पवैया का सामंतवाद भी ना बना सहारा, जमीनी हकीकत से कोसों दूर दिखे भाजपाई

राजू (ग्वाल) यादव/शिवपुरी। भाजपा ने गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र जो लंबे अर्से से सिंधिया का अजेय गढ़ माना जाता रहा है । वहां इस किले को ढहाने के लिए ग्वालियर के तेजतर्रार नेता माने जाने वाले जयभान सिंह पवैया जो हाल ही में कांग्रेस के कद्दावर नेता प्रधुम्न सिंह तोमर को ग्वालियर की पूर्व विधानसभा क्षेत्र से परास्त कर जीत हासिल की थी जिसकी प्रदेश भर में चर्चा भी की गई।

कहीं ना कहीं उसी जीत का प्रभाव मानते हुए भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने इस अजेय गढ़ पर जीत की आस से पवैया को इस लोकसभा क्षेत्र से ला खड़ा किया। 

अपने नाम की घोषणा होते ही जैसे ही पवैया ने शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में कदम रखा कि ना जाने कौन से तेवर अपने अंदर बसाए हुए थे कि जीत के लिए ऐसा क्या मुद्दा बनाया जाए जो पूरे संसदीय क्षेत्र में लहर की तरह लोगों के दिल और दिमाग में बस जाए।  उसी को ठानते हुए उन्होंने यहां सामंतवादी का बिगुल फूंक डाला और तो और शहीदों को भी इस राजनीति की बिसात में ला खड़ा किया।  वह वाक्या यह है कि ग्वालियर में रानी लक्ष्मीबाई की समाधि स्थल से मिट्टी और शिवपुरी स्थित तात्याटोपे की समाधि स्थल से मिट्टी लेकर शिवपुरी में बनाए गए चुनाव कार्यालय में रख स्वयं को क्षेत्र का विकास का पुरोधा बनाने में जुट गए।

जहां जमीनी हालात की बात की जाए तो हमारी टीम ने अंचल में देखा कि पवैया द्वारा बजाया गया सामंतवादी बिगुल लोगों के दिल और दिमाग की बात तो दूर रही कहीं-कहीं तो यह हंसी मजाक के तौर पर गांव में गुमटी लगाकर लोगों ने अपनी चर्चा में जरूर ले रखा था। क्योंकि यहां से पहली बार सांसद का चुनाव लडऩे आए पवैया के पास ना तो विकास का मुद्दा और ना ही क्षेत्रीय जानकारी के तहत लोगों से जुड़ाव था। वहीं स्थानीय नेताओं का भी साथ पूरे चुनाव में कमजोर सा देखने को मिला। क्योंकि कहीं ना कहीं पवैया द्वारा छेड़ा गया सामंतवादी राग ने भाजपा को खुद दो धड़ों में बांट डाला था।

दल-बदल कर आए पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी बने सहारा

यह वह नाम है जिसे वर्ष 2007 से शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र का बच्चा-बच्चा इनके नाम से वाकिफ हो चुका है वह बात अलग है कि अब यह भी दलबदल की छाप में शुमार हो चुके है क्योंकि यह कद्दावर नेता अब से कांग्रेस के ज्योतिरादित्य सिंधिया के खासमखासनुमा में सर्वप्रथम स्थान पर जिले से आते थे उसी का परिणाम था कि इन्हें कुछ अल्प समय के लिए विधायकी व दो मर्तबा विधानसभा टिकिट मिल चुका है लेकिन वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद यह  सिंधिया की खिलाफत में आ खड़े हुए और लोकसभा चुनाव में कांग्रेस छोड़ भाजपा के जयभान सिंह पवैया से हाथ जा मिलाया और महल विरोधी डंका पीटने लगे।

चूॅंकि पवैया ने यहां कदम रखते ही महल पर सामंतवादी हमला बोल दिया और महल विरोधी दल का गठन करने में जुट गए। जहां थोड़ी बहुत गुट में बढ़ोत्तरी हुई देख इन्होंने जान लिया अब तो नैय्या पार लगना मुश्किल ना होगा। उसी का परिणाम था कि भाजपा प्रत्याशी जयभान सिंह पवैया ने वीरेन्द्र को अल सुबह उठते ही यह हर रोज अपने वाहन में प्रथम स्थान देकर गुना-अशोकनगर की ओर रवाना हो जाते थे। चूंॅकि वीरेन्द्र रघुवंशी का कितना कुछ असर इस क्षेत्र में रहा वह तो आगामी दिनों में देखने को मिल ही जाएगा साथ ही शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में प्रचार की जि मेदारी लेने से यह कतराते क्यों नजर आए, यह बात समझ से परे है।

लोकसभा प्रभारी भी नहीं दिखे प्रभार जमाते

लोकसभा प्रभारी नरेन्द्र बिरथरे- बीते समय में यशोधरानिष्ठ कहे जाने वाले बिरथरे जिन्हें इसका फल भी ऐसा मिला जो हर राजनेता की अति महत्वाकांक्षा होती है। वह यह कि पोहरी विधानसभा से भाजपा नेत्री द्वारा इनको टिकिट के साथ-साथ जीत की खुशियां भी इनकी झोली में भर दी थी जिसे इन्होंने तत्समय बखूबी पांच साल तक कायम रखा था लेकिन आखिरी दौर में राजे से दूरी बना ली और दिग्विजय सरकार के बाद वर्ष 2003 में उमा भारती के नेतृत्व में आई भाजपा सरकार में यह मु यमंत्री के खासनुमाबन गए। लेकिन  जब महज कुछ समय बाद ही उमा भारती ने भाजपा से दूरी बना ली और अपनी नई पार्टी का गठन तो कर लिया लेकिन वह कामयाबी की राह पर ना चल सकी और फिर से उस पार्टी का विलय बीते वर्ष पुन: भाजपा में ही हो गया।

