शिवपुरी जिले में आपसी प्रतिद्वंदी में फंसते कांग्रेसी

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शिवपुरी। जिले भर में इन दिनों आगामी समय में आने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर काफी ऊहापोह की स्थिति निर्मित हो रही है। हर जगह दोनों ही पक्ष अपने-अपने उम्मीदवारों को लेकर विचार-विमर्श के साथ तैयारियों में भी जुटे है लेकिन सर्वाधिक वर्चस्व की लड़ाई यदि कहीं नजर आ रही है तो वह कांग्रेस पार्टी। क्योंकि कांग्रेस पार्टी में आपसी प्रतिद्वंदता इतनी हैकि हर कांग्रेसी आपस में दा गुटों में बंटकर एक-दूसरे को नीचा दिखाने से पीछे नहीं हट रहे।
बात चाहे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शिवपुरी आने की हो अथवा केन्द्रीय राज्यमंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के समय फोरलेन भूमिपूजन अवसर पर कुछ कांग्रेसियों की दूरी का। इन दोनों ही मामलों में वे ही कांग्रेसी सामने आए जिन्होंने अपने-अपने मातहतों से अपने आपको टिकिट का दावेदार मानकर अपनी छाप छोड़ी। देखा जाए तो कांग्रेस के आपसी मन-मुटाव के कारण यहां हालात बिगड़ेंगे। जिले की सभी विधानसभा क्षेत्रों में यही देखने को मिल रहा है। इसके लिए अभी से उम्मीदवार अपना-अपना टिकिट मानकर तैयारियों में जुट गए है। कहीं कोई भोज कर रहा है तो कहीं कोई ग्रामीणजनों व शहरवासियों से आपसी तालमेल बिठा रहा है।

जिले की कांग्रेस राजनीति में इस समय गुटबाजी चरम सीमा पर पहुंच गई है। पिछोर क्षेत्र में केपी सिंह के निष्कंटक राज को छोड़ दें तो शेष चार विधानसभा क्षेत्रों शिवपुरी, पोहरी, कोलारस और करैरा में कांग्रेसी ही कांग्रेस के  दुश्मन बने बैठे हैं। जब भी मौका मिलता है तो शिवपुरी के पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी, पोहरी के पूर्व विधायक हरिबल्लभ शुक्ला, करैरा की चाहे शकुंतला खटीक हों या केएल राय इन्हें नीचा दिखाने का इनके प्रतिद्वंदी कोई मौका नहीं छोड़ते।
कोलारस में तो पिछले विधानसभा चुनाव में महज गुटबाजी के कारण कांग्रेस को सीट गंवानी पड़ी और इस बार भी आसार कोई बहुत अच्छे नजर नहीं आ रहे। इसके बाद भी संभावित दावेदारों को भरोसा है कि यदि उन्हें टिकिट मिला तो वह अवश्य चुनाव जीतेंगे। इस कारण भी प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में दावेदारों की कतार लम्बी होती जा रही है, साथ ही प्रतिद्वंदिता भी उसी अनुपात में बढ़ रही है।

शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में भले ही दावेदार की दृष्टि से चेहरा वीरेन्द्र रघुवंशी का दिख रहा है, लेकिन सिंधिया की सहमति के  आसार के बाद भी अनेक कांग्रेसी टिकिट की हसरत रख रहे हैं। यहां तक कि सिंधिया परिवार के खास विश्वासपात्र होने का अजीब तरीके से दावा करने वाले मनोज अरोरा भी अपने आपको को टिकिट की कतार में मानते हैं। लेकिन गंभीर रूप से प्रयास करने वालों में हाल ही में दिग्गी खैमे में गए राकेश गुप्ता, राकेश जैन और नगरपालिका अध्यक्ष पद के चुनाव में अपने पत्ते खोल चुके अजय गुप्ता भी शामिल हैं। अजय तो यह कहने में भी नहींं चूकते कि उन्हें मजा यशोधरा राजे सिंधिया से चुनाव लडऩे में आएगा। टिकिट की भूख इतनी जबर्दस्त है कि जब भी दूसरे को नीचा दिखाने का मौका आता है वह अवसर नहीं छोड़ा जाता।

