालिका ने शूटरों को आमंत्रित करने हेतु विज्ञप्ति जारी कर दी है। इसके बाद शहर कांग्रेस के अध्यक्ष राकेश जैन आमोल ने साफ-साफ चेतावनी दी कि नगरपालिका को शहर में खून की होली नहीं खेलने दी जाएगी और किसी भी स्थिति में सूअरों को गोली से नहीं मारने दिया जाएगा। चाहे इसके लिए कितना भी बलिदान क्यों न देना पड़े, लेकिन उनके वक्तव्य का उनकी ही पार्टी में मुखर विरोध शुरू हो गया है। सूअरों के हमले में गंभीर रूप से घायल हो चुके वरिष्ठ कांग्रेस नेता अजय गुप्ता ने शहर अध्यक्ष को सलाह परोस दी है कि यदि उन्हें सूअरों से इतना ही लगाव है तो वे उन्हें अपने घर में पाल लें, लेकिन जनहित के इस मुद्दे में टांग न अड़ाएं।
कांग्रेस नेता अब्दुल रफीक अप्पल ने भी श्री गुप्ता के सुर में सुर मिलाते हुए कहा है कि इसके अलावा और कोई विकल्प भी शेष नहीं है तथा सूअरों के आतंक ने शहर के नागरिकों का जीना मुश्किल कर दिया है। इस मामले में नपा प्रशासन हाईकोर्ट के आदेश की दलील दे रहे हैं और उनका कहना है कि यदि किसी को सूअरों को शूटऑउट करने में आपत्ति है तो वह हाईकोर्ट से स्पष्ट आदेश लेकर आए अन्यथा हमारे पास माननीय उच्च न्यायालय के आदेश का क्रियान्वयन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।
माननीय उच्च न्यायालय के आदेश में नगरपालिका और प्रशासन को आदेशित किया गया है कि वह सूअरों को डिस्ट्रॉय करें। सूअरों के रक्षक बनकर उनकी पैरवी करने वालों की दलील है कि डिस्ट्रॉय का अर्थ कतई यह नहीं है कि उन्हें गोली से मारा जाए। इसका नगरपालिका गलत अर्थ निकाल रही है। शहर कांग्रेस अध्यक्ष राकेश जैन कहते हैं कि वह भी चाहते हैं कि शहर सूअरों से मुक्त हो। नगरपालिका चाहे तो यह कर सकती है। उनका प्रश्र है कि सूअरपालक नगरपालिका के कर्मचारी हैं उनके विरूद्ध नगरपालिका नौकरी से हटाने की कार्रवाई क्यों नहीं करती?क्यों नहीं सूअर पालकों को जेल भिजवाया जाता? सूअरपालकों के विरूद्ध नर्म रवैया अपनाने के कारण ही सूअरपालक शहर से सूअर नहीं हटा रहे हैं।
लेकिन यदि उन पर शिकंजा कस दिया जाए तो वह अपने सूअरों को शहर से बाहर किसी अन्य स्थान पर विस्थापित सुनिश्चित रूप से करेंगे, लेकिन अपनी असफलता छिपाने के लिए नगरपालिका अमानवीय तरीके का इस्तेमाल कर रही है। गांधीवादी तरीके से हर समस्या का हल निकल आता है, लेकिन नगरपालिका हिंसक तरीके का इस्तेमाल कर रही है और इससे शिवपुरी के नागरिकों के मन-मस्तिष्क पर गलत प्रभाव पडऩा सुनिश्चित है। लेकिन श्री जैन के बयान का विरोध उनकी ही पार्टी में तेजी से शुरू हो गया है। हालांकि खुलकर सामने आने में कांग्रेसी हिचक रहे हैं, लेकिन श्री जैन के कांग्रेस में प्रतिद्वंद्वी अजय गुप्ता ने उनके खिलाफ मोर्चा संभाल लिया है। श्री गुप्ता कहते हैं कि राकेश जैन को नागरिकों की पीड़ा से कोई मतलब नहीं है।
वह जानवरों की चिंता कर रहे हैं जबकि सूअरों ने नागरिकों का जीना मुश्किल कर दिया है। सूअरों के हमले में सैकड़ों लोग घायल हो चुके हंै। शहर में गंदगी बढ़ती जा रही है और सूअरों के कारण ही बीमारियों का प्रकोप फैल रहा है। कांग्रेस नेता अब्दुल रफीक अप्पल ने श्री जैन को सलाह परोस दी कि वह जनहित के इस मुद्दे में राजनीति को न घसीटें और जनता के स्वास्थ्य के साथ खिलबाड़ न करें। वह सूअरों के इतने ही प्रेमी हैं तो न केवल खुद घर में सूअर पालें, बल्कि अपने नाते-रिश्तेदारों, शुभचिंतकों को भी सूअर पालने की सलाह दें। शायद इससे ही शहर सूअरों के आतंक से मुक्त हो जाएगा। इस मामले में कानूनी विशेषज्ञों का कहना है कि डिस्ट्रॉय का अर्थ सूअरों को मारना ही है। डॉ. राजेन्द्र गुप्ता की सूअरों को हटाने की जनहित याचिका की पैरवी करने वाले अभिभाषक सुनील जैन ने इसका खुलासा किया है।
हाईकोर्ट के आदेश पर सख्त कार्यवाही के मिले आदेश
माननीय उच्च न्यायालय का साफ आदेश है कि दो माह में शहर से सूअरों को हटाया जाए। इस बाबत् उच्च न्यायालय ने तरीके भी बता दिए हैं। फैसले में लिखा है कि सूअर पालकों के विरूद्ध स त कार्रवाई की जाए। उन्हें नौकरी से बर्खास्त किया जाए। उनके विरूद्ध न्यायालय की अवमानना का मामला चलाया जाए। फैसले में यह भी लिखा है कि सूअरपालकों की सूची से माननीय उच्च न्यायालय को अवगत कराया जाए। दो माह में शहर से सूअर न हटने पर नगरपालिका और प्रशासन वैधानिक कार्रवाई करेगी। इसके बाद भी यदि एक माह में शहर सूअरों से मुक्त नहीं हुआ तो उनके डिस्ट्रॉय की कार्रवाई की जाएगी।