शिवपुरी। सिंधिया परिवार के प्रभाव वाली गुना लोकसभा सीट पर इस बार भाजपा में स्थानीय प्रत्याशी को टिकट देने की मांग उठ रही है। इसके पीछे तर्क यह है कि स्थानीय प्रत्याशी यहां की जनता के सुख दुख में साथ रहता है और चुनाव में उसे इसका लाभ मिलता है। दूसरा महत्वपूर्ण तर्क यह है कि गुना सीट पर भाजपा का प्रत्याशी कौन हो यह महत्वपूर्ण नहीं है क्योंकि मजबूत से मजबूत प्रत्याशी भी सिंधिया परिवार के मुकाबले इस सीट से चुनाव नहीं जीत सकता और चुनाव तभी जीता जा सकता है जब इस चुनाव को मोदी वर्सेज सिंधिया का रूप दे दिया जाए। भाजपा में यह मुहिम पार्टी के पुराने कार्यकर्ता और पूर्व जिला उपाध्यक्ष तथा मीसाबंदी संघ से जुड़े हरीहर निवास शर्मा ने फेसबुक पोस्ट के माध्यम से छेड़ी है।
गुना लोकसभा सीट पर सिंधिया राज परिवार का जबरदस्त जनाधार रहा है। अभी तक सम्पन्न हुए 16 लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 14 बार सिंधिया राज परिवार के सदस्य निर्वाचित हुए हैं। गुना लोकसभा सीट पर सर्वाधिक 6 बार राजमाता विजयाराजे सिंधिया ने जीत हांसिल की। खास बात यह है कि इस दौरान वह कांग्रेस से लेकर निर्दलीय और भाजपा टिकट पर अलग-अलग चुनावों में निर्वाचित हुई। उन्होंने 1957, 67, 89, 91, 96 और 98 के लोकसभा चुनाव में जीत हांसिल की। उनके सुपुत्र स्व. माधवराव सिंधिया भी इस सीट पर चार बार निर्वाचित हुए। वह पहली बार 1971 में जहां जनसंघ टिकट पर चुनाव जीते वहीं 1977 में निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में विजयी रहे।
जबकि 1980 और 99 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस टिकट पर जीत हांसिल की। उनके निधन के बाद हुए उपचुनाव मेें उनके सुपुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया 2001 में साढ़े चार लाख मतों से कांग्रेस टिकट पर चुनाव जीते और इसके बाद उन्होंने लगातर तीन चुनावों 2004, 2009 और 2014 में विजय हांसिल की। आंकड़े बताते हैं कि इस सीट पर किसी पार्टी का प्रभाव नहीं बल्कि विशुद्ध रूप से सिंधिया राज परिवार का प्रभाव है। सिंधिया राज परिवार के सदस्य किसी भी दल से लड़े हों। वह आसानी से विजयी हुए हैं।
इस लोकसभा क्षेत्र के 1957 से लेकर अब तक के आंकड़ों पर यदि गौर करें तो सिर्फ तीन अवसर ऐसे आए हैं जब चुनाव जीतने के लिए सिंधिया राज परिवार के उम्मीदवार को किंचित संघर्ष करना पड़ा है। 1991 में राजमाता विजयाराजे सिंधिया के मुकाबले कांग्रेस ने मजबूत प्रत्याशी स्व. शशिभूषण वाजपेयी को चुनाव मैदान में उतारा और उन्होंने राजमाता विजयाराजे सिंधिया की जीत का अंतर घटाकर 55 हजार मतों पर ला खड़ा किया। जबकि इसके पहले राजमाता हर चुनाव में लाखों मतों से जीतती रहीं थी।
इसके पहले 1977 में भी लगभग ऐसी ही स्थिति बनी थी जब उस चुनाव में पूरे प्रदेश में कांग्रेस के खिलाफ लहर थी और कांग्रेस समर्थित निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में स्व. माधवराव सिंधिया चुनाव मैदान में उतरे थे और उनके मुकाबले जनता पार्टी ने आजाद हिंद फौज के सैनानी स्थानीय उम्मीदवार स्व. कर्नल गुरूवक्क्ष सिंह ढिल्लन को टिकट दिया था। हालांकि जनता लहर के बावजूद श्री ढिल्लन चुनाव नहीं जीत पाए थे। लेकिन स्व. माधवराव सिंधिया की जीत का आंकड़ा एक लाख मतों से खिसककर 75 हजार मतों पर आ गया था।
कर्नल ढिल्लन स्थानीय उम्मीदवार थे और शिवपुरी के नजदीक हातौद गांव में वह रहते थे। जहां उनका फार्म हाऊस था। 2004 में तीसरा मौका तब आया, जब भाजपा ने समानता दल के स्थानीय विधायक हरीवल्लभ शुक्ला को ज्योतिरादित्य सिंधिया के मुकाबले चुनाव मैदान में उतार दिया और उस चुनाव में भी सिंधिया परिवार की जीत का अंतर लाख मतों से घटकर 87 हजार मतों पर आ गया। इन आंकड़ों के आधार पर भाजपा नेता हरीहर शर्मा का तर्क है कि स्थानीय उम्मीदवार ही सिंधिया राजपरिवार को चुनौती दे सकता है। लेकिन सवाल यह है कि वह स्थानीय प्रत्याशी कौन हो। जिसे टिकट दिया जाए।
अशोक कोचेटा,लेखक,समाजसेवी, वरिष्ठ पत्रकार और शिवपुरी से प्रकाशित दैनिक सांध्य तरूण सत्ता के संपादक है।
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