केपी सिंह ने कहा: एसडीएम खुलेआम भ्रष्टाचार कर रहा है

शिवपुरी-भ्रष्टाचार, हाहाकार,योजनाओं का क्रियान्वयन न होना, भ्रष्ट अधिकारी और भ्रष्ट सरकार तो फिर कैसे कहा जाएगा कि प्रदेश में हो रहा है विकास। यहां तो अब मासूमों के हक पर भी डांका डाला जा रहा है। पिछोर क्षेत्र में इन दिनों मध्याह्न भोजन योजना(एमडीएम) और आंगनबाड़ी केन्द्रों पर वितरित होने वाला पोषण आहार भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ता नजर आ रहा है क्योंकि इन योजनाओं से वह हितग्राही ही लाभान्वित नहीं हो पा रहा जिसे इसकी आवश्यकता है दूसरी ओर प्रदेश सरकार विकास यात्रा का ढिंढोरा पीट रही है इसे कैसे हम प्रदेश के विकास में सहायक मान सकेंगे।


वहीं सरकारी एजेंसी,स्वयं सहायता समूह एवं हितबद्ध राजनीतिज्ञ मिलकर इन दोनों योजनाओं पर काबिज है व्यापक फर्जीबाड़े को आधार बनाकर ये सुगठित माफिया चिह्नित जरूरतमंदों के हितों पर डांका डाल रहे है। इस संबंध में एक पत्र माननीय प्रधानमंत्री को भी भेजा है ताकि प्रदेश में इन योजनाओं को किस तरह मटियामेट किया जा रहा है इस ओर प्रदेश सरकार ध्यान दे और गरीबों के हक का निवाला उन्हें उपलब्ध हो सके। उक्त आरोप लगाए पूर्व मंत्री एवं पिछोर विधायक के.पी. सिंह कक्काजू ने जिन्हेांने स्थानीय शिवपुरी स्थित निवास पर आयोजित प्रेसवार्ता के माध्यम से अपनी बात कही। साथ ही आए दिन होने वाली अनर्गल टिप्पणी को लेकर प्रदेशाध्यक्ष झा की बयानबाजी भी विकृत मानसिकता का परिचायक बताया।

शिवपुरी प्रवास के दौरान निज-निवास पर आयोजित पत्रकारवार्ता में पूर्व मंत्री एवं पिछोर विधायक के.पी. सिंह कक्काजू ने पिछोर ही नहीं बल्कि संपूर्ण जिले भर में मध्याह्न भोजन योजना और आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बंटने वाले पोषण आहार को भ्रष्टाचार की भेंट चढऩा बताया साथ ही हितग्राही मूलक योजनाओं का भुगतान मनरेगा की तर्ज पर बैंक खातों के माध्यम से कराए जाने एवं सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के मद से बैंकिंग मानव संसाधन सृजन की बात भी कही। श्री सिंह ने इस संदर्भ में एक पत्र माननीय प्रधानमंत्री को भी लिखा है और मनरेगा के तहत मजदूरों का भुगतान सीधे बैंक खातों के माध्यम से कराए जाने की नवीन व्यवस्था से देश भर में इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन से भ्रष्टाचार समाप्त करने में काफी सफलता प्राप्त हुई है और अब मनरेगा का फायदा सीधे वास्तविक जरूरतमंद को मिलता हुआ दिख रहा है। इस नीतिगत बदलाव के लिए यूपीए सरकार साधुवाद की पात्र भी है। श्री सिंह ने प्रेसवार्ता के माध्यम से मैदानी अनुभव के आधार पर मनरेगा के संबंध में बैंकिंग क्षेत्र से जुड़ी एक व्यावहारिक परेशानी का जिक्र करते हुए बताया कि देश में बैकिंग संस्थाओं की पहुंच अभी भी हर आदमी तक नहीं है, जिस बड़े पैमाने पर मनरेगा के खाते खोले जा रहे है उसके अनुपात में बैंकिंग क्षेत्र के पास मानव संसाधन का आभाव है। 

ग्रामीण/तालुका स्तर पर बैंकों की सीमित क्षमता के कारण बड़ी संख्या में ग्रामीणों के खाते नहीं खुल पा रहे है जिन ग्रामीणों के खाते खुल रहे है उनके लिए भुगतान प्रक्रिया बैंकों के पास कर्मचारियों की कमी के कारण काफी जटिल और समय लेने वाली साबित हो रही है। श्री सिंह ने बैकिंग मानव संसाधन व मनरेगा के बारे में कहा कि बेहतर होगा यदि मनरेगा और दूसरी इसी तरह की योजनाओं के बजट में से कुछ हिस्सा बैकिंग मानव संसाधन के लिए प्रावधित कर दिया जाये इस बजट से बैंकों में सामाजिक सुरक्षा विभाग अलग से स्थापित किया जाये। जिसका परिचालन पूरी तरह से इन्हीं येाजनाओं के लिए हो और इस विभाग में नवीन भर्ती की प्रक्रिया अलग से संस्थित हो। 

श्री सिंह ने सामाजिक सुरक्षा विभाग से दूसरी केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं को भी संयुक्त किए जाने की आवश्यकता बताया मसल अनुसूचित जाति-जनजाति छात्रवृत्ति,स्कूलीी छात्र-छात्राओं को वितरित होने वाली यूनीफार्म, सामाजिक सुरक्षा पेंशन जैसी गरीबों और जरूरतमंदों के लिए संचालित योजनाऐं क्योंकि ये अधिकतर योजनाओं बिचौलियों और संस्थागत भ्रष्टाचार का शिकार है। इस तरह श्री सिंह ने पत्र में प्रधानमंत्री से आशा व्यक्त की कि बैंकों के कारोबारी कार्य इतने अधिक है कि वे इन सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के कार्यों के संपादन में सक्षम नहीं इसलिए यदि मानव संसाधन की उनकी बुनियादी समस्या को हम इस माध्यम से निराकृत करने की कोशिश करेंगे तो हमारी सरकार तुलनात्मक रूप से आम आदमी के अधिक नजदीक साबित होगी।