मानसिकता बदले बिना महिला हिंसा नहीं रुकेगी: सेमिनार

शिवपुरी-गत दिवस शहर के होटल सनराईज में महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता बढ़ाने हेतु आयोजित सेमीनार में यदि कोई एक निष्कर्ष निकलकर सामने आया तो वह था पुरुषों की मानसिकता बदले बिना महिलाओं के प्रति अत्याचार नहीं रूकेंगे। लेकिन मानसिकता कैसे परिवर्तित हो? क्या कानून के द्वारा या सामाजिक संस्कारों के द्वारा या फिर किसी अन्य तरीके से? इसका विस्तार से जिक्र सेमीनार में मौजूद किसी भी वक्ता ने नहीं किया। 

कलेक्टर आरके जैन अवश्य बोले कि महिला अत्याचार रोकने के लिए बनाए गए कानूनों का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। इन कानूनों का इतना दुष्प्रचार न हो कि पुरुष सांस भी न ले सके। कलेक्टर का कथन इस बात की ओर साफ इशारा था कि सिर्फ कानून बना देने भर से महिला हिंसा नहीं रूकेगी। 

एसपी आरपी सिंह ने तो साफ-साफ तौर पर कहा कि महिलाओं के प्रति पुरुष प्रधान मानसिकता की जड़ें काफी गहरी और पुरानी हैं। काफी हद तक ठीक बात कही एसपी साहब ने, लेकिन जब वह बोले कि महिलाएं किसी भी मायने में पुरुष से कमजोर नहीं है, बल्कि पेट में शिशु रखने की क्षमता के कारण वह पुरुष से सुपीरियर भी है तो इससे भी बात बनती हुई नहीं, बल्कि बिगड़ती हुई लगी। कैसे किसी को उच्च और किसी को निम्न बताओगे जबकि सच्चाई यह है कि ईश्वर की दोनों कृतियां अद्वितीय हैं। न कोई किसी से कम और न कोई किसी से उच्च। 

प्रारंभ में एसडीओपी संजय अग्रवाल ने भूमिका रखते हुए कहा कि सामान्य तौर पर विवाहित महिला घरेलू हिंसा तथा प्रताडऩा का शिकार होती है तो आरोपी के विरूद्ध मामला कायम कर लिया जाता है, लेकिन इससे उसके घर परिवार बिखरने का खतरा भी पैदा हो जाता है। बकौल श्री अग्रवाल, इसी कारण घरेलू हिंसा कानून लाया गया है। उनकी पूरी भूमिका सिर्फ एक बात पर केन्द्रित रही कि महिलाओं के प्रति संवेदनशील नजरिया हमारा होना चाहिए। लेकिन इसमें उनकी एक सामाजिक दृष्टि नहीं, बल्कि एक अधिकारी के रूप में अपने दायित्व और औपचारिकता का निर्वहन ही अधिक नजर आया। 

मानवाधिकार आयोग से जुड़े पत्रकार आलोक इंदौरिया और एडीएम श्री जैन के संक्षिप्त भाषण का आशय यही था कि महिलाओं के प्रति संवेदनशीलता बढऩी चाहिए, लेकिन कैसे? यह सवाल अनुत्तरित बना रहा। कलेक्टर आरके जैन ने उन लोगों की पीड़ा को उजागर किया जिनके बच्चे-बच्चियां महानगरों में अध्ययनरत हैं या सेवा में हैं। श्री जैन ने कहा कि माहौल ऐसा निर्मित होना चाहिए कि हमारी बच्चियां आधी रात को भी यदि घर से बाहर निकलें तो सुरक्षित रहें। इस संदर्भ में उन्होंने पश्चिमी देशों का हवाला दिया जहां देर रात भी महिलाएं सुरक्षित बाहर निकल सकती हैं और घूम सकती हैं। एक कदम और आगे बढ़कर उन्होंने कहा कि महिलाएं ही क्यों किसी भी निरीह व्यक्ति पर अत्याचार नहीं होना चाहिए। निरीह व्यक्तियों की सेवा करना ईश्वरीय कृत्य है। लेकिन कैसे? यह तस्वीर अभी भी साफ नहीं हो पाई। 

एसपी आरपी सिंह ने अपने संबोधन में काफी विस्तार से आदिम काल से लेकर महिलाओं के प्रति सामाजिक रवैये को स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि महिलाओं की स्थिति हर समाज में बदलती रही है। एक जमाना वह भी रहा जब महिलाओं को अपनी इज्जत की रक्षा करने के लिए जौहर करना पड़ा। यह स्थिति कमोवेश आज भी जारी है। कुछ तह में जाने का प्रयास करते हुए एसपी आरपी सिंह ने कहा कि महिलाओं के प्रति नजरिया घरेलू वातावरण के कारण है। घरों में लड़का और लड़की में भेद रखा जाता है। दुर्भाग्य की बात तो यह है कि लड़कों की एक शासक जैसी स्थिति बनाने में माता और दादी भी सहयोग करती हैं। लड़की को घर में एक तरह से प्रताडित किया जाता है। उस पर रूतबा उसके छोटे भाई तक गांठते हैं। 

श्री सिंह ने कहा कि बहू को अपनी पुत्री समझने की मानसिकता हम नहीं बना पाए हैं। इसी हताशापूर्ण स्थिति में एसपी आरपी सिंह ने अपना उद्बोधन समाप्त किया और वे निराश तक नजर आए। यह कहने का साहस आरपी सिंह ही कर सकते हैं कि उनके कार्यकाल में इस वर्ष 2013-14 के प्रथम माह में ही बलात्कार के 18 मामले जिले में दर्ज हो चुके हैं। उनकी निराशा देखिये कि एक मामला ऐसा भी आया जिसमें सौतेले पिता ने अपनी पुत्री के समक्ष विवाह का प्रस्ताव रखा, लेकिन पुत्री सहमत नहीं हुई। मामला पुलिस में आया, परंतु हम अभी तक आरोपी को गिरफ्तार नहीं कर पाए। सेमीनार का संचालन शैला अग्रवाल ने किया।
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