
इसी प्रकार इस गांव के कृषक सरदार सिंह पुत्र बाबूलाल रावत ने भी रेज्डवेड विधि से अपने खेतों में सोयाबीन बोई और उन्हें 3.2 क्विंटल प्रतिबीघा सोयाबीन का उत्पादन मिला। अन्य कृषकों ने इस यंत्र के प्रयोग किए बिना एक से दो क्विंटन प्रतिबीघा सोयाबीन का ही उत्पादन मिला। साथ ही 15 किलो प्रति बीघा बीज की भी बचत हुई।
कृषक श्री अखेह सिंह एवं सरदार सिंह ने बताया कि रेज्डवेड विधि से खरीफ फसले बोने पर अधिक उत्पादन प्राप्त होता है। साथ ही खर्चों में भी कमी आती है। उन्होंने बताया कि रेज्डवेड उपकरण के माध्यम से खेतों में जमीन से उठी हुई क्यारियां बनाकर दो या तीन कतारों में बीज बोए जाते है, नाली के दोनों ओर 20 से 22 इंच तक चौड़ाई की क्यारी का निर्माण होता है।
नाली सिंचाई और जल निकास का कार्य करती है। इस उपकरण से बोवनी करने पर फसलों पर सूखे और बाढ़ का दुष्प्रभाव नहीं पड़ता है। यह उपकरण अंतरवर्ती फसल लेने हेतु उत्तम है। क्यारी भुरभुरी होती है और इस कारण अंकुरण का प्रतिशत तथा फसल का उत्पादन बेहतर होता है। रेज्डवेड प्लांटर से बोनी करने पर बीज, उर्वरक, पौध संरक्षण, रसायनों तथा सिंचाई जल की मात्रा में उल्लेखनीय कमी आती है। कतारों तथा पौधों की नियंत्रित दूरी के कारण खरपतबार नियंत्रण करना भी आसान होता है।
कृषि अभियांत्रिकी विभाग द्वारा रेज्डवेड प्लांटर पर अलग-अलग वर्गों के किसानों को अनुदान दिया जाता है। जिसमें अनुसूचित जाति एवं जनजाति, लघु तथा महिला कृषकों को यंत्र की कुल कीमत का 50 प्रतिशत जबकि अन्य कृषकों को 40 प्रतिशत अनुदान साथ ही 20 हजार रूपए का अतिरिक्ति टॉपअप अनुदान दिया जाता है।