आखिर इस लाश को किसने चीथा सिविल सर्जन साहब...?

शिवपुरी। एक अनार सौ बीमार की कहावत को चरितार्थ करता जिला अस्पताल भले ही आज आधुनिक युग में अपनी आधुनिकता को  और अधिक सुविधाओं में समेटता जा रहा हो लेकिन यहां के हालातों पर गौर करें तो यहां सिर्फ कचरा ही नजर आएगा और व्यवस्थाओं के नाम पर महज योजनाओं के क्रियान्वयन का पीटने वाला ढिंढोरा।


सही अर्थों में देखा जाए तो जिला चिकित्सालय में पदस्थ चिकित्सक व सिविल सर्जन अपनी मनमर्जी से किए जाने वाले कार्यों को ही करते है यही कारण है कि आपसी सामंजस्य का भेदभाव हमेशा बना रहता है। जिला चिकित्सालय में सुरक्षा व व्यवस्थाओं की कलई तो खुलकर तब सामने आई जब सड़क दुर्घटना में मारी गई एक महिला की लाश को जिला चिकित्सालय में ही उसे कुत्तों ने चीथ खाया। वैसे इस मामले में चिकित्सालय प्रबंधन अपने हाथ खड़े कर रहा है लेकिन वह मृत देह आज भी जिला चिकित्सालय के प्रबंधन का भार झेल रहे सिविल सर्जन से पूछ रही है कि आखिर उसे कुत्तों ने नहीं चीथा तो किसने चीथा...? लगता है यहां की व्यवस्थाओं ने इस महिला के शरीर को चीथने पर कुत्तों को मजबूर कर दिया और यहां चिकित्सकीय व्यवस्थाओं की कमी खुलकर सामने आ गई। अब ऐसे में अपनी गलती स्वीकारने के बजाए चिकित्सकीय प्रबंधन इस पूरे मामले से पल्ला झाड़ रहा है लेकिन असलियत में यहां जो दोषी है वह है प्रबंधन के कर्ताधर्ता सिविल सर्जन डॉ.गोविन्द सिंह, जो व्यवस्थाओं को बना पाने में शुरू से ही नाकाम रहे है।

यहां बता दें कि बीते रोज जब जिला चिकित्सालय में मानवीय संवेदना को ध्यान में रखते हुए किन्हीं अज्ञात व्यक्तियों ने सड़क दुर्घटना में घायल एक महिला को उपचार के लिए जिला चिकित्सालय में इसलिए भर्ती कराया ताकि समय रहते महिला को उपचार मिले और वह स्वास्थ्य लाभ लें, चूंकि महिला के साथ अबोध मासूम बालिका भी इसलिए और महिला की पीड़ा को मानवीय व्यक्ति सह ना सके और महिला को भर्ती करा दिया लेकिन यहां खैराती के अस्पताल में व्यवस्थाओं के नाम पर पीटा जाने वाला ढोल उस समय फट गया जब इस महिला ने उपचार के अभाव में दम तोड़ दिया। यहां तक तो ठीक भी था कि महिला की मौत हो गई परन्तु क्या इस ओर प्रतिदिन मरीजों की जांच करने वाले चिकित्सक, नर्स अथवा चिकित्सकीय प्रबंधन का कोई दायित्व नहीं बनता कि जो मरीज चिकित्सालय में भर्ती है आज उसकी हालत क्या है और उसमें क्या सुधार हुआ है? आखिर अपने कर्तव्य से विमुख रहने वाले चिकित्सकों की भी क्या चंद चांदी के सिक्कों की खनक में संवेदनाऐं इतनी मिट गई कि वह मरीज को हाथ तक लगाना मुनासिब नहीं समझते। क्योंकि जिस महिला की मौत अस्पताल प्रबंधन में हुई उसकी पहचान तब हुई जब उसकी मासूम बालिका को पोषण पुर्नवास केन्द्र में भर्ती कराया गया। यहां भी चिकित्सकीय व्यवस्थाओं की एक ओर कमी नजर आई जिसमें एक पुलिसकर्मी जो इस महिला की मौत के बाद उसकी बच्ची को उपचार कराने जब यूनिट केयर ले गया तो वहां इसका उपचार नहीं हुआ, जब यहां से वह बच्चा वार्ड में ले गया तो वहां भी उसे भर्ती नहीं किया थक-हारकर उस पुलिसकर्मी ने अपने कर्तव्य को निभाते हुए उसे पोषण पुर्नवास केन्द्र में भर्ती कराया। जहां इस बच्ची की पहचान के बाद जिला चिकित्सालय में मृत देह की शिनाख्त हुई लेकिन जब तक शिनाख्त हुई तब तक उस महिला के सिर व अन्य हिस्सों को कुत्तों ने चीथ खाया। चूंकि इस मामले से प्रबंधन हाथ खड़े कर रहा है लेकिन यहां सुरक्षा दृष्टि को धता बताकर आए दिन कुत्ते ऐसे ही मृत देह को नोंचकर खा जाते है तो कहीं अस्पताल से ही मृत व जीवित बच्चे को ले भागते है। ऐसे में अब इस महिला के शरीर के साथ हुई दुर्गति का दोषी कौन है? यहां दोषी के रूप में बात की जाए तो व्यवस्थाओं का जिम्मा संभालने वाले सिविल सर्जन डॉ.गोविन्द सिंह इस मामले में सबसे बड़े दोषी है। प्रशासन को चाहिए कि वह इस मामले को गंभीरता से लें और संबंधित दोषियों के विरूद्ध कार्यवाही करें ताकि आगामी भविष्य में इस तरह की गलती पुन: ना हो।

