
शिवपुरी की राजनीति:
हम सबसे पहले पिछोर की बात करते हैं। यह कांग्र्रेस का अभेद किला हैं। इस किले को भेदने के लिए भाजपा ने अपनी रणनीति अभी से बनानी शुरू कर दी हैं। इस कारण ही इस किले के चक्रव्यूह को तोडने के लिए पिछली बार केपी सिंह से हार का स्वाद चख चुके प्रीतम लोधी अभी से यहां अपना डेरा डाल चुके है। केपी सिंह ने भाजपा के कई दिग्गजो का चुनाव हार हराया है पूर्व सीएम उमाभारती के भाई स्वामी प्रसाद लोधी को भी चुनाव हराया हैं।
लेकिन पिछली बार कांग्रेस विधायक केपी सिंह से पटकानी खा चुके प्रीतम लोधी ही एक अकेले भाजपा के प्रत्याशी निकले जो केपी सिंह के किले के इस चक्रव्यूह को तोडने के सबसे नजदीक पहुंचे थे। पिछली बार केपी सिंह की जीत का मात्र 7 हजार वोटो से चुनाव जीते थे। यह जीत उनकी सबसे कम अंतर की जीत हैं,लेकिन इसके बाबजूद भी वहां कांगे्रस वहां दूर-दूर तक कोई भी केपी सिंह के टक्कर का प्रत्याशी नही हैं। केपी सिंह का पिछोर से टिकिट पक्का माना जा रहा हैं।
कोलारस विधानसभा पर 6 माह पहले ही महेन्द्र उपचुनाव में विजयी हुए है,इस अल्प अवधि में जनता के बीच वह अपनी छवि बनाने में असफल दिख रहे हैं। कार्यकर्ताओ के साथ भी उनकी पटरी नही बैठने की खबर आ रही हैं। सूत्र बता रहे हैं कि की पार्टी की ताजा रिर्पोट में उनकी स्थिती अच्छी नही हैं।
'इस कारण पार्टी इस सीट को बचाने के लिए किसी दूसरे विकल्प पर विचार कर सकती हैं। अभी की स्थिती में कोलारस विधायक महेन्द्र यादव का टिकिट पक्का नही हैं। कार्यकर्ताओ का दबे स्वर में कहना है कि महेन्द्र सिंह यह मान बैठे है कि वह अपने चुनाव में पूरी भाजपा पर भारी रहे,लेकिन वह यह भूल जाते है कि वह अपने चुनाव के रण में सांसद सिंधिया के रथ पर सवार थे और उनके सारथी सिंधिया ही थे।
करैरा विधानसभा क्षेत्र से पिछले चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी शंकुतला खटीक भाजपा प्रत्याशी ओमप्रकाश खटीक अपनी कार्यप्रणाली से विवादित रही हैं,जनता और कांग्रेस के लोकल कार्यकता और पदाािधकारियो से भी उनके रिश्त अच्छे नही हैं। पार्टी की सर्वे रिर्पोट भी उनके पक्ष में नही हैं। अगर इस सीट से बसपा से गठबंधन नही हुआ तो पार्टी किसी और नाम पर मोहर लगा सकती हें। हाल के जो समीकरण बन रहे है,उसमें कह सकते हैं कि वर्तमान विधायक शकुतंला खटीक का पत्ता कट सकता हैं।
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