यशोधरा चुनाव लड़ी तो, कांग्रेस को वीरेन्द्र को देना होगा टिकिट

शिवपुरी। शिवपुरी अंचल में अपनी छाप छोड़ चुके पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी को आने वाला विधानसभा महती भूमिका निभाने वाला साबित हो सकता है बशर्तें यदि यहां से यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव मैदान में हो। 

देखा जाए तो कई कांग्रेसी भी यही चाहते है कि यशोधरा के मैदान में होने से वीरेन्द्र को ही चुनाव मैदान में उतारा जाए, क्योंकि उपचुनाव में वीरेन्द्र रघुवंशी ने भाजपा की सत्तासीन सरकार के सभी मंत्रियों के शिवपुरी में होने के बाबजूद भी अपने प्रतिद्वंदी गणेश गौतम को मात दी थी ऐसे में यह संभावना प्रबल हो गई है कि अब की बार चुनाव मैदान में यशोधरा भाजपा से हैं तो यहां कांग्रेस से वीरेन्द्र को ही चुनाव मैदान में उतारा जाए हालांकि यह भविष्य के गर्त में छिपा है कि आगे क्या होगा?

यहां बता दें कि वैसे तो पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी की इस बार दो विधानसभा क्षेत्रों शिवपुरी और कोलारस पर नजर है। कोलारस के वह मूलनिवासी हैं और शिवपुरी के वह उपचुनाव में विधायक रह चुके हैं। शिवपुरी उन्हें रास भी आ रही है। ऐसे में यहां यशोधरा के मुकाबले वीरेन्द्र से बेहतर कोई उम्मीदवार नजर नहीं आ रहा। 

होने को तो कांग्रेस में सिंधिया गुट से राकेश जैन आमोल, अजय गुप्ता अज्जू जो पूर्व में नपाध्यक्ष के चुनाव से कुछ सीख ले चुके है, वहीं दिग्गी गुट से पूर्व शहर कांग्रेस अध्यक्ष राकेश गुप्ता भी ताल ठोंक सकते है लेकिन इन सभी की उम्मीदवारी भी नगण्य नजर आती है। अब यदि यशोधरा चुनाव में आती है तो यहां कांग्रेस की मजबूरी ही बन जाएगी कि वह पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी को ही चुनाव मैदान में उतारे।

क्योंकि अन्य कोई प्रत्याशी नहीं चाहेगा कि उसकी राजनीति का समापन यशोधरा से चुनाव लड़कर हो। ऐसे में कांग्रेस के सभी नेता पीछे कदम खींचने से भी परहेज नहीं करेंगें जबकि शिवपुरी में यशोधरा से मुकाबला हरिबल्लभ शुक्ला ने किया था लेकिन उन्हें भी मुंह की खानी पड़ी तो अब यशोधरा यदि चुनाव मैदान में आती है तो वीरेन्द्र ही एक मात्र सहारा कांग्रेस का है।

कई कांग्रेसियों की जुबान पर तो बीते चुनावों की बात सुनाई देती है जो यहां तक कह रहे हैं कि 2003 में यशोधरा राजे ने कांगे्रस प्रत्याशी गणेश गौतम को 25 हजार मतों से हराया था, लेकिन श्री रघुवंशी की हार का अंतर इससे भी अधिक होगा। गिनाते हुए वह कहते हैं कि इस बार वीरेन्द्र के साथ वैश्य मतदाता नहीं हैं। कांग्रेस के प्रभावशाली मुस्लिम नेता जो उस समय उनके साथ थे इस बार खुलकर विरोध में हैं। 

यह कहना उनके विरोधियों के लिए तो ठीक है लेकिन इन सबसे श्री रघुवंशी बिल्कुल प्रभावित नहीं है। उनके नजदीकी सूत्र बताते हैं कि यदि यशोधरा राजे नहीं लड़ीं तो वीरेन्द्र के लिए कोई चुनौती नहीं है। विधायक बनने के बाद यहां की जनता उनके आक्रामक तेवर देख चुकी है। लेकिन सवाल यह है कि यदि यशोधरा राजे चुनाव लड़ीं तो क्या होगा? तब केवल यहां वीरेन्द्र के अलावा अन्य प्रत्याशी कांग्रेस को नजर नहीं आ रहा।