कुछ चवन्नियां और एक जिद: जीवन ऐसे जिया कि जीवन ग्रंथ बन गया

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कलम से श्रंद्वाजलि @ललित मुदगल /शिवपुरी। 29 मई मंगलवार की दोपहर शिवपुरी से ग्वालियर पिताजी स्व:श्री नक्टूराम शर्मा को ले जाते समय सतनवाड़े पर उन्होने अंतिम सांस ली। उनकी अंतिम सांस लेते ही एक ऐसे जीवन ग्रंथ का समापन हो गया, जहां सघंर्ष, ईमानदारी, और कर्म करने की दृढ़शक्ति दिखाई देती थी। आज वह अपने पीछे एक भरा पूरा परिवार और शिवपुरी के कारोबार जगत में श्रीराम पाईप एंड सेनेट्री का नाम छोड गए है लेकिन इस सफलता और समाज में एक स्थान पाने की पीछे एक लंबी सघंर्ष की कहानी है। कहा जाता है कि संसार की सबसे बड़ी शक्ति ईच्छाशक्ति होती है, वह शक्ति शर्माजी में थी। 

शिवपुरी से 80 किमी दूर मुरैना जिले की विजयपुर तहसील का एक गांव सहसराम के रहने वाले स्व: श्री नक्टूराम शर्मा के पिता श्री रामजीलाल शर्मा का निधन जब हुआ तब वो मात्र 2 साल के थे। 09 साल की आयु होते ही माता सरस्वती देवी का भी निधन हो गया। मां का साया सर से उठने के बाद जीवन का संघर्षं शुरू हो गया। वो अक्सर कहा करते थे कि मैं 9 साल की उम्र बडा हो गया था। पिताजी कहते थे कि मां ने मेरा नाम नक्टूराम रखा था लेकिन प्यार से मुझे सब पिलुआ भी कहते थे। 

घर के पास एक पुराहित परिवार रहता है, वह मुझे अपने खेतों पर ले जाते और चखरी हाकने का काम पर लगा देते। मुझसे बाबा ने 5 दिन चखरी हकवाई। मुझे लगता था वे मुझे अपने पैरों पर खडा होते देखना चाहते थे। वे मुझे किसी की दया पर जीना देखना नही चाहते थे। मेरे माता-पिता के बाद उन्होने 25 पैसे प्रतिदिन के हिसाब से सवा रूपया दिया। बाबा और उनकी पत्नि मलोबाई मुझसे बडा ही स्नेह करते थे। पहले व्यापार की परिभाषा और मेहनत से पैसे कमाने की सीख जाने-अनजाने में मुझे पुरोहित बाबा ने ही सिखलाई थी। 

इसके बाद बाबा ने मुझे गांव के पास के ही एक गांव में हो रही भगवत्त कथा में बर्नी पर बिठा दिया। जहां मुझे कथा होने के समय माला लेकर भगवत् भजन किया। सात दिन की भागवत के बाद मुझे दक्षिणा के रूप में एक रू पचास पैसा और पीला पिछोरा दान में मिला। 

इस तरह से मुझ पर कुछ रूपए हो गए और यही कुछ चवन्नीया मेंरे जीवन की पहली पूंजी हो गईं। मेरे मन में कुछ करने के विचार उठे और एक विचार आया मैने दान में मिला वह पीला पिछोरे के 2 टुकडे किए। और अपने गांव की एक बडी दुकान से दैनिक उपयोग का समान खरीदा। इस समान को अपने पीले पिछोरे मेें बांधा और सर पर रखकर पास के गांवो में भोर होते ही निकल जाता। 

मेरा बंजी का बिजनेस लेकर घर-घर बेचने का व्यापार बढ़ता ही जा रहा था। एक स्मरण जो हमे अक्सर सुनाया करते थे कि सहसराम के पास ही एक खोरा गांव है जिसमें में अपनी दुकान को सर पर लाद कर सूरज उगने से पहले ही पहुंच गया। मैने एक दरवाजा खटखटाया अंदर से आवाज आई कौन है मैने कहां की बाई कोई समान लेना है तो अंदर से आवाज आई की तेरे का सबरे मर गए जो इतनी सवेरे आ गया। 

इतना कहते ही वह दरवाजा खुल गया और वह बाई सामने आकर खडी हो गई, चूंकि माता-पिता तो मर गए थे मैं रोने लगा और मुझे रोता देख बाई ने मुझें सीने से लगा लिया और वह भी मेरे साथ रोने लगी। वह बाई अब मुझ से ही सामान खरीदती थी और मेरे आने का इंतजार भी करती थी। मेरे जाने पर एक गिलास दूध मेरा पक्का था। 

