करोडो रूपए की स्टाम्प की चोरी: पार्टनरशिप में चल रहा है शिवपुरी का रजिष्ट्रार आफिस | Shivpuri News

शिवपुरी। विभागीय कार्रवाई पर जांच के नाम पर मामले में दोषियो को बचाने की परंपरा बन गई हैं। अभी स्टाम्प डूयूटी की चोरी में फसे रजिष्ट्री लेखक एडवोकेट ब्रजमोहन धाकड पर जांच सिद्ध् होने के बाद भी आज तक कोई कार्रवाई नही होना सीधा—सीधा एक आघोषित पार्टनर शिप की ओर इशारा करता हैं,इस पार्टनरशिप में शासन को करोडो रू का चूना लग रहा हैं।

मामला सब रजिस्ट्रार कार्यालय शिवपुरी का है। विगत वर्ष कलेक्टर की जनसुवाई में एक शिकायतकर्ता ने शिकायत की थी कि उप पंजीयक कार्यालय के कम्पयूटर ऑपरेटर प्रद्युम्न पाल  व रजिस्ट्री लेखक/पति ब्रजमोहन धाकड़ ने मिलीभगत कर ग्राम डेहरवारा व मडीखेडा की 175 बीघा भूमि की रजिस्ट्री में कम्प्यूटर से कूटरचित खसरा बनाकर सिंचित जमीन को असिंचित बताकर रजिस्ट्री करा दी गई और इसके बदले लम्बी घूस ली गई। 

जब इस शिकायत की जांच पंजीयन विभाग के डीआर ओपी अम्ब ने जांच तो यह पाया कि यह भूमि सिंचित थी और खसरा खतोनी में फैरबदल कूट रचित दास्तावेज बनाकर कागजो में असचिंत बताकर उसकी रजिष्ट्री करा दी। इसमे बताया गया है कि इस खेल में करोडो रूपए की स्टाम्प की चोरी की गई है।

जिला पंजीयक की नोटशीट दिनांक 10 जुलाई 2017 में खुद जिला पंजीयक ने लिखा है कि दस्तावेजों के साथ अपलोड खसरे कूटरचित पाये गये। लेकिन इसी जिला पंजीयक ओ.पी. अम्ब ने दिनांक 22 अगस्त 2017 को जो जांच प्रतिवेदन वरिष्ठ अधिकारियों एवं कलेक्टर को भेजा उसमें इस फर्जी खसरा वाली बात को नहीं लिखा और बताया कि कोई घोटाला नहीं हुआ। 

इस प्रकार यह बात निकलकर आ रही है कि जब जांच में फर्जी खसरा पाये तो फिर शासन को भेजे गए जांच प्रतिवेदन में फर्जी खसरा होने वाले तथ्य को जिला पंजीयक ने छुपाया क्यों। जिला पंजीयक की इस कार्यप्रणाली से कई सवाल खड़े होते हैं। क्या जिला पंजीयक ने दोषियों को बचाने के लिये तथ्य छुपाया गया या फिर स्वयं जिला पंजीयक इस मामले में लिप्त है इसलिये शासन को गलत रिपोर्ट दी।

जमीन से कर दिए पेड गायब 
सरकारी गाइड लाइन अनुसार जब रजिस्ट्री कराई जाती है तो भूमि के मूल्य पर एक निश्चित प्रतिशत से स्टाम्प एवं पंजीयन फीस अदा करनी होती है। मूल्य की गणना में सिंचित असिंचित, यदि जमीन में पेड़ हैं तो गाइड लाइन में निर्धारित कीमत के हिसाब से पेडो की कीमत पर भी स्टाम्प ड्यूटी अदा करनी होती है। इस जमीन के खसरो में हजारों की संख्या में पेड़ दर्ज हैं तथा भूमि की किस्म सिंचित अंकित है। 

चूंकि सरकारी गाइड लाइन में सिंचित का मूल्य असिंचित से अधिक निर्धारित रहता है इसलिये इन रजिस्ट्रीज के साथ जो खसरा लगाये गये उनमें से कम्प्यूटर इंडिटिंग टूल की मदद से सिंचित और पेड़ो की टीप को कूटरचना कर हटा दिया गया।आश्चर्य की बात है कि यह जमीन कोलारस तहसील में आती है लेकिन जो रजिस्ट्री कराई गयीं वे कोलारस ना कराकर शिवपुरी कराई गयीं।

फर्जी दस्तावेज तैयार करना है आपराधिक कृत्य
भारतीय दण्ड संहिता की धारा 467, 420 अंतर्गत यह गम्भीर अपराध की श्रेणी में आता है। लेकिन जिला पंजीयक अम्ब की लीपापोती के कारण दोषियों के खिलाफ कोई कार्रवाई अभी तक नहीं हुई। जबकि फर्जीबाड़ा प्रमाणित हो चुका है। जब कुछ समय पूर्व जिला पंजीयक से पूछा गया कि दोषियों पर कार्रवाई क्यों नहीं हुई तो उनका जबाव बड़ा ही गैर जिम्मेदाराना निकला, उनका कहना था कि कार्रवाई करना शासन का काम है, लेकिन जब इसी जिला पंजीयक ने शासन को रिपोर्ट ही गलत दी गई है तो कार्रवाई कैसे होगी।