मुगल सल्तनत ने खाडेराव को वीरवर की उपाधि से विभूषित किया,रत्न जडित तलवार भेट की | Shivpuri News

कंचन सोनी/शिवपुरी। खाडेराव रासो में कवि ने लिखा है कि जेबुन्निसा का कुवांरा मन खाडेराव की इस वीरता भरे गुण पर मोहित हो गई। उधर आजम भी खाडेराव की इस वीरता को देखकर उसने भी निश्चय कर दिया कुछ इस क्षेत्र का सेनापति खाडेराव का बनाना है बस दक्षिण में जाकर सम्राट से आज्ञा लेनी हैं।

प्रथम अभियान में ही शिकार मे सफलता मिल जाने से आजम खुश था। घायल हाथियो का उपचार शुरू कर दिया गया था। आजम ने इस शिकार की शानदार सफलता पर नरवर के किले पर जश्न का हुक्म दिया। इस अवसर पर उसने खाडेराव का सम्मानित करने का प्लान भी बना लिया था। जश्न की तैयारिया मुगल कर्मचारियों ने शुरू कर दी। मुगल शासन के अधिकारी  अपने-अपने शिविरो में आराम करने के लिए चले गए। 

उधर जेबुन्निसा अपने शिविर में सोने का प्रयास कर रही थी,लेकिन उसकी आंखो से नीद गायब थी,उसकी आंखो के सामने खाडेराव का वह द्धश्य घूम रहा था,जो जिसने हाथियो के शिकार के समय देखा था। खाडेराव के व्यक्त्तिव ने उस पर प्रेमपाश का बाण चला दिया था यह बाण दिखता नही था लेकिन घायल ईतना कर देता था कि व्यक्ति कोई काम का नही रह जाता अर्दमुर्छित अवस्था में पहुंच जाता है। उसका मन सिर्फ प्रेमपााश वाले व्यक्ति के ही सपने देखता रहा रहता था। ऐसी ही कुछ स्थिती खाडेराव के प्रेमपाश में होकर जेबुन्निसा की हो गई थी। 

वह प्रेमडोर में बंध कर भूल गई थी कि वह महान सम्राट औरगजेव की पुत्री है और खाडेराव अभी सिर्फ एक छोटे से टोले के सरदार के दस्तक पुत्र हैं। लेकिन ओरगजेब की पुत्री होना उसके लिए श्राप सा लग रहा था। वह कितनी विवश हैं,उसकके मन में लगातार सवाल खडे हो रहे थे कि इस प्रेम को आजम और मुगल सलत्नत स्वीकार करेगी। 

क्या उसे खाडेराव से उसे मिलने का अवसर प्राप्त होगा। उसके मन मेें कभी—कभी यह लहर भी उठती थी ओर वह प्रसन्नता से भर जाती कि अपने सौंदर्य और शहजादी के रूतबे के बल पर यदि खाडेराव के मन को जीत सकती हैं।

कही उसे ऐसा लगता कि वह बादशाह को वह मना ही लेगी। उसे आजम पर उतना विशवास नही था जितना औरगजेब पर। इसलिए वह बार-बार सयंत करने का प्रयास कर रही थी। किन्तु मन पर किसी भी तरह की लगाम काम नही कर रही थी। किन्तु वह खाडेराव से मिलने को मन आतुर था।

आजम के आदेश से पूरे नरवर दुर्ग को नव वधु की तरह सजा दिया गया,दुर्ग की प्राचीरो पर दीपमाला ऐसी प्रतीत हो रही थी कि सहस्त्रो तारो की चमक लेकर आकाश गंगा धरती पर प्रकट हो गई हो। आजम के शिविर के सामने विशाल शमियाना लगाया गया जो मशालो के प्रकाश पर जगमगा रहा था। शमिशाने में बैठने का उचित प्रबंध हैसियत व पद के हिसाब से कर दिया गया था। 

खाडेराव ने इस जश्न में शामिल होने के लिए शर्त रखी थी कि शराब का सेवन नही होंगा,इस हिदायत को गंभीरता से लिया गया। स्वादिष्ट भोजन बनाए गए। सेनानायक,उपनायक,मनसबदार,फौजदार,सूबेदार और नगर के मुख्य नागरिको को आमंत्रित किया गया। और सैनिको के जश्न के व्यवस्था किले के नीचे की गई। 

जश्न शुरू होता उससे पहले शमियाना पूरा भर गया। आजम ने अपना स्थान ग्रहण किया और मुगल सलत्नत  की ओर से खाडेराव को सम्मान करते हुए वीरवर की उपाधि से विभूषित किया गया और खाडेराव की शान में आजम ने सिरोपाव और स्वर्ण जटित तलवार भेंट की।

इसके बाद जश्न शुरू किया गया। जेबुन्निसा और आजम की पत्नि सलमा सहित शाही हरम की मुगल महिलाओ के साथ पर्दे के भीतर से पूरे उत्सव को देखा। जेबुन्निसा की आंखो में जश्न नही था उसकी आंखो तो सिरोपाव पहने रत्न जडित तलवार हाथ में पकडे खाडेराव पर ही ठहरी थी। सलमा की निगाहे अचानक जेबुन्निसा पर ठहर गई और उसने पूरी स्थिती को समझ लिया और मजाक भरे लहजे में कहा कि क्या है शाहजादी खाडेराव के नजदीक जाने की तबियत हो रही हैं। 

ओह भाभीजान कह कर जेबुन्निसा ने लम्बी सांस भरी। अब सलमा ने स्थिती को गंभीरता से समझा और कहा नही बीबीजान में मजाक नही कर रही। आप चाहो तो में आपके भाईजान से बात करू। यह सुन जेबुन्निसा ने शरमाते हुए सलमा की गोद में मुंह छुपाते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए कहा कि यह मुमकिन हो सकता हैं। क्यो नही शहजादी,सलमा ने कहा मे पूरी ताकत लगा दूंगी और आज ही आपके भाई जान से इस विषय में बात करती हूॅ। देर रात तक जश्न चलता रहा। 

धीरे-धीरे लोग अपने शिवरो में लौटने लगे। खाडेराव के नजरो से ओछल होने का गम लेकर जेबुन्निसा भी लडखडाते कदमो से अपने शिवर को लौट चुक थी,लेकिन वह तो खाडेराव की वीरता और उसके व्यक्त्तिव के नशे में इतना डूब चुकी थी कि उसके बहार उसका सांस लेना भी दूभर हो रहा था। खाडेराव रासो में कवि ने लिखा है कि जेबुन्निसा को आज यह समझ में आ गया था कि मदिरा के नशे से भी ज्यादा खतरनाक नशा किसी के प्यार में पागल होना होता हैं।

सलमा ने उसकी हालत देखी तो आजम से बात करने का निश्चय कर लिया। सारी रात जेबुन्निसा अपने मखमली बिस्तर पर करवटे बदलती रही,लेकिन नीद भी उसकी वैरी हो गई थी उसको अपने आगोश में लेने को तैयार ही नही हो रही थी। 

उत्सव की समाप्ति के पश्चात गत राात्रि जश्न के बाद आजम अपने शिविर में पहुंचा,तो सलमा ने अवसर पा कर उससे जेबुन्निसा की भावनाओ का जिक्र किया। सलमा के यह वाक्य सुन आजम चौक गया। कहानी खाडेराव रासो कंम्रश:आगे रहेंगी