यशोधरा के कम बैक ना होने के कारण स्थानीय भाजपा नेताओं के चेहरों पर खिला कमल

शिवपुरी। शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से वरिष्ठ भाजपा नेत्री और ग्वालियर सांसद यशोधरा राजे सिंधिया के चुनाव लडऩे में पशोपेश से प्रोत्साहित होकर एक दर्जन से अधिक दावेदार खुलकर मैदान में आ गए हैं। संभावित दावेदार यहीं मानकर चल रहे हैं कि विधायक माखनलाल राठौर को इस बार टिकट नहीं मिलेगा और यशोधरा राजे सिंधिया के चुनाव लडऩे की संभावना भी काफी नगण्य है।

ऐसी स्थिति में पार्टी आला कमान और यशोधरा राजे सिंधिया का विश्वास जीतकर वह भाजपा उम्मीदवार बन सकते हैं। इनमें से कुछ दावेदार ऐसे हैं जो पिछले चुनाव में भी टिकट की दौड़ में थे जबकि कुछ नए और समाजसेवी छवि के दावेदार भी  मैदान में आएं हैं। इनमें वे शामिल हैं जो कट्टर भाजपाई तो हैं, लेकिन अभी तक उन्होंने अपने आप को चुनावी राजनीति से दूर रखा था।

भाजपा जिलाध्यक्ष रणवीर रावत से लेकर कोलारस विधायक देवेन्द्र जैन भी परिदृश्य में बने हुए हैं। रायशुमारी में दोनों नेताओं के पक्ष में अच्छी राय भी बनी थी। टिकट की दौड़ में यशोधरा राजे के कई कट्टर समर्थक भी शामिल हैं तो यशोधरा विरोधी भी हैं। जिन्हें विश्वास है कि यशोधरा राजे पुराने गिले-शिकवे भुलाकर उन्हें टिकट दे सकती हैं।

शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र जिले की भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट मानी जा सकती है। सन् 85 के बाद अकेले 2007 के उपचुनाव में कांग्रेस ने यहां से विजयश्री हासिल की थी जबकि हर बार भाजपा बड़े अंतर से यह सीट जीतती रही है। इस चुनाव में पांच हजार से अधिक लोधी मतदाताओं की संख्या बढऩे से भाजपा इस सीट पर और अधिक निश्ंिचत नजर आ रही है।

भाजपा की मजबूती का दूसरा कारण यह है कि यशोधरा राजे सिंधिया का इस क्षेत्र में व्यापक प्रभाव है और उनके चुनाव न लडऩे की स्थिति में भी वह जिस पर हाथ रखती हैं वह विजयी होता है। इस कारण से भाजपा उम्मीदवारों के लिए यह सीट खास आकर्षण का केन्द्र हैं। जहां तक प्रमुख दावेदारों का सवाल है तो निर्विवाद रूप से यशोधरा राजे के लिए कोई चुनौती नहीं हैं, लेकिन उनके चुनाव न लडऩे की स्थिति में कुहासा अभी साफ नहीं हुआ है।

नैसर्गिक रूप से विधायक माखनलाल राठौर दावेदार हैं, लेकिन सवाल यह है कि क्या वह इस बार भी यशोधरा राजे सिंधिया का विश्वास जीतेंगे? संभावित दावेदार यही मानकर चल रहे हैं कि इस सवाल का जवाब नकारात्मक होगा। पिछले चुनाव में इस सीट पर जो दावेदार थे- वह हैं अनुराग अष्ठाना, राजेन्द्र निगम, तेजमल सांखला, राजेश जैन, धैर्यवर्धन शर्मा।

इनमें से एकाध को छोड़कर पुन: टिकट की कतार में हैं, लेकिन सर्वाधिक कसबल अनुराग अष्ठाना और धैर्यवर्धन शर्मा लगा रहे हैं। श्री अष्ठाना ने तो जन आशीर्वाद यात्रा को शक्ति परीक्षण का केन्द्र बना लिया है और धनबल का जमकर इस्तेमाल कर उन्होंने शहर को बैनर और पोस्टरों से सजा दिया है। धैर्य को भी भरोसा है कि इस बार यशोधरा राजे उनके नाम पर सहमत होंगी। जबकि राजेश जैन और तेजमल सांखला का आधार सिर्फ यशोधरा राजे सिंधिया की सहमति तक सीमित है, लेकिन टिकट की महत्वाकांक्षा इनकी भी कम नहीं है।

इस चुनाव में जो नए दावेदार मैदान में आएं हैं उनमें विद्यादेवी देवी अस्पताल के संचालक डॉ. राजेन्द्र गुप्ता, समाजसेवी रीतेश जैन और कपिल जैन, भरत अग्रवाल, राघवेन्द्र गौतम, श्रीमती तृप्ति गौतम आदि शामिल हैं। डॉ. राजेन्द्र गुप्ता पुराने संघी है और बचपन से ही संघ तथा भाजपा से जुड़े रहे हैं, लेकिन चुनाव लडऩे में उन्होंने पहली बार दिलचस्पी दिखाई है। उनका कहना है कि राजनीति में अच्छे लोग आना चाहिए। समाजसेवी रीतेश जैन भी अपना दावा इसी तरह ठोकते हैं।

उनका गणित है कि उनके नाम पर नरेन्द्र सिंह तोमर से लेकर यशोधरा राजे सिंधिया दोनों सहमत हैं। युवा कपिल जैन धनबल संपन्न हैं और पिछले कुछ वर्षों से राजनीति में सक्रिय हैं। कृषि मण्डी के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव में उनकी महत्वपूर्ण तथा निर्णायक भूमिका रही थी।

 भरत  अग्रवाल भाजपा राजनीति में गृहमंत्री उमाशंकर गुप्ता के नजदीकी माने जाते हैं। उन्होंने भी जन आशीर्वाद यात्रा में अपने सारे संसाधन झोंके हैं। टिकट की दौड़ में दो नए चेहरे श्रीमती तृप्ति गौतम और राघवेन्द्र गौतम भी सामने आए हैं। श्रीमती गौतम पूर्व विधायक गणेश गौतम की धर्मपत्नि हैं और यशोधरा राजे की सहमति पर उनकी टिकट की आशा टिकी हुई है।

जबकि राघवेन्द्र गौतम प्रदेश कार्य समिति सदस्य हाल ही में बने हैं तथा वर्षों से संघ से जुड़े रहे हैं। रायशुमारी में आश्चर्यजनक रूप से भाजपा जिलाध्यक्ष रणवीर सिंह रावत और कोलारस विधायक देवेन्द्र जैन का नाम प्रमुखता से उभरा। इनमें से श्री रावत करैरा से विधायक रह चुके हैं जबकि देवेन्द्र जैन सन् 93 में शिवपुरी से विधायक रहे थे। इन दोनों नामों के उभरने का एक अर्थ यह माना जा रहा है कि यदि अन्य दावेदारों में से कोई सर्वसम्मति नहीं उभरी तो इनके अलावा राघवेन्द्र गौतम के नाम पर भी विचार संभावित है।