भावांतर घोटाला: जांच सिद्ध, लेकिन मंडी बोर्ड ने फिर शुरू की जांच, कर्मचारियो को बचाने में जुटा भोपाल मंडी बोर्ड

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शिवपुरी। अभी शिवपुरी प्रशासन की सक्रियता से शिवपुरी में लगभग 6 करोड का भावातंर घोटाला होने से पूर्व ही बच गया हैं। इस घोटाले के तार मंडी बोर्ड भोपाल से जुडे हुए हैं। क्योंकि शिवपुरी की जांच पर भोपल मंडी बोर्ड को विश्वास नही हैं और वह फिर अपने अधिकारियों से जांच करवा रहा हैं। इससे पूर्व भावातंर की शिकायत मंडी बोर्ड के भोपाल के कर्मचारी करने आए थे और उन्है यहां सब नियमानुसार मिला और वे क्लीन चिट दे कर गए थे,लेकिन इसके बाद शिवपुरी प्रशासन ने इस मामले की जांच कराई और उक्त घोटाले का भ्रूण पकड में आ गया। अब इस घोटाले के भ्रूण का ऑपरेशन करने जुटा हैं मंडी बोर्ड भोपाल। 

अब यह हो रहा है इस मामले में
मंडी बोर्ड अपर संचालक एसडी वर्मा के नेतृत्व में संयुक्त संचलाक ग्वालियर आरपी चक्रवर्ती ने तीन दिन शिवपुरी रुककर भौतिक सत्यापन से लेकर अन्य जरूरी दस्तावेज इकट्‌ठा किए हैं। 
अपर संचालक वर्मा का कहना है कि मंडी बोर्ड इस मामले की अलग से जांच करा रहा है। उसके बाद जो भी दोषी होगा उसके खिलाफ विधिवत कार्रवाई की जाएगी। जिससे साफ हो रहा है कि प्रशासनिक कार्रवाई पर मंडी बोर्ड को भरोसा नहीं है। 

अपर कलेक्टर शिवपुरी के नेतृत्व में हुई कार्रवाई को पूरी तरह सही नहीं मानकर मंडी बोर्ड अलग दिशा में काम कर रहा है। सूत्रों का कहना है कि अपनों को बचाने की कोशिश के तहत यह कवायद चल रही है। वहीं धांधली से ध्यान भटकाने के मकसद से मंडी बोर्ड ने पूर्व में संबंधित व्यापारिक फर्मों पर प्रभावी कार्रवाई की बजाय मंडी टैक्स चोरी निकालकर कागजों में पांच गुना जुर्माना वसूलने की कार्रवाई की है। मंडी बोर्ड द्वारा मंडी के जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई नहीं करना कई सवाल खड़े कर रहा है। मंडी बोर्ड का दल रविवार की दोपहर बार शिवपुरी से रवाना हो गया है। 

उद्यानिकी विभाग के नोडल व सब्जी मंडी प्रभारी की थी पूरी जिम्मेदारी, फिर भी कार्रवाई नहीं 

भावांतर स्कीम में उद्यान विभाग की तरफ से नोडल अधिकारी सुनील भदकारिया को बनाया था। मौके पर हो रही खरीदी की पूरी जिम्मेदारी दी गई। वहीं सब्जी मंडी का प्रभार मंडी निरीक्षक रघुनाथ लोहिया के पास था। जिनके द्वारा प्रत्येक गाड़ी का गेट पास जारी किया जाता है। प्याज-लहसुन खरीदी में उक्त दोनों अधिकारियों पर बड़ी जिम्मेदारी थी। लेकिन प्रशासनिक जांच में उक्त दोनों का कहीं से कहीं तक नाम ही नहीं है। हालांकि भदकारिया का कहना है कि जब उन्हें नोडल बनाया, अधिकतर खरीदी हो चुकी थी। वहीं लोहिया भी पूरी प्रक्रिया से खुद को अलग थलग बता रहे हैं।
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