नदी नालों और खुले में फेंक रहे है मेडिकल वेस्ट, आखिर प्रशासन क्यों नहीं दिखा पा रहा सख्ती, बढ़ा संक्रमण का खतरा

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इमरान अली कोलारस। से तो पूरे प्रदेश में इन दिनो स्वाथ्य सेबाएं बैंटीलेटर पर है। परंतु कोलारस में तो स्वाथ्य सेबाओं की तो छोडों अस्पताल से निकलने बाले बैस्टेज ही लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है। भले ही स्वास्थ्य विभाग अच्छे स्वाथ्य का दाबा कर रहा हो। परंतु जिले में स्वास्थ्य सुविधाएं पूरी तरह से चरमाराई है। इस सुबिधाओं की तो छोडो कोलारस में तो स्वाथ्स्य सुविधाओं के बाद बचने बाला अबशेष लोेगों को परेशान कर रहा है। 

कोलारस स्वास्थ केन्द्र से निकलने बाले बायो मेडिकल वेस्ट नगर की  हवा को दुषित करने के साथ ही जानवरो के लिए मुसीबत बनता जा रहे हैं। कुछ क्लिनिको द्वारा मेडिकल बेस्ट को सुरक्षित निपटाने की बजाय यहां-वहां फैंकने के साथ ही आग के हवाले किया जा रहा है। एक तरफ स्वच्छता पखवाड़ा चल रहा और दूसरी तरफ नदी नालो के साथ हवा में जहर घोला जा रहा है लेकिन जिम्मेदारो की जानकारी के बाद भी मामला सिर्फ नोटिस तक सिमट कर रह गया है। यह जांच का विषय है। 

इस पर न तो स्वास्थ्य विभाग ही ध्यान दे रहा है और न ही नगर परिषद व जिला प्रशासन को इसका पता लगाने कोई रूची दिखाई दे रही है। एक ओर क्लिनिको के आप पास नाला होने की वजह से जैव अपशिष्ट के रिसकर नाले के पानी को दूषित करने का खतरा है। मेडिकन बेस्ट खुले और नदी नालो में फेंकने पर स्वास्थ विभाग के नीयमो की धज्जियां तो उड़ ही रही है। साथ ही ऐसे क्लिनिक संचालक नेशनल ग्रीन टिब्यूनल के नार्म्स को भी नजर अंदाज किया जा रहा है। प्रतिदिन भारी मात्रा में विषैला कचरा यूं ही बिना ट्रीटमेंट के खुले में फेंके जाने से संक्रमण का खतरा बढ़ता जा रहा है, जिसे रोका नहीं गया तो संक्रमक बीमारियों का खतरा हो सकता है। 

कलर कोड प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं

नियमों के अनुसार अस्पताल प्रबंधनों या नर्सिंग होम्स को अपने संस्थानों में कुल पांच तरह के डिब्बे व प्लास्टिक का उपयोग करना चाहिए। इसमें लाल, पीला, नीला, काला व हरा रंग का प्लास्टिक बैग व डस्ट बिन होना चाहिए। लाल डिब्बे व प्लास्टिक में ब्लड बैग, ट्यूब के पाइप, सिरिंज व आईवी सैट रखना होता है। पीले में मानव ऊतक, प्लास्टर, रूई, गंदी पट्टियां, नीले में सुईयां, ब्लेड, खाली दवाओं के वायल व एम्पुल, काले डिब्बे में बेकार दवाइयां तथा हरे डिब्बे में कागज, धातु के टुकड़े तथा अन्य कचरा रखा जाता है। इन सभी अलग-अलग उठाव व निपटान होना चाहिए, लेकिन अस्पताल प्रबंधन सबको मिक्स कर इनके निपटान को मुश्किल व असुरक्षित कर देता है।


झोलाछाप और क्लीनिको की अहम भुमिका-

खुले में बायोमेडिकल वेस्ट फेंकने से इंफेक्शस डिजीज फैलने का खतरा बढ़ गया है। इसका एक प्रमुख कारण नगर और राई रोड पर संचालित होने वाले झोलाछाप व क्लीनिक हो सकते है। मेडिकल बेस्ट और सीरिंजो को नदियो में फेंकने से जानवर भी सीरिंज की चपेट में आने से उसे भी इंफेक्शन होने की आशंका है। नियम के अनुसार, हास्पिटल मैनेजमेंट को बायोमेडिकल वेस्ट का अलग- अलग कलेक्शन करने के बाद उसका डिस्पोजल करना होता है। लेकिन क्लीनिक संचालको द्वारा डिस्पोजल करने की बजाय कचरा जहां- तहां रिम्स कैंपस में ही फेंक दे रहे हैं।

कबाड़ में बेचे जा रहे प्लास्टिक के सामान

हर रोज निकलने वाले बायो मेडिकल वेस्ट में प्लास्टिक के रंगीन बैग का इस्तेमाल किया जाना चाहिए। बावजूद इसके मेडिकल संस्थानों द्वारा बाजार में मिलने वाले साधारण प्लास्टिक में ही कचरा भरने इस्तेमाल किया जाता है। इस प्रक्रिया के तहत बॉटल व प्लास्टिक के अन्य सामानों को कंपनी के हवाले करने की बजाय कबाड़ में बेच दिया जाता है, जहां से बिना ट्रीटमेंट के ही इन बॉटलों का नवीनीकरण कर दिया जाता है, जो असुरक्षित हो सकता है।

इनका कहना है 
आपके द्वारा यह मामला संज्ञान में लाया गया है। सरकारी अस्पताल में तो वयवस्था दुरूस्त है। अगर प्राईवेट डाॅक्टर ऐसा कर रहे है तो इसे दिखवा लेते है। 
आशीष तिवारी,एसडीएम कोलारस। 

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