कंचन सोनी शिवपुरी। सबेरा दुर्ग पर विलंब से आया। आजम और शाही मेहमान के प्रात:अभी देर तक सोय हुए थे।गजसिंह के पलको से भी नींद अभी ओझल नही हो रही थी। वीरवर खाडेराव का नियम था कि वह सूर्योदय से पूर्व ही अपनी शैया छोड देते थे। खाडेराव ने शैया का त्याग करते हुए,नित्य नियम से निवृत होकर व्यायाम करने जाते थे।
उन्होने निश्चय किया कि आज व्यायाम किले की प्राचीर पर दौड लगा कर करते हैं। इस निश्चय का मुख्य कारण था कि किले की प्राचीर का कौना—कौना देख लेते हैं अगर किले पर आक्रमण की जरूरत हुई तो यह तय किया जा सकता है कि किस ओर कर सुविधाजनक होगा।
शीघ्रता से खोडराव ने वस्त्र पहने और तलवार हाथ में ली और किले की प्राचीर की ओर चल दिए। जेबुन्निसा का शिविर रास्ते में ही था। खाडेराव सिर्फ इतना समझ सके की यह शिविर किसी मुगल शाही परिवार में से किसी महिला का है। वे गर्दन नीची कर इस शिविर से निकल जाना चाहते थे।
लेकिन खाडेराव की चलने की आवाज से जेबुन्निसा चौकी और शिविर से बाहर झांककर देखा तो खाडेराव को निकलते देखा। खाडेराव को देख वह पुन: विस्मित हो गई अरे यह तो वीरवर खाडेराव है,जिनके प्रेम में घायल होकर वह सारी रात सो नही सकी। उसे लगा की स्वर्ण क्षण आया है और वह बीता जा रहा हैं।
खाडेराव इस बीच कई कदम की दूरी पर निकल गये। दुर्ग की परिक्रमा का पूरा चक्कर लगाकर खाण्डेराव अपने शिविर की ओर लौट चुके थे। उत्सव की समाप्ति के पश्चात प्रसन्न चित्त मुद्रा में लौटे तो सलमा ने अवसर पा कर जेबुन्निसा की भावनाओ का जिक्र कर दिया। आमम एक क्षण के लिए चौक गया। किन्तु सलमा ने उसे समझाया कि वह जेबुन्निसा को बचन दे चुकी हैं।
आजम के समझ भी जो राजनीतिक परिस्थिति थी,उस दृष्टि में रखकर उसे इस संबंध में निर्णय यह सही था कि जेबुन्निसा को दक्षिण यात्रा में प्रसन्न रखना ही एक आवश्यक अंग हैं। उसने समला को अनुमति प्रदान कर दी वह ही कोई गौरवयुक्त युक्ति निकाले और जेबुन्निसा और खाडरेाव की मुलाकात करा दे। अब सलमा ने मन ही मन खाडेराव औ जेबुन्निसा के मिलन की युक्ति का निश्चय भी कर लिया।
खाडरेाव रासो में कवि ने लिखा है कि जेबुन्निसा की सबसे समझदार ओर राजदार दासी को नजिमा को खाडेराव के शिविर में भेजा जाए। और खाडेराव को जेबुन्निसा के शिविर में सम्मान करने के बहाने से बुलाया जाए। दासी को पूरी योजना समझकर दासी नाजिमा ने खाडेराव के शिविर पहुंची,ओर झुक कर सलाम करते हुएं आग्रह किया कि वीरवर खाडेराव को महान सम्राट औरगजेंब की सबसे प्रिय बेटी शहजादी जेबुन्निसा ने सरदार साहब को समान्नित करते हुए उनके सम्मान में तोहफा पेश करने का गुजारिश की हैं।
इस कारण सरदार से साहब अभी चलने की पेशकश की हैं। खाडेराव इस अप्रत्यासित प्रस्ताव से चौक उठे। उन्होने पूछा क्या मुझे अकेले बुलाया हैं,राजकुमार गजसिंह को नही बुलाया है या नही,शाहजादा आजम कहा हैं,लेकिन दासी ने कोई जबाब नही दिया।
खाडेराव का पहले मन हुआ कि बिना गजसिंह के जाना उचित नही होगा। किन्तु फिर उन्होने सोचा कि जेबुन्निसा शहजादी है और आजम के साथ बादशाह के पास जा रही हैं। यदि नरवर गढ को बिना युद्ध् किये शान्तिपूर्ण तरीके से ही वापस दिलाने में सहायक हो जाय,तो उसके स्वागत आमत्रंण को स्वीकार कर लेना ही उचित होगा।
ऐसी दशा में अगर नरवर किले की समस्या हल निकल जाए तो उचित होगा। यह सोचकर दासी से कहा चलो ठीक हैं। कुछ ही झणो में वह तैयार हो कर नजमा के साथ चल दिए। चलते हुए उन्होने अपनी संगिनी तलवार को कंधे से उतार दिया।
उन्है लगा कि किसी महिला के सामने हथियारो का प्रर्दशन उचित नही हैं। इस कारण उन्होने ऐसा किया। नाजिमा ने देबुनिन्नसा के शिविर के बाहर पहुंचते ही दोडकर भीतर जाकर उसे वीरवर खाडेराव के आने की सूचना दी। जेबुन्निसा एक दम जड हो गई। उसने कल्पना ही नही की थी कि उसे इतनी शीघ्र ही खाडेराव से अकेले मिलने का अवसर प्राप्त हो जाऐगा। कहानी आगे क्रमंश:जारी रहेगी।
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