बड़ा सवाल : आखिर उत्सव हत्याकाण्ड क्या सबक लिया पुलिस प्रशासन ने!

त्वरित टिप्पणी@ललित मुदगल/ शिवपुरी में 4 मार्च की रात को हुए उत्सव हत्याकाण्ड के उपद्रव ने ना केवल शिवपुरी को बल्कि पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया था आखिर यह उपद्रव क्यों हुआ, इसके कारणों का जब पता चला तो सुनने वालों के होश उड़ गए कि पुलिस की नाकामी के कारण यह घटना घटी लेकिन बिगड़ते हालातों को पुलिस ने बमुश्किल काबू में किया। इसके बाद लगने लगा था कि अब पुलिस ने इस उपद्रव से सबक ले लिया होगा लेकिन बीती 26 मई 2013 को एक बार फिर से शिवपुरी की पहचान उपद्रव के रूप में शामिल हुई। 


यहां एक अनियंत्रित डम्फर चालक की लापरवाही से सिरसौद क्षेत्र में मौके पर ही तीन महिलाओं की मौत हो गई जिसका ऐसा बबाल मचा कि उत्सव हत्याकाण्ड की परिणीति के रूप में सामने आया। यहां ग्रामीणों ने ना केवल पुलिस पर पथराव किया बल्कि डम्फर को, पुलिस के वाहन को और एक एम्बूलेंस को आग के हवाले कर दिया। 

आखिर ऐसा गुस्सा इतना क्रोध ग्राम सिरसौद में पनपा इसका कारण क्या था? जब गहनता से इस मामले की जांच परख हमने की तो पता चला कि मामला चाहे कोई भी हर मामले में पुलिस की संवेदनशीलता व लापरवाही ही सबसे बड़ा कारण है एक बड़ा सवाल सभी के सामने यही है कि आखिर कब तक पुलिस अपने इस रवैये को अपनाऐंगी, क्या बार-बार इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति पुलिस चाहती है या फिर इसके पीछे कोई और मकसद है...।

जी हां! पुलिस की संवेदना और घटना की जानकारी होने के बाबजूद भी लचर कार्यप्रणाली के चलते घटनास्थल पर कई घंटों बाद पहुंचने से हालात बिगड़ जाते है और यही हाल इन दोनों घटनाओं में हुआ। जिसमें उत्सव हत्याकाण्ड में शुरू से ही पुलिस ने एक आरोपी को पकडऩे के बाद दीवान परिवार के इशारे पर छोड़ दिया तो वहीं अब एक बार फिर से पुलिस की निष्क्रिय व शिथिल कार्यवाही के चलते सिरसौद में हंगामा, तोडफ़ोड़ व आगजनी हुई। 

सिरसौद में सुबह 10:30 बजे घटी घटना की जानकारी पुलिस को तत्काल स्थानीय निवासियों अथवा किसी ना किसी माध्यम से मिल गई थी लेकिन इसके बाद भी घटना के डेढ़ घंटे बाद जब पुलिस मौके पर पहुंची तो स्वाभाविक था ग्रामीणजनों में पुलिस के प्रति रोष भरा हुआ था और वही हुआ जिसके चलते घटनास्थल पर पुलिस का देरी से आना गांव वालों के लिए  खल गया और उन्होंने अपना विरोध मौके पर घटना को अंजाम देने वाले डम्फर पर उतारा जिसे आग के हवाले कर दिया गया। 

जब एक वाहन में आग लगी तो बढ़ते-बढ़ते पुलिस भी आ गई अब बारी पुलिस की थी जिस पर गांव वालों ने पुलिस को गांव में घुसने तक नहीं दिया और उन्हीं पुलिसकर्मियों की जमकर पिटाई भी कर दी और पथराव भी किया। इसके बाद हालात अनियंत्रित हुए तो मौके पर पुलिस के वाहन व एम्बूलेंस को भी आग के हवाले कर दिया। यह सब घटित होता रहा और पुलिस मौके पर अपने एक्शन ही लेती रही आखिर इस प्रकार की संवेदना पुलिस बरतेगी तो उसके परिणाम भी यही सामने आऐंगें।

 हालांकि अब पुलिस ने उपद्रव करने वाले लगभग एक दर्जन लोगों को गिरफ्तार कर लिया लेकिन इन लोगों का दोष क्या था, मानवीय संवेदनाओं को जब ठेस पहुंचती है तो स्वाभाविक है कि गुस्सा आता है और उसे गुस्से की आग में कई जलते है और बुझते है। ऐसे में पुलिस ने कानून हाथ में लेने वालों को तो पकड़ लिया पर क्या स्वयं की गलती को सुधारने का प्रयास पुलिस प्रशासन करेगा अथवा उत्सव हत्याकाण्ड जैसे हालातों की पुनरावृत्ति होने की आगे भी गुंजाईश है। यह एक विचारणीय प्रश्र है पुलिस प्रशासन के लिए, अब देखना होगा कि इतना सब होने के बाद पुलिस इस ओर क्या सख्त कदम उठाती है अथवा यह कार्यवाही भी यूं ही शिथिल रहेगी। 

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