सिंधिया और पवैया दोनों ने किया जीत का दावा

शिवपुरी। शिवपुरी गुना संसदीय क्षेत्र में इस बार पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में लगभग 7 प्रतिशत अधिक मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया। 2009 के लोकसभा चुनाव में जहां महज 54 प्रतिशत मतदाता ही मतदान के लिए आए। वहीं इस बार संसदीय क्षेत्र में मतदान का प्रतिशत 61 से अधिक रहा।

संसदीय क्षेत्र में पिछले चुनाव की तुलना में मतदाताओं की संख्या भी 4 लाख से अधिक हुई है। बढ़ा हुआ मतदान किसके लिए प्रभावी होगा। इसे लेकर कांग्रेस और भाजपा के अपने-अपने दावे हैं। सिंधिया के निज सचिव रमेश शर्मा जीत का अंतर तीन लाख मतों से अधिक बता रहे हैं।

वहीं भाजपा के जिला महामंत्री ओमप्रकाश शर्मा गुरू कहते हैं कि इस बार संसदीय क्षेत्र में नया इतिहास बनेगा और भाजपा की विजय पताका फहरेगी। उनका तर्क है कि संसदीय क्षेत्र में मोदी फेक्टर जमकर चला है और युवा मतदाताओं ने मोदी को प्रधान मंत्री बनाने के लिए भाजपा को वोट दिया है। 

इस बार बढ़े तीन लाख नए युवा मतदाता

पिछले लोकसभा चुनाव में लगभग साढ़े लाख मतदाताओं ने अपने मताधिकार का इस्तेमाल किया। जबकि इस बार 9 लाख 75 हजार से अधिक मतदाता मतदान के लिए आए अर्थात् पिछले चुनाव की तुलना में सवा तीन लाख मतदाताओं की सं या बढ़ी है। ये सभी युवा वोटर हैं और इनका झुकाव किस ओर होगा। उससे स्पष्ट होगा कि बाजी किसके पक्ष में जाती है। 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भाजपा प्रत्याशी डॉ. नरोत्तम मिश्रा को लगभग ढाई लाख मतों से तब पराजित किया था जब 6 माह पूर्व हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की बुरी गत हुई थी और उसके खाते में 8 में से महज 1 सीट थी। इस बार कांग्रेस की स्थिति संसदीय क्षेत्र में आंकड़ों की दृष्टि से अधिक ठीक है। छह माह पहले हुए विधानसभा चुनाव में संसदीय क्षेत्र की 8 सीटों में से कांग्रेस के पास 5 सीटें हैं। यह तस्वीर का एक पहलू है, लेकिन दूसरा पहलू यह है कि इस बार चुनाव में मोदी फेक्टर का असर है और एनडीए ने नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री पद पर उ मीदवारी घोषित कर दी है। कांग्रेस का खाता भी सूना नहीं हैं। 

विकास कार्यों को बनाया सिंधिया ने मुद्दा तो भाजपा ने माना मोदी फैक्टर

सिंधिया अपने विकास कार्यों को लेकर मैदान में हैं। भाजपा जहां मोदी फेक्टर को अपनी जीत का गणित बता रही है। वहीं कांग्रेस सिंधिया के विकास कार्यों से आशान्वित है और सिंधिया फेक्टर को अपनी जीत का आधार बता रही है। एक तरफ मोदी फेक्टर और दूसरी तरफ सिंधिया फेक्टर है। ऐसे में किस फेक्टर का असर प्रभावी रहेगा। इसका परिणाम ही जीत को तय करेगा। मोदी के प्रोजेक्शन से मतों के धुव्रीकरण की संभावनाएं बढ़ी हैं। ऐसे आसार नजर आ रहे हैं कि अल्पसं यक वोटों का झुकाव कांग्रेस की ओर जाएगा। इसकी प्रतिक्रिया होना भी स्वाभाविक है। इसका फायदा लेने के लिए भाजपा आतुर है। भाजपा के पक्ष में दो बातें जा रही हैं। एक तो मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग प्रधानमंत्री पद पर मोदी को आसीन देखना चाहता है। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु भाजपा प्रत्याशी अप्रसांगिक हो गया है। भाजपा का जोर मतदाताओं को प्रधानमंत्री चुनने के लिए आकर्षित करने की ओर है।

बिना प्रत्याशी जाने बस मोदी बने प्रधानमंत्री उद्देश्य को लेकर हुआ मतदान

संसदीय क्षेत्र में भाजपा के पक्ष में मतदान करने वाले कई मतदाताओं ने बताया कि उन्हें नहीं पता भाजपा से कौन चुनाव लड़ रहा है। वे तो सिर्फ मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं। यह धारणा भी बन रही है कि यदि मोदी प्रधानमंत्री बने और सांसद बनने का मौका ज्योतिरादित्य सिंधिया को मिला तो इससे यह क्षेत्र पिछड़ सकता है। अभी जब प्रदेश में जब कांग्रेस की सरकार नहीं है और भाजपा सत्तारूढ़ है तो योजना का क्रियान्वयन होने का दोष श्री सिंधिया प्रदेश सरकार पर मढ़ते हैं। मतदाताओं का कहना है कि फिर वह कहेंगे केन्द्र में उनकी सरकार नहीं हैं। वह तो काम करना चाहते हैं, लेकिन करें क्या? यह सोच भी भाजपा के पक्ष में जा रही है कि जब मोदी को प्रधानमंत्री बनना है तो विरोधी प्रत्याशी को जिताने का फायदा क्या? लेकिन सच्चाई यह भी है कि इस क्षेत्र में सिंधिया परिवार का अपना प्रभाव है और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपनी कार्यशैली से इस प्रभाव में वृद्धि की है। इसलिए सिंधिया फेक्टर को भी एकदम से नजरअंदाज या खारिज नहीं किया जा सकता।

अन्य प्रत्याशी में नहीं दिखी धार

कुल मिलाकर संसदीय क्षेत्र में चुनाव काफी रोचक है। मुकाबले में बसपा प्रत्याशी लाखन सिंह बघेल और आप प्रत्याशी शैलेन्द्र सिंह कुशवाह सहित 9 अन्य प्रत्याशी भी मैदान में हैं। लेकिन न तो वह जीतने की स्थिति में हैं और न ही जीत हार को प्रभावित करने की स्थिति में हैं। सवाल यह है कि क्या संसदीय क्षेत्र में चमत्कार होगा या फिर महल का जलवा हमेशा की तरह इस बार भी कायम रहेगा। यह सवाल भी है कि सिंधिया यदि जीते तो उनकी जीत का अंतर पिछले चुनाव की तुलना में ढाई लाख वोटों से अधिक बढ़ेगा या फिर मोदी लहर के कारण उनकी जीत का आंकड़ा सुकड़ेगा अथवा फिर संसदीय क्षेत्र में एक नई इबारत लिखी जाएगी। इन सारे सवालों का जवाब मिलने में लगभग एक माह का समय बांकी हैं, लेकिन इतना अवश्य तय है कि भाजपा मोदी फेक्टर से ही सही मुकाबले में मजबूती से बनी हुई है।