कंचन सोनी/शिवपुरी। पंडित जी अपने विचारो में मग्न थे। तभी राजा ने कहा कि पंडित जी में तो आपके आर्शीवाद का आकांक्षी हूं। किन्तु मौखिक आर्शीवाद नही चाहता। पंडित जी कहा कि राजा प्रजा तुल्य होता है आप मुझे आर्शीवाद दिजिए कि मुझे क्या करना हैं। राजा अनुपसिंह हसे और बोले की मै तुम्हारे पुत्र को आर्शीवाद स्वरूप मांग रहा हू।यह इतना होनहार और दिव्य है अगर इसकी शिक्षा और शस्त्र शिक्षा की व्यवस्था नही कर सका तो मुझे लगेगा कि मेरा राजा होना व्यर्थ हैंं।
पंडित वृंदावन राजा के वचन सुनकर सन्न रह गए,एक क्षण तक वे विचार शून्य होकर खडे रहे। न ही हां की स्थिती में थे और न की। खाडेराय मां ने भी पंडित जी और राजा के बीच की बाते सुन घर से निकल कर बोली पंडित जी आप गुसाई की भविष्य वाणी भूल गए। पंडित जी चौक गए और उन्है खाडेराव के जन्म के समय बनाई गई जन्म पात्रिका के बनाने और वाचन के समय पंडित जी ने ज्यातिषाचार्य को कुछ चांदी के सिक्के दक्षिणा के रूप में दी।
लेकिन भविष्यवक्ता भटनावर के गुसाई ने इस जन्म पत्रिका के बनाने के लिए चांदी के सिक्के लेने से मना करते हुए कहा था कि पंडित जी,मुझे इस जन्म पत्रिका के मुझे 500 बीघा जमीन का पटटा चाहिए। पंडित जी ने कहा था कि महाराज क्यो मेरा उपहास उडा रहे हों मैं गरीब ब्राहम्मण आप को 500 बीघा जमीन कहा दूंगा,गुसाई ने कहा था कि इस बालक के राजग्रह हैं यह बडा होकर बहुत बडा योद्धा और सेनापति के रूप में जाना जाऐगा। आप तो बस 500 बीघा का वचन पत्र लिख दो,यह बालक बडा होकर स्वंय मुझे देगा। उक्त भविष्य वाणी आज सत्य होनी जा रही थी।
एक राजा एक गरीब ब्राहम्मण के बालक के गुणो को देखकर उसे गोद लेने का प्रण कर चुका था। इस बालक के भविष्य में उसे अपने राज्य का भविष्य भी दिख रहा था। पंडित की तंत्रा टूटी और पुन: सोचने लगे अवश्य ही इस मेरे पुत्र के राजयोग के ग्रह उसे राजा के रूप में लेने आए हैं।
पंडित जी अपनी चेतना में पुन: लोटे और राजा से कहा कि कि आप हमारे महाराज हैं,राजा पिता तुल्य होता हैं और उसे अपने बच्चे को कैसे लालन पालन करना हैं उसे पूरा अधिकार होता हैं,मैं इसे आज धन्य मानूंगा कि आप इसे अपनी सेवा में लेने आए है। पंडित जी के यह वचन सुन राजा अनूपसिंह अत्यंत प्रसन्न हुए। और झुककर पंडित जी चरणो में प्रणाम करते हुए कहा कि मुझे आर्शीवाद दे की मेरे खाडेराव के विषय के सारे मनोरथ पूर्ण हो।
पंडित ने अपने पूत्र खाडेराय से कहा कि खाडेराव अपनी मां से विदा ले लो। खाडेराय ने अपने माता—पिता से विदा ली और घोडे पर बैठकर राजा के साथ चल दिया। कहते है कि आदमी बलबान नही होता समय बलबान होता है। यह कहावत यह सत्य होते दिखी। खाडेराय का समय बलवान हुआ और सारी कायनात उसे उसके राजपुरूष बनने की ओर ले चली।
नरवर के राजा के शिकार खेलने पोहरी के जंगलोे की ओर आकर अपनी सेना से बिछुड जाना,और पीपल के पेड के नीचे छांव के लिए रूकना,खेलते बच्चो से मिलना और एक नागराज को सोते हुए खाडेराव का अंगरक्षक बनना जैसी दिव्य घटनाओ ने राजा अनूप सिंह को यह पूर्भास करा दिया कि यह बालक एक दिव्य है और मेरे राज्य के लिए यह आवश्यक हैं। कल के अंक में प्रकाशन होगा कि युवा खाडेराव ने कैसे एक युवा शेर को ऐसे पछाड दिया जैसे किसी बकरी के बच्चे को पकड कर पटक दिया हो। उक्त सारी घटनाऐ खाडेराव से प्रकाशित की जा रही हैं।
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