मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय अधिनियम: पढि़ए क्या है इस नए कानून में

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दिनेश मालवीय
भोपाल. राज्य शासन द्वारा मध्यप्रदेश विशेष न्यायालय अधिनियम को लागू करने के अंतर्गत नियमों का निर्धारण कर अधिसूचना जारी कर दी गई है। जारी अधिसूचना के अनुसार मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय के परामर्श से मध्यप्रदेश उच्च न्यायिक सेवा के सेवारत अधिकारी को विशेष न्यायालय के पीठासीन न्यायाधीश के रूप में नाम निर्दिष्ट किया जायेगा। उसकी अधिकारिता राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से निर्धारित की जायेगी। विशेष न्यायालय की बैठकें उच्च न्यायालय के परामर्श से निर्धारित स्थानों पर होंगी।
  1. पीठासीन न्यायधीश की पदावधि सामान्य रूप से 3 वर्ष होगी, लेकिन वह दूसरे पीठासीन न्यायाधीश के नाम-निर्दिष्ट होने और उसके पद ग्रहण करने तक पद पर बना रह सकेगा। 
  2. विशेष न्यायालय केवल ऐसे अपराधों का संज्ञान लेगा और उन मामलों का विचारण करेगा, जो धारा 6 की उपधारा (1) के अधीन उसके सामने संस्थित किये जायेंगे अथवा उसकी उपधारा (2) अथवा धारा 10 के अधीन उसे अंतरित किया जायेगा। 
  3. विशेष न्यायालय में मामलों को संस्थित करने तथा उनका संचालन करने के लिये राज्य सरकार द्वारा एक अथवा एक से अधिक विशेष लोक अभियोजक नियुक्त किये जायेंगे, जिनकी पदावधि सामान्य रूप से 3 वर्ष होगी। 
  4. विशेष लोक अभियोजकों और अतिरिक्त तथा सहायक लोक अभियोजकों को राज्य शासन द्वारा समय-समय पर विनिश्चित दरों पर फीस और भत्तों का भुगतान किया जायेगा।
    राज्य सरकार द्वारा उच्च न्यायालय के परामर्श से मध्यप्रदेश उच्च न्यायिक सेवा संवर्ग के किसी ऐसे अधिकारी को प्राधिकृत रूप से कार्य करने के लिये नाम-निर्दिष्ट किया जायेगा जो सत्र न्यायाधीश या अपर सत्र न्यायाधीश हो या रह चुका हो। 
  5. प्राधिकृत अधिकारी भारतीय दण्ड संहिता की धारा 21 के अर्थ के अंतर्गत लोक-सेवक होगा और उसके समक्ष की कोई कार्यवाही संहिता की धारा 228 के प्रयोजन के लिये न्यायिक कार्यवाही समझी जायेगी। 
  6. अधिनियम की धारा 14 के साथ पठित धारा 13 के अधीन आवेदन प्राप्त होने पर प्राधिकृत अधिकारी प्रभावित व्यक्ति को तुरंत नोटिस जारी करेगा। 
  7. यदि वह नोटिस का जवाब देता है या व्यक्तिशः अथवा अपने विधिक प्रतिनिधि के माध्यम से प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष उपस्थित होता है तो उसे फाइल किये गये आवेदन की प्रति अनुलग्नकों के साथ दी जायेगी। 
  8. प्राधिकृत अधिकारी बचाव में अपने कथन फाइल करने के लिये 30 दिन का समय देगा। यदि प्राधिकृत अधिकारी के समाधानपरक ठीक और विधिमान्य कारणों से प्रभावित व्यक्ति अपने बचाव में कथन फाइल नहीं कर पाता तो उसे 15 दिन का और समय दिया जा सकेगा। 
  9. यदि प्रभावित व्यक्ति 30 दिन की अवधि में अथवा 15 दिन की विस्तारित अवधि में अपने बचाव में कथन फाइल नहीं करता है तो यह माना जायेगा कि उसे बचाव में कुछ नहीं कहना है। ऐसी स्थिति में प्राधिकृत अधिकारी अपने समक्ष संस्थित कार्यवाही पर न्याय निर्णयन करने पर स्वतंत्र होगा। 
  10. यदि प्रभावित व्यक्ति अपने बचाव में कथन फाइल करता है तो उसकी एक प्रति प्राधिकृत अधिकारी के समक्ष कार्यवाही संचालित करने वाले विशेष लोक अभियोजक को उपलब्ध करचाई जायेगी, जिससे उसे प्रतिउत्तर देने का अवसर मिल सकेगा। 
  11. विशेष लोक अभियोजक को उस पर बचाव में किये गये कथन तामील किये जाने से अधिकतम 15 दिन के भीतर प्रतिउत्तर देना होगा। ऐसा न करने पर प्राधिकृत अधिकारी 15 दिन का और समय दे सकेगा, जिसमें असफल रहने पर प्राधिकृत अधिकारी यह मानकर कार्यवाही के न्याय निर्णयन की कार्यवाही प्रारंभ कर देगा कि अभियोजन को कोई प्रतिउत्तर नहीं देना है।
  12. यदि प्रभावित व्यक्ति सम्पत्ति के मूल्यांकन का विरोध करता है तो प्राधिकृत अधिकारी राज्य सरकार के या केन्द्र सरकार की ऐसी एजेंसी या किसी अन्य अधिकारी या तकनीकी रूप से अर्ह व्यक्ति की सहायता ले सकेगा जिसे वह योग्य और उचित समझे। 
  13. प्राधिकृत अधिकारी, आवेदन, बचाव के बयान, विशेष लोक अभियोजक के प्रतिउत्तर तथा विशेषज्ञों की रिपोर्ट पर विचार करने के बाद कार्यवाही न्याय निर्णित करेगा और नोटिस तामील किये जाने की तारीख से अधिकतम 6 माह की अवधि में अंतिम निर्णय सुनायेगा।
  14. प्राधिकृत अधिकारी अंतिम न्याय निर्णयन के पश्चात अधिनियम की धारा 15 के अनुसार सम्पत्ति जब्त करने की कार्यवाही कर सकेगा। जब्त की गई सम्पत्ति का बाजार मूल्य जो प्राधिकृत अधिकारी के पास जमा कर दिया गया हो, उसे राष्ट्रीयकृत बैंक में सावधि जमा किया जायेगा। 
  15. यदि प्राधिकृत अधिकारी, प्रभावित व्यक्ति का धन तथा सम्पत्ति जब्त करने का आदेश पारित करता है तो धन तथा सम्पत्ति उस जिले के जिला मजिस्ट्रेट के पास, जिसमें कि सम्पत्ति स्थित है, परिबद्ध रहेगी और उसे सौंप दी जायेगी। 
  16. जिला मजिस्ट्रेट, जहाँ तक साध्य हो, राज्य सरकार के निर्देशों के अधीन मामले का विनिश्चय होने तक सम्पत्ति का जनहित में उपयोग कर सकेगा। 
  17. यदि प्रभावित व्यक्ति को विचारण न्यायालय द्वारा अपराध का दोषसिद्ध ठहराया जाता है तो जब्त किया गया धन और सम्पत्ति राज्य सरकार के आधिपत्य में रहेंगे।
  18. राज्य सरकार, विशेष न्यायालय एवं प्राधिक्रृत अधिकारी को उनके द्वारा पारित आदेश को कार्यान्वित एवं लागू करने में यथा अपेक्षित पुलिस अधिकारियों की सहायता उपलब्ध करवायेगी।

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