शिवपुरी। नवम्बर में हुए विधानसभा चुनाव में प्रदेश में सत्ता में अवश्य परिवर्तन हो गया, लेकिन शिवपुरी जिले में कांग्रेस और भाजपा विधायकों की संख्या में कोई परिवर्तन नहीं आया। 2013 के चुनाव में जब प्रदेश की सत्ता पर भाजपा की पुन: ताजपोशी हुई थी तब भी जिले की पांच सीटों में से कांग्रेस के पास तीन और भाजपा के पास दो सीटें थीं और 2018 के चुनाव में भी कोई परिवर्तन नहीं आया।
2013 में जिले से प्रदेश सरकार में मंत्री शिवपुरी विधायक यशोधरा राजे सिंधिया थीं, लेकिन 2018 में कांग्रेस के सत्ता में आने के बाद पिछोर से 6 बार से जीत रहे कांग्रेस विधायक केपी सिंह मंत्री नहीं बन पाए। इससे कांग्रेस में जहां उदासी हैं वहीं भाजपा में भी कमोबेश यही स्थिति है। चुनाव में जीते भाजपा के दोनों विधायक परस्पर विरोधी गुट के हैं। भाजपा सत्ता से भी बाहर है इस कारण भी पार्टी में मायूसी का वातावरण है।
2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने प्रदेश की 230 विधानसभा सीटों में से 165 पर विजय प्राप्त की थी, लेकिन शिवपुरी जिले में भाजपा का विजय अभियान शिथिल पड़ गया था। इसके बाद भी प्रदेश मंत्रिमण्डल में यशोधरा राजे के रूप में शिवपुरी की भागीदारी थी। उस समय शिवपुरी जिले से दूसरे भाजपा विधायक प्रहलाद भारती भी यशोधरा राजे गुट से थे और दोनों के बीच अच्छा समन्वय था। लेकिन 2018 के विधानसभा चुनाव में स्थिति बदली।
शिवपुरी विधायक और प्रदेश सरकार की कैबिनेट मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया अपने विधानसभा क्षेत्र से भारी बहुमत से विजयी होने में सफल रहीं, लेकिन उनके अनुयायी पोहरी विधायक प्रहलाद भारती चुनाव हार गए। लेकिन कोलारस से भाजपा प्रत्याशी वीरेंद्र रघुवंशी अवश्य जीतने में सफल रहे। श्री रघुवंशी 2013 के विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा में शामिल हुए।
वह 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस में थे तथा उन्होंने शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र से यशोधरा राजे सिंधिया के विरूद्ध चुनाव लड़ा था जिसमें वह 11 हजार मतों से पराजित हुए थे। भाजपा में आने के बाद भी यशोधरा राजे से उनके संबंध वहीं कड़वाहटपूर्ण रहे। भाजपा में रहते हुए वीरेंद्र महल को लगातार चुनौती देते रहे।
निशाने पर अवश्य उनके ज्योतिरादित्य सिंधिया थे, लेकिन कहीं न कहीं अप्रत्यक्ष रूप से यशोधरा राजे सिंधिया भी निशाने पर रहीं। यशोधरा राजे सिंधिया विधानसभा चुनाव के दौरान जब निजी कारणों से कोलारस गर्इं तो उन पर रघुवंशी समर्थकों ने भाजपा प्रत्याशी के विरोध तक का आरोप लगाया। समझा जा सकता है कि यशोधरा राजे और वीरेंद्र रघुवंशी के संबंधों में कितनी कड़वाहट है।
भाजपा में रहते हुए वीरेंद्र रघुवंशी महल विरोधी और केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर गुट का प्रतिनिधित्व करते हैं। इस आपसी सामंजस्य के अभाव के कारण चुनाव के बाद भाजपा में मायूसी का वातावरण है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है तो इस चुनाव में कांग्रेस ने जहां कोलारस की सीट गवाई है वहीं पोहरी की सीट पर कब्जा भी किया है।
कांग्रेस के तीन विधायकों में 2013 में भी दो विधायक महल समर्थक थे। ये थे करैरा विधायिका शकुंतला खटीक और कोलारस विधायक स्व. रामसिंह यादव बाद में उनके निधन के बाद महेंद्र सिंह यादव। उस चुनाव में जीते दोनों विधायक पहली बार विधायक बने थे। इस बार भी कांग्रेस के तीन विधायकों में से दो विधायक महल समर्थक हैं। ये हैं पोहरी विधायक सुरेश राठखेड़ा और करैरा विधायक जसवंत जाटव।
जबकि तीसरे विधायक केपी सिंह 2013 में भी थे और 2018 में भी जीतकर लगातार छठीं बार विधायक बने। कांगे्रस के सत्ता में आने के बाद यह प्रबल संभावना थी कि केपी सिंह मंत्रिमण्डल में शामिल होंगे। कांग्रेस के दूसरी बार जीते 22 विधायकों को मंत्री बना दिया गया, लेकिन 6 बार से जीत रहे केपी सिंह मंत्री नहीं बन पाए।
इससे कहीं न कहीं जिले के कांग्रेसियों में खासकर महल विरोधी कांग्रेसियों में निराशा और उदासी का माहौल है। जहां तक महल समर्थक कांग्रेसियों का सवाल है तो उसमें भी कुछ वरिष्ठ महल समर्थकों का वजन कहीं न कहीं कम हुआ है।