शिवपुरी में हुई इस मौत का जिम्मेदान कौन है-कप्तान साहब?

शिवपुरी-पुलिस जो कि जनसेवा देश सेवा का दंभ भरती है लेकिन देखा जा रहा है कि अब पुलिस अपने कर्तव्यों से भटक सी गई है। क्योंकि एक ओर तो चोर और अन्य घटनाक्रम पुलिस की छवि को जनता के सामने लाकर खड़ा कर देते है तो वहीं दूसरी ओर कई मामले ऐसे भी है जिसमें पुलिस अच्छे से अच्छे अपराधी को पकडऩे में नाकामयाब साबित होती है।


परन्तु यदि कोई मॉं अपने बेटे की हरकतों से परेशान होकर उसे सुधारने के लिए पुलिस के हाथों सुपुर्द कर दें तो इसे मॉं की मानवता की मिसाल ही कहेंगे लेकिन यहां भी पुलिस की घोर लापरवाही नजर आती है और एक बेटा जिसने जो अपराध किया है उसकी सजा न मिलते हुए उसे वह सजा मिली जिसकी वह कभी कीमत भी नहीं चुका पाएगा। ऐसे में उसका दोष क्या है जो पुलिस उसे लापरवाही और हीलाहवाली के चलते हाथों से छोड़कर नदी में कूदने पर विवश कर देती है आखिर ऐसा कुछ तो है जिससे वह मन ही मन दु:िखत हुआ और उसने अपने अपराध से तौबा करने की बजाए स्वयं ही पुलिस आरक्षकों के हाथों से छूट नदी में जा कूदा। जहां सूखी पड़ी नदी में गिरने से उसे गंभीर चोटें आई और गंभीर अवस्था में ग्वालियर स्थित जयारोग्य अस्पताल ले जाया गया लेकिन व्यक्ति ने दम तोड़ दिया। इस नवयुवक की मौत से पुलिस के दाम पर जो छींटे पड़ रहे है उन्हें धोना भी शायद पुलिस के वश में नहीं। ऐसे में अब पुलिस को अपराधी युवक की मौत के लिए जिम्मेदार कौन है इसका जबाब कप्तान साहब से चाहिए? इस मामले को लेकर अब पुलिस को मंथन करने की आवश्यकता है।

जी हां हम बात कर रहे है गत कुछ दिनों पूर्व ही जिले के नरवर क्षेत्रांतर्गत आने वाले ग्राम निजामपुर की जहां एक युवक शिवचरण पुत्र लालाराम जाटव उम्र 25 वर्ष को उसकी ही मॉं ने आए दिन होने वाली हरकतों के चलते मगरौनी पुलिस चौकी के हवाले कर दिया था ताकि वह पुलिस से भय खाकर अपने जीवन को बदल दें। लेकिन मगरौनी पुलिस चौकी के कर्मचारियों की लापरवाही का परिणाम यह रहा है कि शिवचरण ने पुलिस के भय से निजात पाने के लिए बाईक पर से ही सिंध नदी में छलांग लगा दी। इस घटना से जहां पुलिसकर्मीयों के माथे पर पसीना तो आया तो वहीं शिवचरण की मॉं ने जिस सुरक्षा के लिहाज से अपने पुत्र को सुधारने के लिए पुलिस के हवाले किया वह चीख-चीखकर पुलिसवालों से अपने बेटे को मांग रही है क्योंकि शिवचरण जब पुल में कूंदा तो उसे गंभीर चोंटें आई थी और ग्वालियर में उपचार के दौरान उसे दम तोड़ दिया। युवक की मौत के बाद से आमजन का विश्वास पुलिस से टूटा है। 