पिछले माह पूर्व विधायक वीरेन्द्र रघुवंशी ने वार्ड-वार्ड भ्रमण कर नगरपालिका के खिलाफ मोर्चा खोला और उनके  अभियान को पलीता लगाने वाले और कोई नहीं कांग्रेसी ही थे ताकि टिकिट की लाइन से रघुवंशी अलग हो जाएं। राकेश गुप्ता और वीरेन्द्र रघुवंशी की तो कभी नहीं बनी और राकेश जैन भी दोनों से बराबर प्रतिद्वंदिता मन में पाले हैं। यह बात अलग है कि सामने आने में वह सकुचाते हैं। पोहरी की बात करें तो पिछले चुनाव में यहां से कांग्रेस का जो हश्र हुआ था उसकी झलक दावेदारों की लम्बी कतार से कतई नहीं मिलती। मोटे तौर पर यहां हरिबल्लभ समर्थक और विरोधी गुट कार्यरत हैं।

विरोधी गुट में सुरेश रांठखेड़ा से लेकर एनपी शर्मा, विनोद धाकड़, राजेन्द्र पिपलौदा, माताचरण शर्मा, लक्ष्मीनारायण धाकड़, केशवसिंह तोमर, जमील खान आदि शामिल हैं और हरिबल्लभ की काट के लिए उनका तर्क है कि उनके अलावा किसी को भी टिकिट दो, लेकिन प्रत्येक टिकिट के लिए आतुर है और एक-दूसरे का दुश्मन बना हुआ है। ये लॉबी हरिबल्लभ को भाजपा से भी अधिक दुश्मन नंबर एक मानती है।

करैरा में जनशक्ति पार्टी से आईं श्रीमती शकुंतला खटीक ने ठेठ कांग्रेसियों को पीछे छोड़ दिया है तो यह फैक्टर भी गुटबाजी बढ़ाने वाला साबित हो रहा है। यहां केएल राय, योगेश करारे, पूरन सिंह बेडिय़ा, अवधेश बेडिय़ा, दासीराम अहिरवार सहित अनेकों दावेदार हैं और सब एक-दूसरे की टांग खींचने में मशगूल हैं। कोलारस में सभी जानते हैं कि पिछले चुनाव में रामसिंह यादव को भाजपाईयों ने नहीं, बल्कि कांग्रेस ने हराया था। इस बार ऐसा नहीं होगा, यह कैसे कहा जा सकता है। संभावित दावेदार रामसिंह यादव, बैजनाथ सिंह यादव, रविन्द्र शिवहरे, मिथलेश यादव, वीरेन्द्र रघुवंशी के सजातीय दुश्मनों की कमी नहीं है। इसके बाद भी हास्यास्पद बात यह है कि कांग्रेसी जीत के मुगालते में हैं।

गुटबाजी को मंच से स्वीकार किया सिंधिया ने

कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव और पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के शिवपुरी आगमन के अवसर पर जिस आश्चर्यजनक तरीके से सिंधिया समर्थकों ने उनका पाला छोड़कर दिग्गी राजा से प्रेम की पींगें बढ़ाईं थी उससे श्री सिंधिया कांग्रेस गुटबाजी की भयावहता को महसूस कर चुके हैं और उन्होंने इन्दौर में कहा भी कि कांग्रेस कार्यकर्ता संतुष्ट नहीं है और गुटबाजी एक बड़ी समस्या है, लेकिन उनके बयान का दिग्विजय सिंह ने खण्डन करते हुए कहा कि गुटबाजी सामान्य बात है और हर मौके पर कांग्रेस में गुटबाजी रही है।

 श्री सिंधिया पर प्रहार करते हुए उन्होंने यहां तक कहा कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं को सीधे आलाकमान से जुडऩा चाहिए। इस बयान के बाद कांग्रेस पार्टी में काफी हो-हल्ला भी मचा था और कई कांग्रेसियों ने तो इस बात को लेकर पार्टी हाईकमान सोनिया गांधी से मुलाकात कर गुटबाजी की शिकायत लिखित रूप से की। हालांकि यह बात अलग है कि संगठन के आपसी विचार-विमर्श क्या निष्कर्ष निकला यह अभी भविष्य के गर्त में छिपा अथवा मामला वहीं शात हो गया हो।
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