कठघरे में सुरक्षा व्यवस्था...!


जिला चिकित्सालय में सुरक्षा व्यवस्थाओं के नाम पर प्रतिमाह लाखों रूपये पानी के तरह बहाए जाते है बाबजूद इसके इस तरह की घोर लापरवाही ना केवल सुरक्षाकर्मियों द्वारा अपनाई जाती है बल्कि स्वयं जिला चिकित्सालय के मुखिया व अन्य चिकित्सकों द्वारा भी इस तरह सुरक्षा में चूक की जाती है। गत दिवस मृत महिला की देह के साथ जो अमानवीय कृत्य हुआ उसमें कहीं ना कहीं सुरक्षा व्यवस्था का सबसे बड़ा जिम्मा है जो साफतौर पर लापरवाही को उजागर करता है। ऐसे में जहां आमजन को गेट से प्रवेश ना करने देना, जिला चिकित्सालय में मरीजों की लंबी-लंबी लाईन लगी होने के बाबजूद भी विवाद की स्थिति पैदा होना, जिला चिकित्सालय के चिकित्सकीय कक्षों से मासूम बच्चों का कुत्ते में जबड़े में भरकर ले जाना, मृत शवों के साथ जानवरों की नोंच-खोंच यह सब साफतौर पर सुरक्षा दृष्टि को लापरवाह मानते है और ऐसे में जिस एजेंसी द्वारा यहां सुरक्षा के प्रबंध किए गए है वह कठघरे में है कि कैसे चिकित्सालय परिसर में सूअर, कुत्ते व अन्य जानवर विचरण करते है और इस तरह की घटनाऐं होती है। इस ओर भी कार्यवाही की जानी चाहिए और एजेंसी को सख्त हिदायत देकर वहां के सुरक्षाकर्मियों की ड्यूटी भी सख्ती से पालन कराई जाए तब इस तरह की घटनाओं पर अंकुश लग सकता है।

कैमरों की भी खुली पोल


मध्य प्रदेश शासन द्वारा चिकित्सालयों में भर्ती किए जाने वाले मरीजों की सुरक्षा की दृष्टि से लाखों रूपए खर्च कर प्रत्येक वार्ड में सी.सी. कैमरे लगाए गए हैं। जिस से प्रत्येक वार्ड में होने वाली गतिविधियों का एक ही जगह बैठकर जायजा लिया जा सके। लेकिन जिला चिकित्सालय शिवपुरी में मृत महिला के शरीर को आवारा कुत्ते घंटों नौंचते खाते रहे लेकिन सी.सी. कैमरों के माध्यम से अस्पताल के किसी अधिकारी व कर्मचारी ने उक्त घटना को देखने की हिम्मत तक नहीं जुटा सके। रात्रि कालीन ड्यूटी पर तैनात चिकित्सकों के अलावा स्टाफ नर्स, ए.एनएम, वार्डवाय तथा स्वीपर उस समय कहां पर नदारद थे। जब कुत्ते महिला के मृत शरीर को नौंचकर खा रहे थे? कुल मिलाकर यहां लगे सीसीटीव्ही कैमरों की भी पोल खुलती नजर आई।