भगवान के गर्भ से होती है तन और मन की उत्पत्ति : संत श्रीकृष्णा स्वामी

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शिवपुरी-इस संसार में यदि मनुष्य के पास तन और मन है तो वह है केवल भगवान के द्वारा क्योंकि संसारी प्राणी का जन्म तो उसकी मॉं के गर्भ से होता है लेकिन उसमें मन और तन की उत्पत्ति भगवान ही करते है। मन और कर्म के द्वारा ही ईश्वर को पाने को मार्ग ढूंढा जा सकता है क्योंकि जैसे कर्म होंगे वैसा ही फल मिलेगा इसीलिए आज श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया है तो उनके जीवन से प्रेरणा लें और सत्य मार्ग को अपनाऐं भगवान श्रीकृष्ण ने भागवत गीता में जो कहा है यदि उसे अपना लिया जाए तो सभी व्यथाऐं दूर हो सकती है। भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की इस लीला को वर्णित कर रहे थे महामण्डलेश्वर संत श्रीकृष्णा स्वामी जो स्थानीय कैला माता मंदिर में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा में श्रीकृष्ण-राम की कथाओं का वर्णन श्रवण करा रहे थे। इस अवसर पर नन्द लला का जन्मोत्सव बड़े ही उल्लास के साथ मनाया गया।


कैला माता मंदिर पर शहर के प्रतिष्ठित गोयल परिवार द्वारा श्रीमद् भागवत कथा में आज भगवान श्रीकृष्ण और राम का जन्म हुआ। इस अवसर पर मंदिर प्रांगण को बड़े ही आकर्षक ढंग से सजाया गया। जहां श्रीकृष्ण जन्म के अवसर पर वासुदेव की भूमिका में विनीत गोयल ने, नन्द का अभिनय अशोक गोयल ने जबकि यशोदा का किरदार अनीता गोयल द्वारा निभाया गया। जहां एक टोकरी में छोटे से अबोध बालक को रखकर श्रीकृष्ण की छवि का चित्रण व्यासपीठ से संतश्रीकृष्णा स्वामी ने कराया। कथा में आज श्रवण कराते हुए संत श्री स्वामी ने बताया कि  जन्म लेने से पहले तन बनता है फिर कर्म और फिर तन में कर्म की उत्पत्ति होती है पुन: संगति से कर्म की संगति से मन का निर्माण होता है। 

सतयुग में नारायण अवतार होता है सतयुग मॉं का गर्भ है जहां तन का निर्माण होता है। संसार भगवान का गर्भ(नीचे पृथ्वी तो ऊपर आकाश) है। भगवान के गर्भ में कर्म एवं मन की उत्पत्ति होती है। नारायण नीति(नियम) के देवता है नीति-सदैव नाता मानकर निभाई जाती है जबकि नाता जन से होता है जैसे जन्म देने वाली मॉं, पालन करने वाले पिता आदि ये सब तन अर्थात् काया से कर्म का जन्म होता है। संत श्री स्वामी ने कहा कि कर्म रीति दो प्रकार की होती है एक अपने लिए एवं दूसरी व्यवहार(जगत) के लिए। जहां अपने लिए  किया हुआ कर्म ही बंधन है कर्म व्यवहार में मन(प्रीति) का जन्म होता है। नारायण अर्थात जल से उत्पन्न होने वाले अर्थात् शरीर जल से उत्पन्न होता है। कर्म काया, मन संगति से उत्पन्न होते है। नारायण नीति के देवता, राम रीति(कर्म/धर्म) के देवता है जहां श्रीकृष्ण प्रीति(मन)के देवता है। 

नारायण तन में मन में राम धन/कर्म में श्रीकृष्ण मन में निवास करते है तब तन नीति पर चले, धम/कर्म रीति पर चले और मन प्रीति पर चले तो मोक्ष हो जाता है अर्थात् वाणी धर्म(नारायण) से स्वयंवर करते,कर्म रीति से स्वयंवर और मन प्रीति से स्वयंवर कर लें तो मोक्ष की में सबलता को ग्रहण करें तो मुक्ति की प्राप्ति हो जाती है। काया(देह), बंधन(कर्म) और मन(आत्मा) तीनों का ही संगम समाप्त हो जाता है जिससे जन्म मरण मिट जाता है। कैला माता दरबार में आज बड़े ही उत्साह से श्रीकृष्ण-राम का जन्मोत्सव मनाया गया। जहां कल 20 जनवरी को श्रीकृष्ण-राम के जीवन की कथाओं का वृतान्न्द संतश्रीस्वामी द्वारा श्रवण कराया जाएगा।
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