शिवपुरी। अब चुनाव साईलेंट मोड पर आ चुका है। जिले की पांचो सीटो पर जबर्दस्त घामसान देखने को मिल रहा हैं। कोई भी किसी भी प्रत्याशी के स्पष्ट हार जीत का दावा नही कर पा रहा है। जिले के पांचो विधानसभा सीटो पर चार विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां निवर्तमान विधायक पुन: अपनी किस्मत अजमा रहे है। पिछले 1 माह से सभी प्रत्याशियो ने अपने प्रचार में पूरी ताकत लगा दी।
ये हैं शिवपुरी और पोहरी के भाजपा प्रत्याशी क्रमश
यशोधरा राजे सिंधिया और प्रहलाद भारती तथा पिछोर और कोलारस के कांग्रेस प्रत्याशी क्रमश: केपी सिंह और महेन्द्र यादव। इन चारों सीटों पर यदि एंटीइन्कमवंशी फैक्टर का प्रभाव हावी हुआ तो विधानसभा पहुंचने की राह इन चारों प्रत्याशियों के लिए काफी मुश्किल भरी साबित हो सकती है। अकेले करैरा विधानसभा सीट ऐसी है जहां कांग्रेस ने अपने निवर्तमान विधायक शकुन्तला खटीक का टिकट काटकर नए प्रत्याशी जसवंत जाटव को टिकट दिया जबकि भाजपा ने भी चर्चा में चल रहे नामों को दरकिनार कर राजकुमार खटीक को मैदान में उतारा है।
2013 के विधानसभा चुनाव में जब पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर थी और शिवराज तथा मोदी का जादू सिर चढ़कर बोल रहा था तब शिवपुरी जिले में इस लहर का प्रभाव नजर नहीं आया था। जिले की पांच विधानसभा सीटों में से करैरा, पिछोर और कोलारस में कांग्रेस ने जीत हासिल कर बढ़त कायम की थी जबकि भाजपा सिर्फ दो विधानसभा सीटों शिवपुरी और पोहरी में सीमित हो गई थी। इस चुनाव में जब कांग्रेस और भाजपा के बीच पूरे प्रदेश में एक-एक सीट के लिए जोरदार संघर्ष चल रहा है तब दोनों दलों पर शिवपुरी जिले में अपनी सीटों को बचाने का न केवल दायित्व है, बल्कि वे चाहेंगे कि उनकी सीटों में इजाफा हो।
इसीलिए प्रत्येक सीट पर कांग्रेस और भाजपा सीट की लड़ाई लडऩे पर तुली हुई है, परंतु दिक्कत यह है कि जिले की पांच सीटों में से दो सीटों करैरा और पोहरी में कांग्रेस और भाजपा प्रत्याशियों को बसपा प्रत्याशियों से जबर्दस्त चुनौती मिल रही है और बसपा ने दोनों विधानसभा क्षेत्रों में मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है।
शिवपुरी में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा संघर्ष
शिवपुरी विधानसभा क्षेत्र में यूं तो कांग्रेस, भाजपा, बसपा, सपाक्स, आम आदमी पार्टी सहित 13 प्रत्याशी मैदान में हैं, लेकिन मुख्य संघर्ष भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया और कांग्रेस प्रत्याशी सिद्धार्थ लढ़ा के बीच है। अन्य प्रत्याशियों की भूमिका वोट कटाऊ उम्मीद्वार के रूप में मानी जा रही है।
बहुजन समाज पार्टी शिवपुरी में कभी मजबूत नहीं रही। अभी तक सिर्फ 1989 के विधानसभा चुनाव में जब बसपा की ओर से इरशाद पठान मैदान में थे तब अवश्य बसपा प्रत्याशी की मजबूती ने भाजपा प्रत्याशी की राह आसान की थी, लेकिन इसके बाद किसी भी चुनाव में बसपा उम्मीद्वार को 10-11 हजार से अधिक मत हासिल नहीं हुए, लेकिन माना जाता है कि बसपा को मिले मतों में से अधिकांश मत कांग्रेस के परम्परागत वोट है इस कारण कांग्रेस को इस विधानसभा क्षेत्र में 2007 के उपचुनाव को छोड़ दें तो 1985 के बाद लगातार नुकसान उठाना पड़ा है।
इस विधानसभा चुनाव में बसपा ने मुस्लिम उम्मीद्वार इरशाद राईन को टिकट दिया है और उनके समर्थन में बसपा सुप्रीमो मायावती आमसभा भी कर चुकी हैं। वहीं आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी पीयूष शर्मा भी किला लड़ा रहे हैं, लेकिन उनके पक्ष में अभी तक कोई बड़ी आमसभा नहीं हुई। सपाक्स ने बृजेश तोमर को उम्मीद्वार बनाया है। बसपा आम आदमी पार्टी और सपाक्स उम्मीद्वार किसी की जीत और हार में अवश्य निर्णायक भूमिका अदा कर सकते हैं।
भाजपा के बागी उम्मीद्वार ने पोहरी में मुकाबले को त्रिकोणीय बनाया
पोहरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा के बागी उम्मीद्वार कैलाश कुशवाह बसपा टिकट लेकर चुनाव मैदान में हैं और उन्होंने कांग्रेस उम्मीद्वार सुरेश राठखेड़ा तथा भाजपा उम्मीद्वार प्रहलाद भारती को जबर्दस्त चुनौती पेश की है। श्री कुशवाह का सकारात्मक पक्ष यह है कि उन्हें कांग्रेस और भाजपा के असंतुष्ट कार्यकर्ताओं का खुला सहयोग मिल रहा है।
पोहरी में कांग्रेस और भाजपा के अधिकांश कार्यकर्ता या तो हाथ पर हाथ धरे बैठे हैं अथवा पर्दे के पीछे से बसपा उम्मीद्वार को जिताने में जुटे हुए हैं। इन कारणों से पोहरी में बसपा उम्मीद्वार कैलाश कुशवाह मुकाबला जीतने की लड़ाई में शामिल हैं। वह जीतेंगे अथवा नहीं जीतेंगे यह सुनिश्चित रूप से तो नहीं कहा जा सकता, परंतु यह माना जा रहा है कि मुकाबला किसी भी उम्मीद्वार से हो, होगा बसपा उम्मीद्वार कैलाश कुशवाह से।
करैरा में भी भाजपा के बागी उम्मीद्वार ने बढ़ाई मुश्किल
पोहरी के बाद करैरा में भी भाजपा के बागी उम्मीद्वार रमेश खटीक मजबूती से चुनाव मैदान में डटे हुए हैं। पार्टी के समझाने के बाद भी वह सपाक्स पार्टी से चुनाव लड़ रहे हैं। यहां कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों के उम्मीद्वार नए हैं और बसपा ने तीन बार से चुनाव लड़ रहे प्रागीलाल जाटव को टिकट दिया है। प्रागीलाल जहां कांग्रेस उम्मीद्वार जसवंत जाटव के लिए सिरदर्द बने हैं वहीं भाजपा उम्मीद्वार राजकुमार खटीक की मुश्किलें सपाक्स उम्मीद्वार रमेश खटीक बढ़ा रहे हैं। करैरा में मुकाबला त्रिकोणीय अथवा चतुष्कोणीय होने के आसार हैं।
कोलारस में कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों में भितरघात
कोलारस विधानसभा क्षेत्र में महल की प्रतिष्ठा दांव पर है। यहां भाजपा ने कट्टर महल विरोधी वीरेन्द्र रघुवंशी को उम्मीद्वार बनाया है और श्री रघुवंशी ने सीधे-सीधे सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया को चुनौती देकर इस लड़ाई को महल समर्थक और महल विरोधियों के बीच बदल दिया है। कांग्रेस ने छह माह पहले उपचुनाव में जीते महेन्द्र यादव को टिकट दिया। दोनों दलों के प्रत्याशी भितरघात से जूझ रहे हैं। भाजपा प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी का विरोध जहां उनके ही दल के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता खुलेआम कर रहे हैं।
तीन बार से चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक देवेन्द्र जैन और उनके अनुज पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष जितेन्द्र जैन गोटू ने प्रचार से दूरी बना ली है। वह एक बार भी कोलारस नहीं आए हैं और इसकी कसक प्रत्याशी वीरेन्द्र रघुवंशी ने भी महसूस की है। वहीं कांग्रेस प्रत्याशी महेन्द्र यादव को टिकट अचानक तथा भाग्य का सहारा पाकर मिला। इस कारण इस विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस टिकट के आकांक्षी उनके विरोध में प्रचार में लगे हुए हैं। जबर्दस्त भितरघात के कारण कोलारस में मुकाबला काफी रोचक हो गया है।
पिछोर में क्या छठी बार विधायक बन पाएंगे केपी
पिछोर विधानसभा क्षेत्र में पांच बार से जीत रहे विधायक केपी सिंह इस बार फिर मैदान में हैं। उनका मुकाबला 2013 के पुराने प्रतिद्वंदी प्रीतम लोधी से है। इस विधानसभा क्षेत्र में भाजपा पूरी ताकत लगा रही है। भाजपा प्रत्याशी के समर्थन में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान सहित कई वरिष्ठ भाजपाईयों की आमसभा हो चुकी है। जबकि सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया केपी सिंह के पक्ष में सभा कर चुके हैं। इस चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह एंटीइन्कमवंशी फैक्टर से जूझ रहे हैं। यदि इस फैक्टर का प्रभाव हावी हुआ तो छठी बार चुनाव जीतना उनके लिए मुश्किल होगा।
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