शिवपुरी। बच्चों के चारित्रिक निर्माण में पाठशालायें अहम भूमिका निभाती हैं। यूं तो बच्चों की प्राथमिक गुरू मॉं कही जाती है, परंतु पाठशाला में जिन बहनों द्वारा, गुरूओं द्वारा जो संस्कार दिये जाते हैं वे संस्कार जीवन भर के लिये हुआ करते हैं, यही कारण है कि इन पाठशालाओं में बच्चों को दिये गये संस्कार आजीवन काम में आते हैं।
अत: माता-पिता अविभावकों को चाहिये कि वह अपने छोटे बच्चों को पाठशाला अवश्य भेंजें जिससे बच्चों के मानसिक विकास के साथ नैतिक संस्कारों का भी जागरण हो सके। उक्त विचार परम पूज्य आचार्य विद्यासागर जी महाराज के परम शिष्य मुनि श्री कुंथु सागर जी महाराज ने श्री महावीर जिनालय में विद्यासागर सर्वोदय पाठशाला के बार्षिक स मेलन को संबोधित करते हुये व्यक्त किये।
धर्मसभा को संबोधित करते हुये महाराज श्री ने आगे कहा कि जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखनें में पाकशाला महत्वपूर्ण होती है, उसीप्रकार चारित्र के निर्माण में पाठशाला महत्वपूर्ण हुआ करती है। आज बच्चों को विद्यालय में लौकिक शिक्षा तो मिल जाती है, परंतु धर्म की शिक्षा नहीं मिलती। धार्मिक शिक्षा सिर्फ पाठशाला के माध्यम से ही मिलती है।
आज यह अत्यंत आवश्यक है कि जिस धर्म में व्यक्ति ने जन्म लिया है, उस धर्म की उसे जानकारी हो साथ ही उसके मन में अपने धर्म के प्रति समुचित आदर हो। और अपने धर्म पर स्वाभिमान करते हुये देष की उन्नति में अपना योगदान दे सके। धार्मिक संस्कार बच्वों को जहांॅ धर्म की शिक्षा देते हैं वहीं आज के इस चकाचौंध से भरे हुये भौतिक संसार में नैतिक शिक्षा भी देते हैं। अत: यह आवश्यक है कि प्रत्येक परिवार अपने बच्चों को पाठषाला अवश्य भेजे, जिससे बच्चों में धार्मिक संस्कारों का जागरण हो सके।