माता-पिता धन दौलत के नहीं वात्सल्य के प्यासे: आर्यिका मां पूर्र्णमति

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खनियांधाना। कैसी विडंबना है कि आज भारत जैसे सांस्कृतिक प्रधान देश में माता-पिता के सम्मान के लिए समारोह आयोजित करना पड़ रहा है। क्योंकि माता-पिता का सम्मान तो सदैव हृदय में रहना चाहिए। माता-पिता धन-दौलत, वस्त्रादि के भूखे नहीं हैं। उन्हें तो केवल प्रेम वात्सल्य की दौलत की प्यास रहती है। माता-पिता का अरमान रहता है कि जब तुमने पहली बार आंखें खुली तो माता-पिता तुम्हारे सामने थे, तो जब वह अंतिम सांस ले तो तुम उनके सामने रहो, जिन बच्चों के माता-पिता नहीं होते वह अनाथ कहलाते हैं, भावार्थ हमारे माता-पिता हमारे नाथ, अर्थात स्वामी है, तो हम ऐसा कार्य करें कि हम सनाथ बने रहें। यह प्रवचन आर्यिका मां पूर्णमति माता ने नगर खनियांधाना के टेकरी मंदिर प्रांगण में आयोजित जनक-जननी सम्मान समारोह में श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए दिए।  

उन्होंने कहा कि बचपन में जब हम बिस्तर गीला करते थे तो मां खुद गीले में सोकर हमें सूखे में सुलाती थी, लेकिन आज हम ऐसी करनी न करें कि हमारे कारण मां की आंखें गीली हो जाए। स्वयं शरीर में मां का स्थान हृदय के समान और पिता का स्थान मस्तिष्क के समान होता है। हम 5 किलो का पत्थर पेट पर बांध कर 9 मिनट भी नहीं चल फिर सकते जबकि मां हमारा वजन पेट में लिए 9 माह तक चलना फिरना, कार्य करना आदि सब करती रहती है। 

माता ने कहा कि मां संंतान में जो संस्कारों का रोपण करती है वह कोई नहीं कर सकता और हम संस्कारहीन होकर उन्हें कष्ट पहुंचा रहे हैं।  हमारी संस्कृति वह है कि जहां राम ने पिता के वचन को पालन करने के लिए 14 वर्ष का बनवास स्वीकार कर लिया था, श्रवण कुमार ने अपने अंधे माता-पिता को कंधे पर कांवड़ में रखकर तीर्थ यात्रा कराई थी, लेकिन हम अंतिम यात्रा में भी माता-पिता का साथ नहीं दे पाते। माता-पिता को टूटा-फूटा सामान ना समझें बल्कि उन्हें कीमती हीरा समझे। पत्नी का चुनाव किया जा सकता है लेकिन मां का नहीं वह स्वत: मिलती है।

आयोजित कार्यक्रम में सुबह की बेला में सर्वप्रथम श्रीजी का अभिषेक एवं जगत के कल्याण की भावना से वृहद शांतिधारा की गई। इसके बाद पूज्य आर्यिका संघ को एक भव्य जुलूस के रूप में कार्यक्रम स्थल टेकरी मंदिर प्रांगण लाया गया। इस अवसर पर विभिन्न् सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए जिसको सभी ने सराहा। आर्यिका मां पूर्णमति माता को शास्त्र भेंट करने का सौभाग्य बाबूलाल, संजीव कुमार, राजीव कुमार खिरकिट वालों को प्राप्त हुआ।

जिस घर में माता-पिता का सम्मान न हो, वह घर नहीं हो सकता
इस अवसर पर अमीता जैन, कुसुम सिंंह ने कहा कि आज हम वृद्ध माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ रहे हैं, यह बड़ी विडंबना है। जिस मकान की नींव न हो वह खड़ा नहीं रह सकता, जिस घर में माता-पिता का सम्मान न हो, वह घर नहीं हो सकता। माता-पिता के सम्मान के संबंध में भावपूर्ण विचार व्यक्त किए। इसके बाद माता-पिता का सम्मान उनकी पुत्रवधू एवं पुत्र आदि ने तिलक लगाकर श्रीफल माला सहित विभिन्न उपहार भेंट किए। 

गलतियों के लिए माता-पिता से मांगी माफी
ऐसे बच्चे जो अपने माता पिता बड़े भाई या बुजुर्गों से किसी कारणवश बात नहीं करते उनसे अलग रहते हैं उनके माता-पिता किसी कारण बात से अपने बच्चों से नाराज रहते हैं। सभी ने अपने माता-पिता को बहुत भाव से अपना सिर उनके पैरों में रखकर अपनी गलतियों की क्षमा मांगी और संकल्प लिया कि चाहे कुछ भी हो जाए कभी माता-पिता का दिल नहीं दुखाएंगे। उपस्थित लोगों का कहना है कि वास्तव में यह कार्यक्रम बेहद भाव-विभोर करने वाला था। कार्यक्रम में उपस्थित लोगों ने संकल्प लिया कि आज के बाद हम कोशिश करेंगे हमारे माता-पिता को किसी भी प्रकार का कष्ट-दुख न हो।

जिस घर में माता-पिता बसते हैं वहां प्रभु बसते हैं 
बाल ब्रम्हचारी विनय भैया ने कहा कि सात बार तो सात, दिन में होते हैं लेकिन आठवां बार मात-पिता हैं जिनके बिना दिन ही नहीं हो सकता। जिस घर में माता-पिता बसते हैं वहां प्रभु बसते हैं। जिस घर में माता पिता रहते हैं वहां नव वर्ष, होली, दीवाली, तीनों त्योहार प्रतिदिन मनाए जाते हैं। 

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