शिवपुरी। जैसा कि विदित हैं,शिवपुरी के महान इतिहास में से शिवपुरी की माटी से जन्मे बालक की तलवार की चमक और निर्धन ब्राहम्मण के घर से लेकर राजपुरूष और लोकपुरूष बनने ओर उसके युद्ध् कौशल का शब्दो को उकरने की कोशिश ग्रंथ खाडेराव रासो से शिवपुरी सामाचार डॉम कर रहा हैं, इस महान व्यक्तिव की महान शौर्यगाधा को प्रकाशित करने को सकल्पं से आज पहली कडी प्रकाशित कर रहे हैं
जेठ की चिलचिलाती धूप दोपहर का समय में पोहरी से भटनावर की ओर एक राजपुरूष अपने घोडे से लगातार दौडे जा रहा था। राजपुरूष शिवपुरी से शिकार खेलने पोहरी की जंगलो में आया और अपने साथियो बिछुड गया था। भरी दोपहरी में जानलेवा इस अग्निवर्षा करती धूप में इस राजपुरूष की आखे सिर्फ अपने सूखे कंठ के लिए पानी रूपी अम्रत की तलाश कर रही थी। जितनी तेज प्यास थी उतनी तेज ही घोडा दौडा जा रहा था। पानी की खोज के लिए।
राजपुंरूष का घोडा अपने वेग से दौड रहा था,तभी रास्ते में अचानक राजपुरूष को एक विशाल पीपल का वृक्ष दिखा। घोडे की लगाम को खीचकर पीपल के पेड की ओर चलने का निर्देश दिया। घोडा अपने मालिक की लगाम के ईशारे से जाकर पीपल की शीतलता भरी छांव में खडा हो गया। राजपुरूष ने देखा की कुछ बच्चे आपस में खेल रहे हैं। ओर उनके पास गायो के बछडे भी बैठे हैं। खेलते ग्रामीण बच्चो ने राजपुरूष को नही देखा।
तभी अचानक घोडा हिनहिनाया और विशाल पेड की दूसरी ओर खेल रहे ग्रामीण बच्चो का ध्यान पेड के नीचे विशाल घोडे पर बैठे राजपुरूष की ओर गया,बच्चो ने जब इस अपरिचित व्यक्ति को देखा तो वे संकोचित होकर अपने खेल को रोककर खडे होकर इस राजपुरूष को संदेही की नजर से देखने लगें। राजपुरूष के पास एक विशाल घोडा,राजसी वस्त्र,कमर में बंधी तलवार,कंधे पर धनुष और तरकश उसकी शोभा बडा रहे थे,तो दूसरे कंधे पर लटकी हुई बंदूक भी उन्है चकित कर रही थी।
पेड की एक ओर बच्चे इस अपरिचित राजपुरूष को देखकर अतंकित थे तो उकत अश्वरोही भी संकोचित हो रहा था कि घोडे से उतर कर इन बच्चो के पास जाए और प्यासे कंठ को शांत करने के लिए शीतल जल की मांग करे,तभी इन्ही बच्चो में से एक 12 साल का बालक गौर वर्ण युक्त देखने में मन को शांति देने वाला घुडसवार के पास निर्भिक होकर आया और हाथ जोड प्रणाम किया। अपने सिर का अंगोछा खोल कर जमीन पर बिछाते हुए कहा कि श्रीमान आप बहुत थके हुए प्रतीत लग रहे है।
अश्व से उतर कर कुछ देर इस पीपल की छांव में विश्राम करे। अश्वारोही को लगा कि जैसे कोई देवदूत बालक का रूप धारण कर उसे जीवनदान कर रहा हैं। वह अंगोछे पर पैर फैलाकर बैठ गया और इस बालक को देखते हुए कहा कि बेटे मुझे बहुत प्यास लगी हैं,क्या थोडा पानी मिलेगा। बालक ने बडे ही रोवदार स्वर में अपने मित्र का नाम लेते हुए पुकारा कि उमराव पानी की मटकी और लौटा इधर लेकर आ।
एक सांवला से बालक पानी से भरी मटकी और पीतल का लोटा लेकर घुडसवार की ओर आया और लोटे में पानी भरकर अश्वरोही की ओर बढाया। अश्वारोही पानी का लौटा लेकर जैसे ही पीने को हुआ वैसे ही इस गौर वर्ण बाले बालक ने रोका और बोला,श्रीमान थोडा रूक जाइये,अभी पानी न पीजिए। अश्वारोही ठिठक गया। और लोटे को जैसा का तैसी ही पकडा रहा। बालक दौडकर पीपल की दुसरी ओर गया और स्वेत वस्त्र की एक पोटली हाथ में लेकर दौडता हुआ आया।
श्रीमान पहले कुछ खा लिजिए। मेरी मां का कहना है कि कि दोपहर में बिना कुछ खाए पानी पीने से लू लगने का डर रहता हैं,और यह कहते हुए उसने पोटली खोल कर अश्वारोही के सामने रख दी। इस पोटली में रोटी और गुड के बने हुए लडडू थे। अश्वारोही ने एक लडडू उठाकर खाया। इस चिलचिलाती धूप में गुड का सेवन करने से और शीतल जल पीने से उसके मन में शांति हुई ओर उसके शरीर में नई उर्जा का संचार होने लगा।
राजपुरूष की अनुभवी आंखे इस बालक पर जम गई। और उसे लगा कि एक होनहार व्यक्त्तिव जैसे किशोर के रूप में उसके सामने खडा हैं। अश्वारोही ने पूछा कि बेटे तुम किसके पुत्र हो ओर कहा रहते हों। बालक ने नि:सकोंच भाव से उत्तर दिया कि मेरे पिताली का नाम पंडित वृन्दावन उपमन्यु हैं। हम भटनावर ग्राम के निवासी हैं और थोडी ही दूर हमारा गांव हैं।
अश्वारोही बालक की निर्भिक वाणी से अभिभूत हो उठा। बोला पुत्र मुझे अपने माता—पिता के पास ले चलोगें। बालक ने कहा कि अवश्य श्रीमान आप दोपहरी में थोडा विश्राम कर ले। हम भी कुछ खा पीकर विश्राम कर ले। सांझ होते ही आपको में अपने घर ले चलूंगा। आज आप हमारा अतिथ्य स्वीकार करे। अश्वारोही हस दिया।
बालक इतना कह कर अपने मित्रो के साथ के साथ भोजन कर खेलने लगेंं। अश्वरोही भी अंगोछे पर लेट गया और पीपल पर सर रखकर सो गया। एक प्रहर बीता होगा कि तभी घोडा हिनहिनया उससे अशवारोही की नींद खुल गई। उसने देखा कि सभी बालक सो रहे है,अचानक उसकी नजर इस गौरवर्ण वाले सोते हुए बालक पर पडी,उसने देखा कि बालक के मुख पर धुप आ रही है और उस धूप से बचाने के लिए साक्षात कालस्वरूप अपने पूरे फन फैलाए एक नाग खडा था,नाग ऐसे फन फैलाए खडा था कि उसके मुख पर धूप न पडे। इस विचित्र चित्र को देख् कर अश्वारोही की आंखे विस्मित होने लगी,और सोचने लगा कि की ये बालक जाग न जाए..............आगे क्रंमाश: प्रकाशित होगी।
Social Plugin