शिवपुरी। शिवपुरीवासियों का सिरदर्द बन चुका माधव राष्ट्रीय उद्यान एक मात्र ऐसा राष्ट्रीय उद्यान है जिसमें सड़कों का जाल बिछा हुआ है और बरसात में भी यह बंद नहीं रहता, लेकिन इसके बाद भी यह उद्यान पर्यटकों को आकर्षित करने में असफल रहा है। हालांकि स्व. माधवराव सिंधिया ने इस राष्ट्रीय उद्यान को विकसित करने के प्रयास किए, लेकिन सफलता हासिल नहीं हो सकी।
राष्ट्रीय उद्यान के विकास की दृष्टि से ही शिवपुरी में पर्यटन ग्राम (टूरिस्ट विलेज)की स्थापना की गई थी। हवाई अड्डा शुरू करने की भी योजना थी। राष्ट्रीय उद्यान में टाईगर सफारी की स्थापना की गई थी ताकि पर्यटक खुले रूप में शेरों का निश्चिंत विचरण देख सकें। लेकिन टाईगर सफारी की परिकल्पना की विफलता से माधव राष्ट्रीय उद्यान शिवपुरी के लिए अब सिर्फ बोझ साबित हो रहा है।
शिवपुरी को पर्यटन के क्षेत्र में विकसित करने की परिकल्पना निश्चित रूप से स्व. माधव राव सिंधिया की थी। वह इलाके में पर्यटन गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए काफी सक्रिय रहे। शिवपुरी में औद्योगिकीकरण के स्थान पर पर्यटन को उद्योग बनाना उन्होंने यहां की नैसार्गिक सुंदरता को देखते हुए विचार में लाया। स्व. सिंधिया स्व. संजय गांधी को लेकर शिवपुरी आए और उन्होंने पर्यटन ग्राम का शिलान्यास उनके कर-कमलों से कराया। वहीं उन्होंने घोषणा की कि शिवपुरी में हवाई सफर भी बहुत जल्द शुरू किया जाएगा ताकि पर्यटक हवाई जहाज से शिवपुरी आ सकें। इसके बाद स्व. सिंधिया राजीव गांधी को लेकर भी आए।
सन् 89 में माधव राव सिंधिया ने भोपाल के वन बिहार से तारा और पेटू नामक दो टाईगरों को राष्ट्रीय उद्यान के लगभग 10 किमी क्षेत्रफल में तारों की बागड़ लगाकर छोड़ा। योजना यह थी कि निर्धारित समय पर शेरों को एक निश्चित स्थान पर आहार दिया जाएगा और उस दौरान बंद गाड़ी से पर्यटकों को शेर की प्राकृतिक गतिविधियों का अवलोकन कराया जाएगा।
उस दौरान माधव राष्ट्रीय उद्यान में काफी रौनक रहती थी। शेरों को देखने के लिए पर्यटक और स्थानीय लोग आकर्षित होते थे। उनके संसर्ग से लगभग एक दर्जन बच्चे पैदा हुए। जिससे राष्ट्रीय उद्यान में शेरों की सं या काफी बढ़ गई। यहां का पर्यावरण भी टाईगर के लिए काफी अनुकूल सिद्ध हुआ, लेकिन इसके बाद विपत्ति का दौर शुरू हुआ।
एक तो टाईगर सफारी की जाली कहीं से टूटी और तारा नामक शेरनी सीमा से बाहर निकली और उसने लगातार दो महिलाओं को अपना निशाना बनाया। जिनमें एक आदिवासी थी। तारा अब नरभक्षी हो चुकी थी और टाईगर सफारी पर प्रश्र चिन्ह लग चुका था। वहीं दूसरी ओर तारा और पेटू के संसर्ग से जो शावक पैदा हुए उनमें आपसी संसर्ग कराने से जो बच्चे पैदा हुए वे काफी कमजोर थे।
वहीं यह आवाज भी उठने लगी थी कि टाईगरों को बाड़े में कैद करके नहीं रखा जा सकता। इसका परिणाम यह हुआ कि सभी टाईगर्स को देश के चिडिय़ाघरों में शिफ्ट कर दिया गया और माधव राष्ट्रीय उद्यान में अब सिर्फ हिरण,खरगोश जैसे गैर रुचि के जानवर ही रह गए।