सूअरों को गोली मारने की सूचना पर जनता में आक्रोश

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शिवपुरी। माननीय उच्च न्यायालय के आदेश की आड़ लेकर नगरपालिका प्रशासन अब शहर में घूम रहे हजारों की सं या में सूअरों को गोली से मारने की तैयारी कर रहा है। नगरपालिका ने बाकायदा विज्ञप्ति जारी कर शार्प सूटरों को आमंत्रित किया है जिन्हें प्रत्येक सूअर को शूट करने पर निर्धारित राशि का भुगतान किया जाएगा। इसकी भनक पाकर शहर के नागरिकों में आक्रोश व्याप्त है और समाजसेवी राकेश जैन आमोल ने साफ-साफ चेतावनी दी है कि नगरपालिका को खून की होली नहीं खेलने दी जाएगी।

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि माननीय उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहीं भी नहीं लिखा कि सूअरों को गोली से मारा जाए, लेकिन नगरपालिका इस फैसले का अपनी अक्षमता छिपाने के लिए गलत अर्थ निकाल रही है। शहर में व्याप्त सूअरों के आतंक से मुक्ति दिलाने के लिए उच्च न्यायालय गए फरियादी डॉ. राजेन्द्र गुप्ता का भी साफ-साफ कहना है कि माननीय हाईकोर्ट के फैसले में सिर्फ यह लिखा है कि सूअर न हटने की स्थिति में उन्हें डिस्ट्रॉय किया जाए। इस शब्द का उपयोग यह कतई नहीं है कि सूअरों को गोली से मारा जाए। वह मानते हैं कि हजारों की सं या में सूअरों को गोली से मारना पूरी तरह अमानवीय और अव्यवहारिक है। महावीर, बुद्ध, विनोबा, राम और कृष्ण के देश में बेजा हिंसा के लिए कोई स्थान नहीं है।

राजनेताओं, कानून और नागरिकों के तमाम दबावों के बावजूद भी नगरपालिका शहर को सूअरों से मुक्त नहीं करा रही तो इसमें कहीं न कहीं उसका स्वार्थ और अक्षमता छुपी हुई है। शहर में 10 हजार से अधिक सूअर हैं और इन्हें पालने वाले नगरपालिका में पदस्थ सफाईकर्मी हैं। लेकिन नगरपालिका ने सूअरपालकों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की। उन्हें नौकरी से बर्खास्त और उनके विरूद्ध अभियोजन की कार्रवाई नहीं की। इसका परिणाम यह है कि सूअरों को पकडऩे के लिए नपा ने जो विज्ञप्ति निकाली थी उसके लिए भी कोई टेण्डर नहीं आए। अपनी क्षमताओं का इस मामले में नपा प्रशासन ने एक प्रतिशत भी इस्तेमाल नहीं किया।

लेकिन माननीय उच्च न्यायालय ने पिछले 7 अप्रैल को फरियादी डॉ. राजेन्द्र गुप्ता की जनहित याचिका पर निर्णय देकर नगरपालिका को पशोपेश में डाल दिया है। इस फैसले में साफ लिखा गया है कि दो माह में नपा प्रशासन सूअरों को शहर से हटाए। सूअरपालकों के विरूद्ध नौकरी से बर्खास्तगी और न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई की जाए। इसके बाद भी शहर यदि सूअर मुक्त नहीं हुआ तो प्रशासन और नगरपालिका सूअरों को डिस्ट्रॉय करे। ऐसा न होने की स्थिति में कलेक्टर और सीएमओ दोनों जि मेदार होंगे। इस फैसले का नगरपालिका चाहती तो स त क्रियान्वयन कर सकती थी, लेकिन उसके स्थान पर उसने हाईकोर्ट के डिस्ट्रॉय शब्द का अर्थ सूअरों को गोली से मारकर दफन करने से निकाला और इसके लिए विज्ञप्ति भी जारी कर दी।

यह खबर सामने आने के बाद जैन समाज, समाजसेवियों और शहर के अहिंसक नागरिकों में आक्रोश छा गया। समाजसेवी राकेश जैन आमोल का कहना है कि वह चाहते हैं कि शहर सूअरों से मुक्त हो, सूअरों के कारण न केवल गंदगी, बल्कि बीमारियां फैल रही हैं और नगरपालिका चाहे तो मात्र एक सप्ताह में वह शहर से सूअरों का विस्थापन करा सकती है। लेकिन इसके स्थान पर वह उन प्राणियों की हत्या करने का ताना-बाना बुन रही है जो अपनी पीड़ा को जुबान से नहीं कह सकते। ईश्वर ने उन्हें सजा देकर सूअर बनाया है, इंसान को कोई अधिकार नहीं है कि उनकी जान ले। श्री जैन कहते हैं कि न्यायालय का अर्थ सुअरों की हत्या करने से कतई नहीं है। माननीय उच्चन्यायालय की मंशा है कि सूअरों का शहर से विस्थापन किया जाए। जैन समाज के प्रतिनिधि तेजमल सांखला कहते हैं कि यदि आवश्यकता पड़ी तो शहर के सभी अङ्क्षहसक नागरिक एक साथ मिलकर हाईकोर्ट जाएंगे और स्पष्ट आदेश लेकर आएंगे, लेकिन हत्या नहीं होने दी जाएगी।

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