विधानसभा चुनाव 2018: कांग्रेस के गढ़ पिछोर और कोलारस पर भाजपा तो पोहरी पर कांग्रेस का रहेगा जोर

0
शिवपुरी। अभी हाल ही में कोलारस में हुए उपचुनाव में पूरे मंत्रीमण्डल के पड़े रहने के बाबजूद भी हार का सामना करने बाली भाजपा की मुश्किल शिवपुरी में बढ़ती दिखाई दे रही है। यहां पहले से ही पांच विधानसभाओं में से तीन पर कांग्रेस का कब्जा है। लेकिन इस बार भाजपा पिछोर और कोलारस की सीट को हथियाने की रूपरेखा बना रही है। शिवपुरी जिले की पांच विधानसभा सीटों में से 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के टारगेट पर कोलारस और पिछोर विधानसभा सीटें हैं। जबकि कांग्रेस की नजर पोहरी विधानसभा सीट पर है। जबकि करैरा अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित है और पिछले विधानसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी श्रीमति शकुंतला खटीक विजयी हुई थी। शिवपुरी विधानसभा सीट भाजपा प्रत्याशी यशोधरा राजे सिंधिया ने जीती थी और इस सीट पर 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के पास इस सीट के लिए दमदार प्रत्याशी का अभाव है। पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में मजबूती से लड़े वीरेंद्र रघुवंशी इस समय कांग्रेस छोडक़र भाजपा में आ गए हैं। 

पिछोर विधानसभा सीट कांग्रेस के पास 1993 से कब्जे में है। इस सीट पर कांग्रेस प्रत्याशी केपी सिंह 93, 98, 2003 और 2008 के विधानसभा चुनाव में बहुत आरामदायक बहुमत से जीतते रहे हैं जब उन्हें हराने के लिए 2003 में तो तत्कालीन मुख्यमंत्री उमा भारती ने अपने भाई स्वामी लोधी को भी मैदान में उतारा था, लेकिन वह भी बुरी तरह पराजित हुए। पूर्व विधायक भैया साहब लोधी, जगराम सिंह यादव और पूर्व मंत्री लक्ष्मीनारायण गुप्ता भी उनसे बुरी तरह मात खा चुके हैं, परंतु 2013 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने इस सीट को हारी हुई मानकर चुनाव लड़ा था और बाहरी प्रत्याशी प्रीतम लोधी को टिकट दिया था।

इस विधानसभा क्षेत्र में उस चुनाव में भाजपा का कोई बड़ा स्टार प्रचारक भी प्रचार करने के लिए नहीं आया था, लेकिन इसके बावजूद कमजोर माने जाने वाले प्रीतम लोधी ने केपी सिंह को दांतो तले ऊंगली दबाने पर मजबूर कर दिया था और केपी सिंह महज 5 हजार वोटों से चुनाव जीत पाए थे। उस चुनाव में यदि भाजपा पूरी ताकत लगा देती तो कांग्रेस के इस किले को ध्वस्त किया जा सकता था। इसे ध्यान में रखकर इस बार भाजपा ने पिछोर सीट पर अभी से ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया है और 2013 के चुनाव में पराजित प्रीतम सिंह लोधी फिर से सक्रिय हो गए हैं। 

भाजपा की नजर 2018 के विधानसभा चुनाव में किसी तरह कांग्रेस के इस गढ़ को धराशायी करने की ओर हैं। इस दृष्टिकोण से पिछोर में भी इस बार कांग्रेस को भाजपा की मजबूत चुनौती का सामना करना पड़ेगा। अपनी कमजोर सीटों पर नजर केंद्रित करने की दृष्टि से भाजपा ने अभी से कोलारस सीट पर ध्यान गढ़ाना शुरू कर दिया है। 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रामसिंह यादव यहांसे 25 हजार मतों से चुनाव जीते थे। वह भी उस स्थिति में जबकि बसपा भी मैदान में थी और बसपा प्रत्याशी को लगभग 22 हजार मत प्राप्त हुए थे। 

