पवैया ने एलान से पहले ही छोड़ दिया मैदान

शिवपुरी। ग्वालिय के इतिहास में दर्ज भाजपा के पहलवान, कुवंर जयभान, गुना आते ही छोड़कर भाग गए मैदान। जी हां, पवैया ने गुना सीट से चुनाव ना लड़ने का निर्णय कर लिया है। अपने सर्वे के बाद उन्होंने यह फैसला लिया है। वो गुना सीट पर सिंधिया का सामना करने को तैयार नहीं हैं। इज्जत बताने के लिए उन्होनें बयान जारी किया है कि यदि सिंधिया ग्वालियर आएंगे तो वो टिकिट की मांग करेंगे।

भाजपा ने पहले यहां से सुश्री उमा भारती को चुनाव लड़ाने का मन बनाया लेकिन सूत्र बताते हैं कि वह इन्कार कर चुकी है। फिर जयभान सिंह पवैया पर दांव लगाया लेकिन वह भी यहां से चुनाव लडऩे के इच्छुक नहीं है। ऐसे में लाख टके का सवाल यह है कि क्या भाजपा का मिशन 29 गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में आकर रूक जायेगा।

प्रदेश में गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र का इतिहास और चरित्र कुछ अलग है। यहां सिंधिया फैक्टर इस हद तक प्रभावी है कि अन्य सारे मुद्दे गौण हो जाते हैं। न तो यहां कोई राष्ट्र व्यापी लहर प्रभावी होती है और न ही प्रादेशिक और स्थानीय मुद्दे कोई असर दिखा पाते हैं। यहां सिर्फ सिंधिया परिवार का जादू चलता रहा है।

कांग्रेस और भाजपा का कोई खास असर नहीं है। सिंधिया परिवार के सदस्य ने जिस किसी राजनैतिक दल या निर्दलीय रूप से भी चुनाव लड़ा तो उन्हें विजयश्री हांसिल हुई। यहां से स्व. राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर उनके सुपुत्र स्व. माधवराव सिंधिया और नाती ज्योतिरादित्य सिंधिया तीन या तीन से अधिक बार चुनाव जीत चुके हैं।

यहां कांग्रेस विरोधी लहर में भी सिंधिया फैक्टर प्रभावी रहा है, जब कांग्रेस विरोध का जादू सन् 71 में सिर चढ़कर बोल रहा था तब भी सिंधिया फैक्टर पूरी ताकत से प्रभावी रहा।विधानसभा चुनाव में सन् 2008 में इस संसदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटों में से भले ही भाजपा ने सात सीटें जीती हों लेकिन इसके छह माह बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया ने सारे समीकरणों को धता बताते हुए ढाई लाख से अधिक मतों से विजय प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। इन आंकड़ों से साफ साबित होता है कि इस संसदीय क्षेत्र में शिवराज और मोदी का जादू कारगर होना पूरी तरह से संदिग्ध है।

इसी बजह से कोई भी यहां से भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लडऩे के लिए इच्छुक नहीं है। भाजपा यहां से कोई स्थानीय प्रत्याशी भी तैयार नहीं कर पाई इसी कारण सन् 2004 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हास्यास्पद रूप से समानतादल के विधायक हरिवल्लभ शुक्ला को ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले चुनाव मैदान में उतारा था, लेकिन तगड़ी टक्कर देने के बाद भी जीत उनसे दूर रही।

इस कारण इस चुनाव में स्थिति कांग्रेस प्रत्याशी ज्योतिरादित्य सिंधिया के अनुकूल दिख रही है। अपने पारिवारिक प्रभाव के अलावा उन्होंने संसदीय क्षेत्र में काम के बलबूते और जनता से नजदीकी के कारण अपना प्रभाव भी बढ़ाया है। पांच साल का उनका कार्यकाल रिकॉर्ड के हिसाब से काफी ठीक भी रहा है। इसीलिए प्रदेश में जिन दो तीन सीटों पर कांग्रेस मजबूत और भाजपा कमजोर मानी जा रही है उनमें से गुना-शिवपुरी सीट एक है।

उमा भारती और जयभान सिंह पवैया के अलावा भाजपा की ओर से यहां से अभी तक पूर्व मंत्री अनूप मिश्रा, और के.एल अग्रवाल तथा रावदेशराज सिंह के नाम चल रहे थे। तीनों शिवराज लहर के बावजूद विधानसभा चुनाव हार चुके है। ऐसे में समझा जा सकता है कि सिंधिया के खिलाफ उनकी चुनौती कितनी मजबूत रहेगी। कहा जा सकता है कि भाजपा इन तीनों में से यदि किसी को टिकिट देती है तो लड़ाई महज औपचारिक रहेगी और यह माना जायेगा कि परिणाम आने के पूर्व ही पार्टी ने अपनी हार मान ली। इसी बजह से जोरशोर से उमा भारती और फिर जयभान सिंह पवैया का नाम उछला। भाजपा सूत्रों का तर्क यह था कि साध्वी उमाभारती और श्री पवैया अपनी आक्रामकता के कारण चुनाव को रोचक बना सकते है, लेकिन दोनों ने ही चुनाव लडऩे से कन्नी काट ली है।

श्री पवैया कहते है कि वह गुना-शिवपुरी से चुनाव नहीं लड़ेंगे, लेकिन यदि श्री सिंधिया ग्वालियर से चुनाव लडऩे के लिए आते है तो वह पार्टी से अपने लिए टिकिट की मांग करेंगे। ऐसी स्थिति में फिलहाल सेवानिवृत्त डीआईजी हरी सिंह यादव का नाम उछल रहा है लेकिन इसे भी किसी भी कोण से जीत की गारंटी नहीं माना जा रहा है। कुल मिलाकर भाजपा को मिशन 29 यदि फतह करना है तो अपने सबसे मजबूत उ मीदवार को यहां से चुनाव लड़ाना होगा अन्यथा जीत की राह मुश्किल है।