कचंन सोनी शिवपुरी। शिवपुरी के राजमहल में रानी मृगावती और खाडेराव की मां अनुपीदेवी दोनो ही दोनो बधुंओ की आगवानी के लिए उपस्थित थी। देहरी पर डोलिया पहुंचते ही दोनो पर फूलो की वर्षा हुर्ई। मंगलचार गायन हुआ। चंदन,केशर और अंगरागो से दोनो बधुओ का स्वागत मण्डप सजाये गये। खाडेराव-शोभा और गजसिंह-विशाला की महारानी और खाडेराव की मां ने आरती उतारी और दोनो जोडो की आगवानी की।
इस समय देश की राजधानी दिल्ली में मुगलसत्ता थी। औरगजेब अपने विजय अभियान को लेकर दक्षिण में थे। और नरवर के दुर्ग पर भी मुगलो की सत्ता थी। औरगजेब का बडा पुत्र आजम और उसकी प्रिय पुत्री जेबुन्निसा औरगजेब से मिलने दक्षिण भारत की ओर जा रहे थे। खाडेराव रासो ने कबि ने लिखा है किे इस समय शहजादी के भले ही एक हुक्म पर पूरी दुनिया की चीज हााजिर हो जाती हो लेकिन मुगल शहजादियो के लिए अकबर के समय से ही यह एक परम्परा विधान सा बन गया था कि उन्है अपना पूरा जीवन अविवाहित होकर ही गुजरना पडता था।
दिल्लीश्वर यह सहन नही कर सकते थे कि उनकी शहजादियो से विवाह करके कोई भी उनकी बराबरी पर आ सके और बैठ सके। इस अभिभाान की रक्षा के लिए इन अभागी शहजादियो को अपने यौवन और अरमानो को कुचल कर अविवाहित ओर मातत्वहीन जीवन बिताना पडता था। जेबुन्निसा इस सयम की महान सम्राट औरगजेव की सबसे प्रिय पुत्री थी,लेकिन उसे भी इस नियम से ही गुजरना पड रहा था।
औरगजेब ने सिर्फ अपनी प्रिय बेटी को शायरी करने की छुट दे रखी थी। दिल्ली से चलते मुगल शहरजादे का पडाव नरवर में होना था। इसके लिए महराज अनूपसिंह का संदेश पहुंचा दिया गया था। कि मुगल पडाव एक सप्ताह तक नरवर रूकेगा,और हाथीयो का शिकार करेंगा,इसके लिए उचित प्रबंध कराने के निर्देश दिए गए थे। राजा अनूपसिंह का मन मुगल बादशाह से ख्न्नि था,वे नरवर के दुर्ग पर मुगलो का अधिपत्य सहन नही कर पा रहे थे।
इसलिए वे आजम के कार्यक्रम के प्रति उदासीन ही रहना चाहते थे,लेकिन उन्है खाडेराव ने राय दी कि अभी आजम के कार्यक्रम का सहयोग करना ही उचित रहेगा। संभव है वह किले को वहाल कराने में सहायक हो सके। यदि नही हुआ भी हुआ तो इस बहाने दुर्ग के उपर जाकर मुगलो की शक्ति और व्यूरचना का भान तो हो ही जाऐगा।
आगे ऐसा भी हो सकता है कि आजम के दक्षिण पहुंचते ही किले पर आक्रमण कर उस पर अधिकार करने की रणनीति भी बनाई जा सकती हैं।गजसिंह इस राय से सहमत था। दोनो राजकुमारो के आग्रह हो देखकर राजा अनूपसिंह ने उन्है सहमति प्रदान कर दी।
शहजादे आजम का पडाव नरवर के किले पर पहुंच चुका था। उसके पडाव में उसकी पत्नि और बहन भी साथ थी। खाडेराव और गजसिंह एक छोटी सी सैनिक टूकडी हो लेकर नरवर पहुंच गए और किले के नीचे ही अपना पडाव डाल दिया। उन्होने आजम को अपने आने की सूचना किले पर पहुंचा दी कि महाराज अनूपसिंह की ओर से शहरजादे की शिकार और हाथी पकडने की मुहिम में सहयता करने आये हैं।
आजम प्रसन्न हुआ,उसने तुरंत दोनो की उपर बुला लिया। दो तेज अश्वो पर सशस्त्र खाडेराव और गजसिंह पहुंचे जो आजम शिकार अभियान के लिए बिलकुल तैयार था। खाडेराव ने उसे बताया कि हाथी पकडने के लिये नदी के उत्तरी किनारे पर घने वन में मचान बनाना पडेगा और संभवत रात भी वही बितानी पडेंगी।
सैनिको को नदी के तीर पर छुपाना होगा। हाथियो के पानी के घाट पर जाल बिछाना पंडेगा। हाथी अतंयत सावधान पशु होता हैं। उसे संदेह भी हो गया तो वह अपने दल को साथ लेकर इस वन को छोडकर चला जाऐगा। इसलिए शिकार के लिए हांका करने का काम बाद में करना होगा पहले हाथियो को जाल में फसाना होगा।
खाडेराव के तेजस्वी वाक्यो को सुनकर आजम बहुत प्रभावित हुआ। उसे मालवा के उत्तरी सीमा पर अतंयत होनहार युवक सेनापति उभर रहा हैं,यदि भविष्य में भी मराठे उत्तर की बडेंगें तो खाडेराव की कौशलता और बुद्धि् का उपयोग सम्राज्य की रक्षा के लिए किया जा सकेगा। इसलिए खाडेराव से मित्रवत व्यवहार रखना ही उचित होगा। आजम ने तुरंत इस गणित को समझ कर दोनो राजकुमारो से आग्रह किया वे आजम के राजकीय अतिथि बनकर रहे।
आजम ने दोनो राजकुमारो की शिविर अपने पास ही लगाने के आदेश दिएं कहानी क्रमंश आगे अगले अंक में कैसे वीरवर खाडेराव हाथियो के बीच ऐसे खडे थे कि कोई शेर खडा हो,खाडेराव के तलवार के एक ही बार में पूर्ण युवा हाथी की सूड कट कर अलग हो गई और इस दृश्य को देखकर सम्राट आरगजेव की प्रिय पुत्री खाडेराव पर मोहित हो कर अपने शिविर में बुलाने का आदेश जारी कर दिया।
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