भैया साहब लोधी को छोड़कर कई नेताओं को घर वापिसी पड़ी महंगी

राजनीति इन दिनों@अशोक कोचेटा। कांग्रेस, भाजपा, जनशक्ति पार्टी से फिर भाजपा में लौटे पूर्व मंत्री और विधायक भैय्या साहब लोधी किस्मत के धनी हैं। भाजपा जिला संगठन की राय के विपरीत पार्टी आला कमान ने उन्हें केन्द्रीय सहकारी बैंकचेयरमैन के प्रतिष्ठित पद पर आसीन किया है। जबकि उनकी तुलना में भाजपा में लौटे नरेन्द्र बिरथरे, गणेश गौतम, माणिकचंद और मंजुला जैन उतने भाग्य के धनी नहीं हैं। भाजपा में वे हासिए पर हैं और उनकी कोई पूछपरख नहीं है।

जिले के पिछोर से दस साल तक कांग्रेस विधायक रहे भैय्या साहब ने स्व. माधव राव सिंधिया की बदौलत राजनीति की सीढिय़ां चढ़ीं थीं। श्री सिंधिया ने उन्हें मंत्री भी बनवाया था। वह उनके गॉड फादर माने जाते थे। लेकिन स्व. माधव राव सिंधिया के जीवन काल में ही भैय्या साहब ने कांग्रेस और उनसे नाता तोड़ लिया। पिछोर से चुनाव लडऩे की उनकी इतनी महत्वाकांक्षा थी कि वह भाजपा में शामिल हो गए और पार्टी ने उन्हें सन् 98 में पिछोर से एक झटके में टिकिट भी दे दिया। लेकिन जनता ने भैय्या साहब को ठुकरा दिया और वह चुनाव भी हार गए। भाजपा में वह यशोधरा राजे सिंधिया के प्रति आस्थावान थे, लेकिन जब 2008 के चुनाव में पार्टी ने उन्हें टिकिट नहीं दिया तो एक झटके में उनकी आस्था ढिग गई और उमा भारती के नेतृत्व में उनका विश्वास कायम हो गया।

जनशक्ति पार्टी ने पिछोर से भैय्या साहब लोधी को उम्मीदवार भी बना दिया, लेकिन जनता ने उन्हें फिर जमीन सुंघा दी। हारने के बाद भैय्या साहब बिना किसी संकोच और हिचक के भाजपा में पुन: लौट आए और जिला संगठन को धत्ता बताते हुए वह सहकारी बैंक के चेयरमैन बन गए। लेकिन पार्टी के पूर्व जिलाध्यक्ष नरेन्द्र बिरथरे, उपचुनाव के भाजपा उम्मीदवार गणेश गौतम, नपा अध्यक्ष पद का चुनाव बागी प्रत्याशी के रूप में लड़ीं मंजुला जैन और पूर्व पार्षद माणिकचंद राठौर की किस्मत बुलंद नहीं है। इस कारण पार्टी में होने के बाद भी वे न होने के बराबर हैं।

ऐसी आशा थी कि भाजपा में आने के बाद नरेन्द्र बिरथरे पुन: ताकतवर बनेंगे। सन् 98 से 2003 तक उनकी गिनती जिले के प्रभावशाली भाजपा नेताओं में की जाती थी। श्री बिरथरे उमा भारती के प्रति आस्था के कारण भाजपा छोड़ बैठे। उमा जी के आने के बाद उनकी भी भाजपा में वापिसी हुई और ऐसे संकेत मिले कि श्री बिरथरे को पोहरी से टिकिट मिल सकता है। क्योंकि उमा भारती में यदि एक भी टिकिट लेने की सामर्थ होगी तो वह नरेन्द्र को टिकिट अवश्य दिलवाएंगी। लेकिन प्रदेश भाजपा में उमा भारती का कद नहीं बढ़ा और पार्टी ने उन्हें उत्तरप्रदेश में ही सीमित रहने को कहा।

नरेन्द्र बिरथरे जीवट के धनी हैं। वह पार्टी में आने के बाद सक्रिय भी रहे हैं। नरवर चुनाव में उन्होंने अपनी पूरी ऊर्जा का व्यय किया, लेकिन परिणाम प्रतिकूल रहे। आज भाजपा की गुटबाजी में नरेन्द्र बिरथरे अलग-थलग पड़े हैं। कांग्रेस से फोड़कर गणेश गौतम को भाजपा पार्टी में लाई। उन्हें टिकिट दिया। लेकिन गणेश चुनाव नहीं जीत पाए। पिछले चुनाव में जब उन्हें भाजपा ने टिकिट नहीं दिया तो वे पुन: जनशक्ति पार्टी में चले गए। इसके बाद एक दिन के लिए वह कांग्रेस में गए। पुन: जनशक्ति पार्टी में आए और अब उमा भारती के साथ फिर भाजपा में शामिल हुए हैं। लेकिन भाजपा में भी गणेश की अब कोई पूछपरख नहीं दिख रही। पार्टी कार्यालय वे कभी नहीं जाते।

नरेन्द्र सिंह, शिवराज सिंह और यशोधरा राजे के आगमन पर उनकी झलक दिख जाती है, लेकिन उन्हें फिलहाल पार्टी में तवज्जो नहीं मिल रही। यही हाल माणिकचंद राठौर और मंजुला जैन का है। माणिकचंद ने तो विधायक माखनलाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया और उन्होंने अपने समाज के कार्यक्रम में कांग्रेस के पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी को बुलाया। उनके यहां विवाह समारोह में पिछले दिनों यशोधरा राजे पहुंची, लेकिन इसके बाद भी माणिकचंद को पार्टी मेें कोई तवज्जो नहीं है। ऐसे ही हालात मंजुला जैन के हैं, जिन्होंने नपाध्यक्ष पद के चुनाव में बागी प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ा और पराजित हुईं। पार्टी में उनकी वापिसी हो गई, लेकिन उनका आना और न आना बराबर रहा। इससे निराश होकर मंजुला जैन ने एक तरह से राजनीति से नाता ही तोड़ लिया है।