राजे का राज कायम रहा: हार के बाद भी कोलारस में उज्जवल भविष्य भाजपा का

शिवपुरी। कोलारस विधानसभा का उपचुनाव चाहे भाजपा हार गई हो, लेकिन इस हार के  बाद आने वाले मप्र के विधानसभा चुनावो में भाजपा का भविष्य उज्जवल हो सकता है। राजनीतिक गणितज्ञो के माने तो  इस हार के बाद कोलारस में राजे का राज कायम रहा है। इस चुनाव में कांगेस को सहानभूति लहर प्लस बसपा का गायब होना कांग्रेस की जीत का आंकडा 40 हजार के पास हो सकता था। 

कोलारस विधानसभा क्षेत्र के उपचुनाव में भाजपा के लिए स्थितियां शुरू से ही काफी प्रतिकूल नही थी। 2013 के चुनाव में यहां से कांग्रेस प्रत्याशी रामसिंह यादव लगभग 25 हजार मतों से तब विजयी हुए थे। जब सामने बहुजन समाज पार्टी का मजबूत उम्मीदवार मैदान में था। 

स्व: यादव के निधन के बाद उपचुनाव में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति लहर का वातावरण था और विधायक के खिलाफ ऐंटी इन्कमबेंशी खत्म हो गई थी। बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार भी मैदान में नहीं था जिससे लग रहा था कि कांग्रेस यह उपचुनाव 25 हजार से कहीं अधिक मतों से जीतेगी। कांग्रेसी दावा कर रहे थे कि कांग्रेस 40 से 50 हजार मतों से चुनाव जीतेगी। 

कांग्रेस का आत्मविश्वास बहुत बड़ा हुआ था। इसकी झलक विधानसभा क्षेत्र में अंतिम चुनाव सभा में तब देखने को मिली जब पिछोर विधायक केपी सिंह ने यहां तक कहा कि 40-50 हजार मतों से कम की जीत का कोई अर्थ नहीं है। शुरूवात में भाजपा ने शिवपुरी विधायक और प्रदेश मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को इस चुनाव से दूर रखा। 

सरकार के मंत्रीयो ओर सगठन की परेड कोलारस विधानसभा में होने लगी, स्वयं शिवराज सिंह चौहान चुनाव से पूर्व कोलारस विधानसभा 5 बाद दौरे कर गए थे। लेकिन भाजपा की तबीयत ठीक होने का नाम नही ले रही थी। पार्टी के अंदरूनी सूत्र भोपाल खबर कर रहे थे कि कोलारस में राजे बिन सब सून होगा। 

भाजपा ने राजे को इस चुनाव में लाने रणनीति बनाई गई, भाजपा के प्रत्याशी देवेन्द्र जैन से सार्वजनिक बयान दिलवाया गया कि राजे अगर चुनाव प्रचार नही करने आती है तो वह टिकिट नही लेगें। ऐन-केन-प्रकरण राजे को इस चुनाव में आने के लिए मना लिया गया। 

चुनाव प्रचार में यशोधरा राजे के आने से भाजपा का मनोबल मजबूत हुआ। यह सर्वविदित है कि वह जिस चुनाव की कमान अपने हाथ में लेती है तो परिणाम देती है, वह ऐसे मैदान में उतरती है। जैसे वह स्वयं चुनाव लड रही हो। इसके 2 उदाहरण प्रमाणित है माखनलाल राठौर का विधानसभा चुनाव और रिशिका अष्ठाना का नगर पालिका अध्यक्ष का चुनाव। 

कांग्रेस को सहानभूति लहर और बसपा का प्रत्याशी न होना और सरकार की ऐंटी इन्कमबेंशी को मिलाकर देखे तो कांग्रेस का गणित 50 की जीत सही लग रही थी, लेकिन कांग्रेस की इस गणित पर राजे की मेहनत भारी रही। और कांग्रेस की जीत 8 हजार पर रह गई। 

राजे के आने से शहरी क्षेत्रो में रन्नौद में तो विजयी हुई लेकिन बदरवास जैसे यादव बहुलय क्षेत्र में और कोलारस में कांग्रेस बडी लीड नही ले सकी। भाजपा की हार कोलारस में अवश्य हुई है लेकिन उनका वोट प्रतिशत बडा है। लेकिन नैतिक रूप से वह विजयी हुए हैं। जहां तक 2018 के चुनाव का सवाल है। यह संभावना कम है कि मैदान में बहुजन समाज पार्टी का उम्मीदवार नहीं होगा। 

वहीं विधायक के खिलाफ ऐंटी इन्कमबंशी का भी फायदा भाजपा को मिल सकता है। इसलिए 2018 के चुनाव में कोलारस विधानसभा क्षेत्र से भाजपा की संभावनाएं काफी उज्जवल नजर आ रही हैं। वहीं कांग्रेस को इस विधानसभा क्षेत्र से कड़ा संघर्ष करना पड़ सकता है।