यहां जल जहर है: जावानी की उम्र में इन गांवो के लोग हो रहे है बूढे

करैरा। जल ही जीवन है, यह स्लोगन अक्सर देखा जाता है। लेकिन करैरा क्षेत्र के आधा दर्जन से अधिक ऐसे गांव हैं, जहां पानी ही जीवन के लिए खतरा बना हुआ है। जमीन के अंदर से निकलने वाले पानी में लोराईड की मात्रा अधिक होने से उसका दुष्प्रभाव वहां रहने वाली 10 हजार की आबादी पर स्पष्ट नजर आ रहा है। कई साल पहले पीएचई ने जल शोधन संयत्र गांव में लगाए, लेकिन उनका रख-रखाव न होने की वजह से वे भी काम करना बंद कर गए। पीएचई के अधिकारी जहां पानी लोराईड कम होना बता रहे हैं, लेकिन गांव में लोराईड के दुष्प्रभाव बच्चों के दांत व महिला-पुरुषों के शरीरों में अकडऩ के रूप में स्पष्ट नजर आ रहे हैं। 

करैरा क्षेत्रके ग्राम दौनी, गोकंदा, फूलपुर, बिची, हथेड़ा, बरोदा, नरावरी, सीहोर, महेवरा गांव में कुल 10 हजार की आबादी है। इन गांव में जमीन के नीचे पानी में लोराईड की मात्रा ढाई से तीन पीपीएम है, जबकि सामान्यत: यह मात्रा डेढ़ पीपीएम होना चाहिए। लोराईडयुक्त पानी का उपयोग करने की वजह से गांव के लोगों की हड्डियां कमजोर होने के साथ ही उनके शरीर में जकडऩ होने लगी है। 

कम उम्र में ही महिलाएं चलने के लिए वॉकर का सहारा ले रही हैं। गांव के एक युवक के हाथ-पैरों में इतनी परेशानी है कि वो शौच के लिए तक नहीं बैठ पाता। इतना ही नहीं गांव में रहने वाले छोटे बच्चों के दांतों में भी लोराईड का प्रभाव स्पष्ट नजर आ रहा है। उनके दांतों का कैल्शियम खत्म होने के साथ ही उनमें पीलापन व क्रेक नजर आ रहे हैं। धीरे-धीरे दांत टूटने लगते हैं और गांव के युवा भी बुजुर्ग की तरह नजर आते हैं।


लोराईड प्रभावित इन गांव में 14 साल पूर्व जल शोधन संयंत्र लगाए गए थे। जिनके रख-रखाव व मेंटीनेंस के नाम पर अभी भी राशि जारी हो रही है, जबकि वो बरसों से बंद पड़े हैं। हथेड़ा गांव में पानी पहुंचाने के लिए कांकर गांव से एक लाइन अलग से डाली गई थी, लेकिन वो भी मोटर खराब होने से बंद पड़ी है। इन हालातों में यह जानते हुए भी जिस पानी को वे पी रहे हैं, उनके जीवन के लिए खतरा बना हुआ है, मजबूरी में लोराइड युक्त पानी पीने को मजबूर हैं। 

यह बोलीं सरपंच
हैंडपंप व बोर के पानी में लोराईड अधिक होने की वजह से हम एक किलोमीटर दूर से पानी भरकर लाते हैं। लोराइडयुक्त पानी का उपयोग होने की वजह से ग्रामीणों के शरीर में सुबह के समय हाथ-पैरों के जोड़ में असहनीय दर्द होता है। नलजल योजना भी बंद पड़ी है। हमने पीएचई को कई बार सूचित कर दिया, लेकिन कोई देखने नहीं आता। 
बृजेश राजा परमार, सरपंच ग्राम हथेड़ा 

एक साल से नहीं दिया वेतन 
विभिन्न गांव में लगाए गए जलशोधन संयत्र लगाए गए थे, जिनकी देखरेख व मेंटीनेंस के लिए पीएचई द्वारा अस्थाई रूप से कर्मचारी नियुक्त किए गए। इनमें शामिल कल्याण सिंह बघेल, संजू सिंह राजपूत, यादवेंद्र परमार ने बताया कि हमें एक साल से वेतन नहीं दिया गया। हम लोग बिना वेतन के काम क्यों और कब तक करेंगे। इसलिए जलशोधन की योजना भी बंद पड़ी है।    

तीन-चार साल से बंद पड़ा है संयत्र 
पूरा गांव लोराइड से प्रभावित हो रहा है। बच्चों के दांत पीले हो रहे हैं तथा महिला-पुरुषों के शरीर जकडऩ होने से उनका चलना-फिरना तक दूभर हो रहा है। गांव में लगभग 40 फीसदी लोग न केवल शरीर की जकडऩ से परेशान हैं, बल्कि वे कम उम्र में ही बुजुर्ग नजर आने लगते हैं। तीन-चार साल से संयंत्र बंद पड़े हैं। 
राजेंद्र सिंह बघेल, रोजगार सहायक हथेड़ा  
  
यह बोले डॉक्टर  
दांतों में पीलापन आना एवं शरीर में जकडऩ आने का कारण लोराईड ही है। इसकी वजह से शरीर की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं तथा शरीर में अकडऩ एवं कुबड़ापन होता है। चूंकि वह एरिया नरवर ब्लॉक में आता है, इसलिए हम वहां स्वास्थ्य विभाग की टीम को नरवर से भिजवाएंगे। 
डॉ. प्रदीप शर्मा, बीएमओ करैरा
उनका कहना है 
  
कुछ कम हुआ है लोराइड
आसपास नहरों का विस्तार होने से इन गांवों में जमीन के अंदर पानी में लोराईड की मात्रा कम हुई है। कांकर से पानी सप्लाई हो रही थी, तथा मोटर भी सुधरवाई। अब यदि खराब हो गई है तो उसे सुधरवाएंगे। 
एसके पंचरत्न, सब इंजीनियर पीएचई करैरा