ये तात्या का सम्मान है या अपमान

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अमर शहीद तात्याटोपे
सेन्ट्रल डेस्क
शिवपुरी की उपजेल का नाम अब तात्याटोपे बंदी सुधार गृह शिवपुरी होगा। यह निर्णय आज भाजपा के दो विधायकों माखनलाल एवं रमेश खटीक की उपस्थिति में कलेक्टर शिवपुरी एवं उनके प्रतिनिधि अधिकारियों ने एक बैठक में लिया एवं इस बावत प्रस्ताव शासन को भेजने का निर्णय लिया गया। बिना आमजन या किसी इतिहासकार की उपस्थिति के यह निर्णय कुछ ऐसे लोगों ने लिया जिनका न तो इतिहास के काई रिश्ता है और न ही शिवपुरी से। समझ नहीं आ रहा इस निर्णय के माध्यम से भाजपा के कथित जनप्रतिनिधियों एवं अधिकारियों ने तात्याटोपे का सम्मान किया है या अपमान..?  इस प्रश्र का जबाव अभी खोजा जाना शेष है कि इस तरह का निर्णय लेकर तात्याटोपे से कौन सी दुश्मनी का बदला लिया गया है।

कौन है तात्याटोपे


बहुत लम्बी कहानी सुनाने की जरूरत नहीं है, शिवपुरी का बच्चा बच्चा जानता है परंतु इस मीटिंग में मौजूद भाजपा के विधायक माखनलाल राठौर, रमेश खटीक, एसडीएम एके कम्ठान, डिप्टीकलेक्टर व्ही एस कुर्रे, डीसी जैन एवं जेलर व्हीएस मौर्य शायद नहीं जानते और उन्हें बताना जरूरी हो जाता है कि 1857 उस काल का नाम है जब संचार के साधन नहीं हुआ करते थे, तब एक व्यक्ति ने पूरे देश में एकसाथ अंग्रेजों के खिलाफ क्रांति की योजना बनाई। न केवल बनाई बल्कि साकार करके भी दिखाई। यदि देश के गद्दार राजाओं ने अंग्रेजों का साथ न दिया होता तो आजादी उसी समय मिल गई होती, लेकिन ये मीटिंग में बैठे लोग क्या जानें कि बिना संचार के साधनों के संदेश को एक जगह से दूसरी जगह और पूरे भारत में एक साथ भेजने का अर्थ क्या होता है..? कैसे जंगलों में छिपते हुए सैनाएं बनाई जातीं हैं और कैसे सिंधिया के मुरार केम्प में घुसकर सैनिकों को बगावत के लिए तैयार किया जाता है।

जेल का नाम ही क्यों


शिवपुरी में बहुत से चौराहे, सड़कें, स्कूल और कॉलेज हैं, खेल के मैदान हैं, पार्क हैं। बहुत कुछ बनाया जाना बाकी है। यदि कहीं नामकरण करना ही है तो किसी ऐसे स्थान का कीजिए जहां यह प्रतीत होता हो कि तात्याटोपे से प्रेरणा ली जानी चाहिए। जेल का नाम रखने से लोग क्या प्रेरणा लेंगे और क्या सीखेंगे। तात्याटोपे एक ऐसा क्रांतिकारी जो जेल में रहता था..? ये प्रशासन एक ऐसे योद्धा को अपमानित कर रहा है जिसे अंग्रेज सरकार कभी गिरफ्तार नहीं कर पाई। आज भी तात्या की गिरफ्तारी और फांसी को लेकर मतभेद हैं, लेकिन शिवपुरी अपनी पहचान के लिए तात्याटोपे का बलिदान दिवस मनाती आ रही है। हमारा सवाल यह है कि माधवराव सिंधिया और राजमाता सिंधिया यहां तक कि इंदिरा गांधी जैसे नामों पर बेहतरीन शिक्षा संस्थानों का नामकरण किया गया है परंतु तात्याटोपे के लिए जेल ही क्यों..? पुलिस मुख्यालय या सुरक्षा से जुड़ा कोई कार्यालय क्यों नहीं..?

धिक्कार है धिक्कार है

 
जिलाधीश से चर्चा करते हुए विधायकगण
हम शिवपुरीसमाचार.कॉम की ओर से साक्षात धिक्कार प्रेषित करते हैं भाजपा के उन दोनों जनप्रतिनिधियों को जिन्होंने इसके लिए जनता के ठेकेदार के रूप में सहमति व्यक्त की। हम क्षमा चाहते हैं दोनों विधायकों से परंतु कहना ही होगा कि वो माखनलाल राठौर जो केवल रामलीलाओं का एक पात्र हुआ करता था, क्या समझेगा इतिहास के महत्व को और रमेश भाईसाहब की तो बात ही क्या। पता नहीं दसवीं में इतिहास में कितने नंबर आए होंगे। शिवपुरी के उन मतदाताओं को आज बहुत खेद हो रहा होगा जिन्होंने इन जनप्रतिनिधियों को वोट किए जिन्हें अपने समृद्ध इतिहास की जानकारी ही नहीं है। माना कि जेल व्यवस्था के तहत एक सुधार गृह है परंतु तात्याटोपे कोई समाजसेवी नहीं थे, मदर टेरेसा नहीं थे, जिन्होंने लोगों को सुधार हो। वो तो एक योद्धा थे, सेनापति थे, प्रशिक्षक थे। गांव के आदिवासियों को भी अंग्रेजों के खिलाफ हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया था उन्होंने। शिवपुरी को गर्व है कि फिजीकल कॉलेज का नाम तात्याटोपे के नाम पर है, कम से कम उनके चरित्र से मेल तो खाता है। यदि जरा भी शर्म शेष है शिवपुरी के जनप्रतिनिधियों में, यदि जरा भी प्रेम है शिवपुरी के इतिहास ज्ञाताओं में तात्याटोपे के प्रति और यदि जरा भी आत्मसम्मान शेष रह गया है शिवपुरी के संस्कारित युवाओं में तो उन्हें चाहिए कि वे इसका सार्वजनिक रूप से विरोध करें। समय निकालें कम से कम उस तात्याटोपे के लिए, जिसने अपना पूरा जीवन बलिदान कर दिया अपने देश की आजादी के लिए।
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