क्या 'आप' कर पाएगी महल की घेराबंदी

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शिवपुरी। दिल्ली में धमाकेदार आगाज के साथ सरकार बनाने वाली नई नवेली आम आदमी पार्टी(आप)यूं तो अभी दिल्ली से बाहर नहीं है लेकिन इस बार दमदारी के साथ लोकसभा चुनाव लडऩे का ऐलान जरूर कर दिया है।

प्रदेश की 29 संसदीय सीटों में से प्रमुख मानी जाने वाली गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर शुरू से सिंधिया परिवार का वर्चस्व रहा है फिर चाहे बात स्व.माधवराव सिंधिया की हो या कै.राजमाता सिंधिया अथवा उनके सुपुत्र वर्तमान सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया की इस सीट पर शुरू से सिंधिया परिवार का राज रहा है लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा के पीएम उ मीदवार नरेन्द्र मोदी की हवा का असर होता है या आप के अरविन्द केजरीवाल कुछ कर दिखाते है इसकी संभावना भी प्रबाल है ऐसे में यहां कांग्रेस-भाजपा के साथ आप में सीधा मुकाबला होने का अनुमान भी लगाया जा रहा है।

वैसे तो कांग्रेस विरोधी लहर में महल के प्रभाव वाली गुना-शिवपुरी संसदीय सीट पर इस बार क्या फिर महल का परचम फहरेगा या फिर एक नया इतिहास कायम होगा। क्या नरेन्द्र मोदी की हवा महल के गढ़ को ढहाने में समर्थ होगी। इस सवाल का सकारात्मक जवाब ढूंढऩे वालों के लिए आम आदमी पार्टी सबसे बड़ी अवरोधक साबित हो रही है। राजनैतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि आम आदमी पार्टी की चुनौती से केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को फायदा होने की उम्मीद है। संसदीय सीट पर महल विरोधी मतों का भाजपा और आप में बटवारा संभावित है।

गुना शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस ने अभी से मेहनत शुरू कर दी है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने के लिए श्री सिंधिया के विजातीय प्रभारियों ने संसदीय क्षेत्र का दौरा कर लिया है। हालांकि गुना-शिवपुरी संसदीय क्षेत्र में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की हालत उतनी खराब नहीं रही, लेकिन कांग्रेस की राष्ट्रव्यापी गिरती साख से यहां भी चिंता महसूस की जा रही है और उसी उद्देश्य से कार्यकर्ताओं को सक्रिय करने की कवायद की जा रही है। इस संसदीय क्षेत्र में दलों से ऊपर महल का प्रभाव रहा है। यहां से राजमाता विजयाराजे सिंधिया से लेकर उनके सुपुत्र माधव राव सिंधिया और ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अनेक बार सफलता प्राप्त की है।

स्व. माधवराव सिंधिया की राजनैतिक शुरूआत इसी संसदीय सीट से हुई और वह सन् 1971 में पहली बार यहां से सांसद बने। इसके बाद लगातार तीन चुनावों में श्री सिंधिया ने संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। सन् 1984 में पूर्व प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी की चुनौती को ध्वस्त करने के लिए श्री सिंधिया ग्वालियर गए तो उन्होंने यहां से अपने सिपहसालार महेन्द्र सिंह कालूखेड़ा को सांसद बनाया। सन् 89 से राजमाता विजयाराजे सिंधिया लगातार तीन बार यहां से सांसद रहीं और इसके बाद फिर श्री स्व. माधवराव सिंधिया यहां से सांसद बने। उनके अवसान के बाद लगातार तीन चुनावों से ज्योतिरादित्य सिंधिया यहां का  प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

महल की घेराबंदी के यहां अनेक प्रयास हुए, लेकिन हर बार असफलता हाथ लगी। सच्चाई तो यह है कि महल के प्रतिनिधियों के अलावा कांग्रेस और भाजपा के पास इस सीट से चुनाव लडऩे वाले योग्य प्रत्याशी भी नहीं है। इस चुनाव में भी भाजपा को उ मीदवार की तलाश है। यहां रावदेशराज सिंह, केएल अग्रवाल और उमा भारती के नाम की चर्चा है। लेकिन देश में नरेन्द्र मोदी की हवा से भाजपा की आशा बंधी है, परंतु आम आदमी पार्टी ने इस संसदीय सीट पर चुनाव लडऩे की इच्छा व्यक्त की है और कहा है कि अब यहां नूरा कुश्ती नहीं चलेगी।

आम आदमी पार्टी की ओर से उम्मीदवार कौन होगा? यह अभी स्पष्ट नहीं है,लेकिन ऐसा लग रहा है कि आम आदमी पार्टी और भाजपा महल विरोधी मतों का ही बटवारा करेंगे और इससे श्री सिंधिया की राह ही आसान होगी। भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच जिस तरह के खटासपूर्ण संबंध हैं उससे ऐसा नहीं लगता कि श्री सिंधिया की घेराबंदी करने के लिए दोनों दल कोई एक साझा उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारेंगे।

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