खोरा गांव के बाबा तेजसिह यादव परिवार ने मेरी बडी ही मदद की... इस स्मरण को सुनाते हुए उनकी आंखो से आंसू आने लगते थे। शायद उन्हें उस बाई का वो स्नेह और प्यार याद आता होगा जो अपनी मां से मिलता होगा। मेरी मेहनत और लगन देखकर मेरे ऊपर ग्राहकों का विश्वास जम गया। जो समान मेरे पास नही होता था उस समान को मेरे से लाने को कहते मैं उस गांव में जब दोबारा जाता था तो दे जाता था। 

फिर उम्र कुछ आगे बडी मैने बंजी बंद कर अपने गांव सहसराम में दुकान खोल ली। इस दुकान के लिए पूंजी में मैने कुछ इक्ठठी कर ली थी और इस दुकान के लिए खोरा वाले बाबा तेजसिंह ने मुझे 50 रूपए उधार दिए। 

मेरा बिजनेस दिन दुगना रात चौगुना बड रहा था। 22 साल की उम्र में गांव का सेठ हो गया। और मेरा नाम पिलुआ से बदलकर शर्माजी हो गया। मेरी दुकान का नाम 'शर्मा विविध वस्तु भंडार' और एक तेल मिल और आटा चक्की मेरे पास थी। दुकान फलफूल रही थी कई सारे नौकर चाकर थे। इसी बीच गोपालपुर के पाठक फैमिली मे स्व: लीलादेवी से विवाह हो गया। 

अपने बीते स्मरणो में कहते थे कि जैसे ही मेरी शादी हुई मेरे दिन पूरी तरह से बदल गए। भरा-भर्ती के व्यापार में मिट्टी सोना बन रही थी। जैसे-जैसे मेरा व्यापार बढ़ रहा था, वैसे-वैसे मुझसे जलने वाले भी बढ़ रहे थे। समय की मांग को देखकर और डकैतों की समस्या के चलते में गांव को छोडकर शिवपुरी आ गया। 

कुछ चवन्नीयों की पूंजी का वह बिजनेस आज करोड़ों रूपए तक आ गया है। श्रीराम पाईप के साथ अन्य व्यापारों का सबसे पहला सूत्र ईमानदारी ही रहा है। कहते है कि दिन बिगडे के दिन  सुधर सकते है लेकिन मन बिगडे के नही, व्यापार में लाभ हानि कभी हो सकती है, लेकिन जिसका देना है उसको हाथ जोडकर देने से ही व्यापार और ईज्जत बढ़ती है।

समाज में स्व: नक्टूराम शर्मा एक ब्रांड है। परहित समाज में काम करने के कई उदाहरण जीवन में भरे है। शिवपुरी के ब्राह्मण समाज में शायद ऐसा ही कोई परिवार हो जो इनको नही जानता हो। अपने जीवन काल में लगभग 500 से अधिक शादी सबंध कराए है। 

5 अप्रैल के दिन अपने गांव जाते समय एक एक्सीटेंड से जीवन को आगे बढ़ने से रोक लिया। 30 दिन तक हॉस्पिटल में रहने के बाद डॉक्टरो ने छुट्टी कर दी। अपने देहवासन की एक दिन पहले तक वे पूर्ण रूप से स्वस्थ्य रहे। लेकिन 28 मई रात 11:30 बजे उनकी तबियत फिर खराब होने लगी। तत्काल शिवपुरी अस्पताल भर्ती कराया गया। सुबह शिवपुरी के डॉक्टरों ने जबाब दे किया कि वीपी लगातार नीचे गिर रहा है ग्वालियर रैफर कर दिया गया। 

लेकिन ग्वालियर जाते समय सतनवाड़ा पार कर वे जिंदगी से हार गए और लगभग 12 बजे के आसपास उन्होने अंतिम सांस ली। ऐक्सीडेंट से पूर्व 76 साल की उम्र में स्व:श्री पर कामों की प्रतिदिन की एक लिस्ट रहती थी। कुल मिलाकर वे इस उम्र में रिटायर्डमेंट नही लिया था। उन्होने जीवन ऐसे जिया कि जीवन ग्रंथ बन गया। 

शिवपुरी में सहसराम वाले शर्मा जी से पहचाने जाने वाले अब हमारे बीच नही है। वे अपने पीछे 5 पुत्रियां जो श्रीमति ऊषा शर्मा पत्नि घनश्याम शर्मा, कल्पना नायक पत्नि महेन्द्र नायक, ब्रजलता शर्मा पत्नि हिद्वेश पाराशर, शिवानी बोहरे पत्नि जयप्रकाश बोहरे, और लक्ष्मी शर्मा पत्नि शैलेन्द्र शर्मा को छोड गए है। 

पुत्र और पुत्र वधु गिर्राज-तृप्ति शर्मा संचालक श्रीराम पाईप एन्ड सेनेट्री स्टोर, बृजभूषण-राधादेवी संचालक सरस्वती पाईप एन्ड सेनेट्री, ललित मुदगल-अरूणा शर्मा, स्थानीय संपादक भोपाल समाचार-शिवपुरी समाचार, और नाती-पोते छोड गए है। 

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