महज धारा 151 के अपराधी को जो पुलिस कर्मी अपनी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेकर हवालात में ले जाते है उन्हीं ह्टटे-कट्टे नौजवानों के हाथ से शिवचरण का छूटना कई सवालों को पैदा करता है। इस मायने में अगर देखा जाए तो ऐसा प्रतीत होता है कि कहीं न कहीं पुलिस के मन में भी अपराधी के प्रति घृणा के भाव थे जिसके चलते उसे परेशान किया गया और अंतत: उसने हवालात जाने से पहले ही इनकी प्रताडऩा को समझते हुए स्वयं को मौत के हवाले कर दिया। दु:खयारी मॉं की बद्दुआ भी पुलिस को लगेगी क्योंकि उसने जिस मंशा के साथ अपने पुत्र के जीवन को बदलने की दिशा सोचकर भेजा था उस पर वह खरे नहीं उतरे बल्कि उसकी गोद को उजाड़ कर रख दिया। मगरौनी में हुए इस घटनाक्रम को लेकर पुलिस की अच्छी खासी भद्द पिटी है। पुलिस अधीक्षक आर.पी. सिंह ने मामले को गंभीरतापूर्वक मानते हुए लापरवाह आरक्षक का निलंबन कर उसे लाईन अटैच कर दिया। फिर भी क्या निलंबन और लाईन अटैच करने से पुलिस की कार्यप्रणाली में सुधार आ पाएगा?यह एक यक्ष प्रश्र है पुलिस के लिए जो अपने दाम पर लगे दाग को कैसे धोएगी यह तो आने वाला समय ही बताएगा फिलहाल पुलिस मामले की जांच में जुटी है।

कहीं हुई थी चूक 
क्या कोई अपराधी अपराध करने से कितना भी बच जाए और वह पुलिस के हाथ न लगे तो वह एक बड़ा अपराधी माना जा सकता है लेकिन मगरौनी निवासी शिवचरण जाटव तो महज धारा 151 यानि उपद्रव जैसे छुटपुट मामलो में दोषी था। जब शिवचरण ने अपनी हरकतों में कोई सुधार नहीं किया तो उसकी मॉं ने ही अपने पुत्र को सबक सिखाने के लिए उसे पुलिस के हवाले कर दिया। फिर ऐसा क्या घटित हुआ कि युवक तो नहीं सुधरा बल्कि पुलिस ने भी सुध नहीं ली। और एक मासूम युवक को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा। आखिर इस पूरे घटनाक्रम में कहां चूक हुई। यह बात चर्चा का विषय है। लेकिन यदि इसे मानसिक तौर पर लिया जाए तो समझा जा सकता है कि कोई भी अपराधी भले ही वह छोटा हो या बड़ा अपराध करने के बाद उसे पकडऩे व सुरक्षित रखने की पूर्ण जिम्मेदारी पुलिस की होती है फिर मगरौनी चौकी के आरक्षको ने अपने कार्य से क्यों पल्ला झाड़ा? ऐसे कई सवाल शिवचरण की मौत ने पुलिस के लिए खड़े किए है जिनके जबाब मिलना मुश्किल है या फिर पुलिसकर्मीयों की हठधर्मिता ही युवक पर भारी पड़ी जिससे वह तंग आकर पूल से कूद पड़ा। यह पुलिस के लिए सोचने योग्य बात है कि अब वह ऐसा क्या करें कि इस पूरे मामले में जो चूक हुई उसका पता लग सके ताकि आने वाले समय में पुलिस के लिए यह एक सबक साबित हो और फिर कोई अपराधी को पकडऩे या उसे सुरक्षा देने की जिम्मेदारी पुलिस पूर्ण रूप से निभा सके।

क्या जबाब दे पाऐंगे कप्तान साहब? 
इस मामले में यदि पुलिस कर्मचारी की लापरवाही की बात करें तो निश्चित मानिए कि पुलिस कप्तान ने अपने कर्तव्य को पूर्ण करते हुए लापरवाही कर्मचारी को निलंबित कर लाईन अटैच कर दिया। लेकिन क्या इस सजा से पुलिस की वह छवि कप्तान साहब ने पेश की जिसके लिए इस मामले में एक युवक की मौत हुई फिर उस मॉं का क्या न्याय मिल पाया? यह वह सवाल है शायद इनका जबाब कप्तान साहब भी ना देपाऐं क्योंकि यहां एक युवक की मौत पर उसकी मांॅ बिलख रही है और लापरवाह कर्मचारियों भी अपने अपनी बेबसी पर पश्चाताप कर रहे है। ऐसे ही मामले यदि आगे हुए तो पुलिस कप्तान साहब को अपनी व्यवस्था में सुधार के साथ-साथ नैतिक दायित्व की जिम्मेदारी भी कर्मचारियों को देनी होगी तब कहीं जाकर ऐसे मामलों में पुलिस स्थिरता बरत पाएगी।