जिले में न मोदी न शिवराज, यहां तो केवल महाराज | Shivpuri News

शिवपुरी। इस बार के लोकसभा चुनाव के समय पूरे देश में जब मोदी नाम की सुनामी की लहरे थी,लेकिन गुना-शिवपुरी इस लहर में नही बहा,इस चुनाव में केवल महाराज। विधानसभा चुनाव की बात करे तो 2003 से भाजपा की सरकार है। और शिवराज की लहर चली,लेकिन शिवपुरी में शिव लहर वेअसर रही यहां भी केवल महाराज।  

2003 के विधानसभा चुनाव में भाजपा जिले की पांच विधानसभा सीटों में से महज दो सीटें ही जीत पाई और यही स्थिति 2013 के विधानसभा चुनाव में रही और शिवुपरी और पोहरी भाजपा के खाते में रही। शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव जीती,तो पोहरी से उनके खास माने जाने वाले प्रहलाद भारती चुनाव जीते,शिवपुरी में भाजपा नही यशोधरा चुनाव जीतती है। 

2003, 2008 और 2013 के विधानसभा चुनावों की तुलना करें तो भाजपा ने सबसे कम सीटें 2008 के विधानसभा चुनाव में जीतीं थीं और उस चुनाव में शिवपुरी जिले में भाजपा का प्रदर्शन अवश्य संतोषप्रद रहा था और उसे पांच में से चार सीटों पर विजयश्री हासिल करने में सफलता हासिल हुई। 

शिवपुरी जिले में पार्टियों से अधिक महल का दबदबा रहा है। यही कारण है कि इस जिले में न तो राष्ट्रव्यापी और न ही प्रदेशव्यापी किसी लहर का असर देखने को मिलता है। यहां के मतदाता महल की इच्छा को शिरोधार्य कर अभी तक परिणाम देते रहे हैं। 1980 में जब स्व. माधवराव सिंधिया कांग्रेस में आए तो शिवपुरी जिले में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने सभी पांच सीटों पर विजयश्री हासिल की। 

1985 में भी कांग्रेस ने सभी पांचों सीटों पर कब्जा किया। 1989 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने अवश्य सभी पांच सीटों पर विजय हासिल की। इनमें शिवपुरी से सुशील बहादुर अष्ठाना, पोहरी से स्व. जगदीश वर्मा, कोलारस से ओमप्रकाश खटीक, करैरा से स्व. भगवत सिंह यादव और पिछोर से लक्ष्मीनारायण गुप्ता शामिल हैं।

1993 में जब पूरे प्रदेश में कांग्रेस लहर थी उस दौरान कांग्रेस ने तीन सीटें और भाजपा ने दो सीटों पर जीत हासिल की। जहां तक कांग्रेस का सवाल है कांग्रेस के करण सिंह ने करैरा से, बैजन्ती वर्मा ने पोहरी से और केपी सिंह ने पिछोर से जीत हासिल की जबकि भाजपा उम्मीद्वार देवेन्द्र जैन शिवपुरी और ओमप्रकाश खटीक कोलारस से विजयी हुए। 1998 के विधानसभा चुनाव में बाजी पलटी और कांग्रेस तीन से दो पर आ गई। 

कांग्रेस के उम्मीदवार पिछोर से केपी सिंह और कोलारस से स्व. पूरन सिंह बेडिय़ा जीते जबकि भाजपा के उम्मीद्वार शिवपुरी से यशोधरा राजे, पोहरी से नरेन्द्र बिरथरे और करैरा से रणवीर रावत ने जीत हासिल की। 2003 में जबकि पूरे प्रदेश में भाजपा की लहर थी। भाजपा पांच में से महज दो सीटों पर सिमट गई।

शिवपुरी से यशोधरा राजे सिंधिया और कोलारस से ओमप्रकाश खटीक विजयी हुए। भाजपा के लिए संतोष की बात सिर्फ यह रही कि कांग्रेस एक सीट पर आ गई और पिछोर से कांग्रेस उम्मीद्वार केपी सिंह चुनाव जीते। शेष दो सीटों में से करैरा सीट पर बसपा उम्मीद्वार लाखन सिंह बघेल और पोहरी सीट पर समानता दल के उम्मीद्वार हरिबल्लभ शुक्ला विजयी हुए। 

2008 के विधानसभा चुनाव में यशोधरा राजे सिंधिया चुनाव मैदान में नहीं उतरीं, लेकिन उन्होंने प्रचार की कमान संभाली। इस विधानसभा चुनाव में भाजपा उम्मीद्वार चार सीटों पर विजयी हुए। 

शिवपुरी से माखनलाल राठौर, करैरा से रमेश खटीक, पोहरी से प्रहलाद भारती, कोलारस से देवेन्द्र जैन चुनाव जीते जबकि कांग्रेस को सिर्फ पिछोर सीट से संतोष करना पड़ा जहां से उसके उम्मीद्वार केपी सिंह विजयी हुए। 2013 के विधानसभा चुनाव में जबकि भाजपा ने 230 विधानसभा सीटों में से 165 सीटों पर कब्जा हासिल किया और कांग्रेस महज 58 सीटों पर सिमटी।

लेकिन शिवपुरी जिले में कांग्रेस का प्रदर्शन आशा के अनुरूप रहा और कांग्रेस के उम्मीद्वारों ने तीन विधानसभा क्षेत्रों कोलारस, करैरा और पिछोर में जीत हासिल की जहां से उसके उम्मीद्वार क्रमश: स्व. रामसिंह यादव, शकुन्तला खटीक और केपी सिंह विजयी हुए जबकि भाजपा को शिवपुरी और पोहरी में जीत से संतोष करना पड़ा। 

शिवपुरी में यशोधरा राजे सिंधिया और पोहरी में प्रहलाद भारती विजयी हुए। देखना यह है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में जब पूरे प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच बराबर की टक्कर मानी जा रही है तब शिवपुरी जिले में दोनों दलों की स्थिति क्या रहेगी यह देखने वाली बात होगी। अब तो न मोदी की लहर है और न ही शिवराज की अब देखमे है कि इस महल का कितना जादू चलता है।