केपी सिंह ने विपरित परिस्थतियो में भी दिया धैर्य का परिचय, परन्तु समर्थको ने खोया आपा | SHIVPURI NEWS

0
शिवपुरी। पिछोर विधानसभा सीट पर कांग्रेस को लगातार 6 बार कब्ला दिलाने वाले पिछोर के पहलवान केपी सिंह को मप्र सरकार में मंत्री न बनाए जाने पर विपरित परिस्थतियो में धैर्य का परिचय दिया हैं, लेकिन उनके समर्थको ने अवश्य अपना आपा खो दिया और गलत बयानबाजी और सोशल मिडिया पर अपत्तिजनक शब्दो का प्रयोग किया गया हैं।

 विधायक केपी सिंह पिछोर से लगातार 6 बार से चुनाव जीत रहे हैं। एक ओर जहां उन्होंने धैर्य रखा, वहीं उनके समर्थकों ने सारी सीमाएं लांघ दी और सांसद सिंधिया को परिणाम भुगतने की चेतावनी दे डाली। सूत्र बताते हैं कि कांग्रेस के तीनों नाराज विधायक दिल्ली कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी से मिलने के  लिए पहुंच गए हैं। उन्होंने राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा हैं। वहीं मंत्री न बनाने से सिंधिया समर्थक बदनावर विधायक राजवर्धन सिंह भी नाराज हैं और उनकी प्रतिक्रिया है कि मुझे मंत्री इसलिए नहीं बनाया गया क्योंकि मेरे पिता न तो मुख्यमंत्री और न ही उपमुख्यमंत्री रहे हैं। राजवर्धन सिंह ने विधायक पद से इस्तीफे तक की धमकी दे डाली। 

कमलनाथ केबिनेट में स्थान पाने की प्रबल संभावना के चलते मंत्री मंडल शपथ ग्रहण से एक दिन पूर्व विधायक केपी सिंह भोपाल पहुंच गए थे। सूत्र बताते हैं कि इस दौरान उन्होंने पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह से मुलाकात की और दिग्विजय सिंह ने उनके समक्ष विधानसभा अध्यक्ष बनने का प्रस्ताव रखा लेकिन केपी सिंह ने विधानसभा अध्यक्ष बनने से इंकार किया और मंत्री पद की इच्छा जाहिर की। मंत्री न बनने की संभावना के चलते केपी सिंह रात में ही अपने गांव करारखेड़ा आ गए। 

मंत्री मंडल गठन वाले दिन वह करारखेड़ा से पहले पीताम्बरा पीठ पहुंचे और फिर ग्वालियर चले गए। ग्वालियर में उन्हें मंत्री मंडल गठन की सूचना मिल गई लेकिन केबिनेट मेें उनका नाम न होने से उन्हें निराशा भी हुई। लेकिन ऐसी स्थिति में केपी सिंह ने धैर्य रखा और मीडिया से दूरी बनाकर रखी। अपने नजदीकी लोगों से उन्होंने यह अवश्य कहा कि मुझे नहीं पता मेरा नाम कहां चला गया है। 

लेकिन सुमावली विधायक एदल सिंह कंसाना ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा कि उन्हें सिंधिया के दबाव के कारण मंत्री नहीं बनाया गया है। केपी सिंह और एदल सिंह के समर्थकों ने भोपाल में भी प्रदर्शन किया। वहीं एदल सिंह के समर्थक मंडल अध्यक्ष ने अपना इस्तीफा भेज दिया। 

सूत्र बताते हैं कि केपी सिंह सिंधिया और दिग्विजय सिंह के सम्पर्क में हैं और कल वह तथा नाराज अन्य विधायक राहुल गांधी से मिलने के लिए दिल्ली पहुंच गए हैं। उन्होंने राहुल गांधी से मिलने का समय मांगा है लेकिन यह स्पष्ट नहीं हो सका कि उनकी राहुल गांधी से मुलाकात हुई है अथवा नहीं। 

पिछोर में केपी समर्थकों में नाराजी 

पिछोर विधानसभा क्षेत्र जहां से केपी सिंह 1993 से लगातार चुनाव जीत रहे हैं। इस कारण पिछोरवासियों को आशा थी कि उनके प्रतिनिधि को प्रदेश मंत्री मंडल में अवश्य स्थान मिलेगा। केपी सिंह दिग्विजय सिंह मंत्री मंडल में भी पशु पालन मंत्री रहे थे। हालांकि 1998 में सरकार बनने के बाद आशा थी कि केपी सिंह को मंत्री मंडल में स्थान मिलेगा। उस समय भी दिग्विजय सिंह ने केपी सिंह को मंत्री नहीं बनाया। 

हालांकि बाद में उन्हें केबिनेट में शामिल अवश्य कर लिया गया। लेकिन विभाग हल्का फुल्का ही दिया गया। केपी सिंह के समर्थक उन्हें मंत्री न बनाने के लिए सांसद सिंधिया के साथ-साथ पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह को भी जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। केपी सिंह के समर्थक राजेश राजौरिया ने फेसबुक पर पोस्ट डाली की उन्हें मंत्री न बनाने के लिए दिग्विजय सिंह जिम्मेदार हैं। 

दिग्विजय सिंह के प्रति उन्होनें बेहद भद्दी टिप्पणी लिखी और बताया कि वह दिग्विजय सिंह के समर्थक हैं और उन्हें मंत्री बनाने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह पर है। दिग्गी राजा ने अपने 10 विधायकों को मंत्री बना दिया। जिनमें उनके पुत्र और भतीजे भी शामिल हैं। ऐसे में केपी सिंह मंत्री नहीं बने तो जिम्मेदार कौन है यह आसानी से समझा जा सकता है। लेकिन केपी सिंह के बहुत से समर्थकों ने उन्हें मंत्री न बनने देने के लिए सिंधिया को जिम्मेदार ठहराया है और उनके प्रति सोशल मीडिया पर अभद्र टिप्पणियां की हैं। 

विधायको की संखया कम है इस कारण हो रहे है यह हालात निर्मित

प्रदेश मंत्री मंडल में जगह ने मिलने से कम से कम 10 विधायक नाराज हैं। इनमेें जयस विधायक हीरालाल अलावा के  अलावा सपा, बसपा के विधायक भी शामिल हैं और ये विधायक लगातार दबाव बना रहे हैं। यहां तक की सरकार गिराने की धमकियां भी दी जा रही हैं। यह स्थिति इसलिए भी निर्मित हो रही है क्योकि विधानसभा चुनाव में जनता ने कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया। कांग्रेस सत्ता में अवश्य आ गई है। 

सत्ता में बना रहने के लिए उसे सपा, बसपा और निर्दलीय विधायकों का भी साथ चाहिए। इसी कारण मंत्री न बनने से नाराज विधायक सरकार को ब्लैक मेल करने पर तुले हुए हैं। 230 सदस्यीय सदन में कांग्रेस को 114 और भाजपा को 109 सीटें मिली हैं। जबकि 7 सीटों में से एक सीट पर सपा और तीन पर बसपा एवं तीन अन्य सीटों पर निर्दलीय विधायक जीते हैं। 

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!