इतने लंबे अर्से का बनवास भुगतकर आए बिरथरे को पार्टी प्रदेश नेतृत्व ने लोकसभा प्रभारी के तौर पर नं.1 की जि मेदारी इस संसदीय क्षेत्र की दे रखी थी। लेकिन लंबे अर्से बाद मिली इस जि मेदारी को निभाने में कमजोर ही साबित हुए और पवैया के साथ सामंतवाद का राग भी अलापने से कतई पीछे नहीं रहे। प्रभारी महोदय द्वारा हर रोज शाम को चुनावी कार्यालय में कार्यकर्ताओं के साथ ठहाके लगाते जरूर देखे जाते रहे। लेकिन चुनाव की जीत को लेकर कतई गंभीरता इनके चेहरे पर देखने को नहीं मिली। वहीं एक और गंभीरता भी उस समय हकीकत में सामने आ गई जब पार्टी की कद्दावर नेता सुषमा स्वराज का आगमन करने के लिए यह हैलीपेड तक भी ना जा सके। जिससे यह लगता है कि कहीं ना कहीं इनको आभास तो था ही कि इस अजेय गढ़ को भेदना फिलहाल तो असंभव ही साबित हो सकता है।

ओमीगुरू नहीं निभा पाए अपनी जिम्मेदारी

यह नेता जी पर ग्वालियर से आए पवैया को गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में जनता के बीच पकड़ को लेकर काफी आश्वस्त रहते थे। जिन्हें लगा कि ग्रामीण अंचल में जिला महामंत्री का वर्चस्व अच्छा खासा बना हुआ है और यह कम से कम शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र को तो अपने पक्ष में प्रचार कर बना सकते है। लेकिन शिवपुरी ब्लॉक की बात की जाए तो  यह महोदय ग्रामीण अंचल में कहीं भी प्रचार में नजर नहीं आए और हर वक्त शहर में ही प्रचार वाहन में ए.सी. की हवा खाते खूब देखे गए साथ ही साथ यह कुछ हद तक महल विरोधी चलाई गई मुहिम जिसको सामंतवादी नाम दिया गया। इस मुहिम से यह डरते छुपते तो देखे गए कहीं पवैया की यह मुहिम इनकी कार्यक्षमता के आड़े हाथ तो ना आ गई ऐसा कुछ हद तक महसूस किया गया। परिणाम तो अगले माह आ ही जाएगा कि इन जि मेदारों ने अपनी जि मेदारी का निर्वहन कितना कुछ किया।

पवैया को छोड़ नरेन्द्र के प्रचार में जुटे अधिकांशत: भाजपाई
शिवपुरी भाजपा के स्थानीय नेता जो स्वयं के लोकसभा क्षेत्र को छोड़ ऐसे गए कि मानो भाजपा के ही प्रत्याशी पवैया से कुछ इनकी अन-बन हो गई हो। क्योंकि भाजपा जिलाध्यक्ष से लेकर संगठन के कई पदाधिकारी प्रदेशाध्यक्ष और ग्वालियर लोकसभा क्षेत्र से भाजपा के प्रत्याशी नरेन्द्र सिंह तोमर जो चुनाव लडऩे मैदान में थे। बजह कुछ यह भी रही कि शिवपुरी जिला दो लोकसभा क्षेत्र में बंटा हुआ है जहां पोहरी-नरवर व करैरा यह दो विधानसभा क्षेत्र ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में आते है। यही कारण है कि ााजपा जिलाध्यक्ष रणवीर रावत ने यहां के प्रत्याशी के चुनाव में कोई खासा महत्व ना देते हुए प्रदेश सदर के प्रचार प्रसार में रात दिन एक कर डाली। 

इस जि मेदारी का निर्वहन वह भले करते भी क्यों ना, क्योंकि उनका करैरा-नरवर क्षेत्र जो प्रदेश सदर के चुनावी क्षेत्र में आ रहा था। इनके ही साथ-साथ जनभागीदारी अध्यक्ष अजय खेमरिया, सुरेशमंगल जॉली, अनुराग अष्ठाना, जगदीश रावत मंडल अध्यक्ष, जितेन्द्र जैन गोटू के अलावा कई छोटे-बड़े पदाधिकारी ग्वालियर संसदीय क्षेत्र में प्रदेश सदर के लिए गांव-गांव की गलियों की खाक छान रहे थे। इनके ही साथ सबलगढ़ से विधायक मेहरबान सिंह रावत व चाचौड़ा विधायक ममता मीणा ने भी प्रदेश सदर के लिए रात दिन एक कर डाली। वहीं  इन भाजपा नेताओं को यह महसूस था कि शिवपुरी क्षेत्र में पवैया की नैया पार लगाना बड़ी टेढ़ी खीर होगी, यही कारण था कि अपना नंबर बढ़ाने के लिए प्रदेश सदर के चुनावी प्रचार-प्रसार में जमकर रात-दिन एक कर डाली। जो संगठन की जि मेदारी तो कम ही कहेंगें निज स्वार्थ अधिक समझी जा सकती है।