इस विधानसभा सीट पर स्व. रामसिंह यादव के बाद जब उपचुनाव हुआ और कांग्रेस ने उनके पुत्र महेंद्र यादव को टिकट दिया तो कांग्रेस की राह काफी आसान नजर आ रही थी और आये भी क्यों नहीं? कांग्रेस के पक्ष में क्षेत्र में सहानुभूति लहर थी और बसपा भी चुनाव मैदान में नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद भी कांग्रेस यहां से चुनाव तो जीत गई, परंतु उसकी जीत का अंतर काफी सिमटकर महज 8 हजार मतों पर आ गया। इससे हार के बावजूद भी भाजपा के हौंसले बढ़े और उसे लगा कि यदि 2018 के विधानसभा चुनाव के लिए उसने कोलारस पर विशेष ध्यान केंद्रित किया तो यहां से जीतना मुश्किल नहीं होगा। यहीं कारण रहा कि उपचुनाव हारने के बाद भी कांग्रेस नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया से पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान कोलारस विधानसभा क्षेत्र में मतदाताओं का धन्यवाद अदा करने के लिए आए। 

यहीं नहीं उन्होंने क्षेत्र में विकास की गंगा बहाने के लिए कई घोषणाएं की और यह भी कहा कि चुनाव के दौरान जो भी घोषणाएं उन्होंने की है वह सभी पूरी की जाएंगी। भाजपा अपने कथन पर पूरी तरह ईमानदार है इस बात को सिद्ध करने के लिए भाजपा ने इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रैस का स्टॉपेज कोलारस में करवाया। स्टॉपेज स्वीकृत होने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने रेलमंत्री को ट्वीट कर उन्हें धन्यवाद दिया। इससे लगता है कि 2018 के विधानसभा चुनाव में कोलारस में कोंग्रेस का रास्ता बिल्कुल आसान नहीं होगा। जबकि कांग्रेस की नजर इस बार पोहरी विधानसभा सीट पर है। यहां से पिछले दो विधानसभा चुनाव से भाजपा प्रत्याशी प्रहलाद भारती चुनाव जीत रहे हैं। 

श्री भारती ने 2008 के विधानसभा चुनाव में 20 हजार से अधिक मतों से विजय हासिल की और यही नहीं उन्होंने इतिहास बदलते हुए लगातार दूसरी बार पोहरी सीट जीतने में सफलता प्राप्त की। पोहरी से कोई भी विधायक दूसरी बार लगातार निर्वाचित अभी तक नहीं हुआ था। भाजपा और प्रहलाद भारती के लिए यह उपलब्धि तो थी, लेकिन इस उपलब्धि को भी कांग्रेस ने अपनी उज्जवल संभावना देख ली। 2013 के विधानसभा चुनाव में प्रहलाद भारती कांग्रेस प्रत्याशी हरिवल्लभ शुक्ला से मुश्किल से साढ़े तीन हजार मतों से जीते जबकि विधानसभा क्षेत्र में उनकी जाति के धाकड़ मतदाताओं का बाहुल्य है और यहां 35 से 40 हजार धाकड़ मतदाता हैं। 

कांग्रेस ने इस विधानसभा सीट से श्री भारती के मुकाबले 2008 और फिर 2013 में ब्राहमण प्रत्याशी को मैदान में उतारा। कांग्रेस की सोच यह थी कि धाकड़ मत जहां भाजपा की झोली में जाएंगे वहीं अन्य जातियां कांग्रेस को वोट देंगी और धाकड़ बर्शेज अन्य जातियों के मुकाबले में उनके ब्राहमण प्रत्याशी को विजयश्री हासिल होगी, लेकिन यह फार्मूला चला नहीं। इस कारण कांग्रेस सूत्रों का कथन है कि भाजपा की चुनौती को ध्वस्त करने के लिए कांग्रेस इस बार धाकड़ उम्मीदवार उतारने पर गंभीरता से विचार कर रही है। कुल मिलाकर 2018 का संघर्ष इस बार काफी रोचक होने की उम्मीद है।
Tags

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!