
इस पूरे मामले को सीधे-सीधे लिखने का प्रसास करते है। शिवपुरी नगर के प्यास कंठो की प्यास बुझाने वाली सिंध जलावर्धन योजना तक पानी लाने के लिए कई चरण बनाए गए थे। काम के चरण तो समय से पूरे नही हुए लेकिन इस योजना के काम के अतिरिक्त कई चरणो में राजनीति अवश्य हो गई।
समाज सेवी सगठन इस योजना को लेकर चौराहे पर तम्बू गाडकर बैठना, एडवोकेट पीयूष शर्मा द्वारा इस योजना को पूर्ति के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाना, इंतजार, वादे, आरोप-प्रत्यारोप और राजनीतिक वादे, नपा अध्यक्ष पर बटन दबाने को लेकर एफआईआर तक का प्रयास, कुल मिलाकर पूरा एक फिल्मी ड्रामे के तरह कुछ हुआ है और अतं में क्लाईमेक्स आया कि राजे ने बटन दबाया कि शिवपुरी तक पानी पहुंचा।
राजे के साथ पूरे शहर के अरमानो फिर पानी फिर गया पानी नही आया। फिर प्यासे रह गए कंठ और रिते रह गए घडे, यशोधरा राजे भी चाहती थी कि पानी सिंध का शिवपुरी पहुंचे और सिद्धेश्वर वाले भोलेनाथ का वे जल से अभिषेक कर सके लेकिन उनका घडा भी सिंध मैया के दर्शन नही सका वह भी रिता रह गया।
राजे का भी इंतजार जबाब दे गया और वे शिवपुरी से भोपाल रूखसत हो गई। इस घटना को देखकर ऐसा लगा कि कोई फिल्मी सीन चला हो। कई सालों की लडाई के बाद यह पानी शिवपुरी आना था, पानी का श्रेय बटन दबाने वाले को नही मिले उसकी जगहसाई हो और किसी विलेन एंड कंपनी ने इस लाईन को बीच में तोड दिया हो...
इस घटनाक्रम के पीछे कही कोई षडयंत्र तो नही था। राजे ने बटन दबाने से पहले योजना का फीडबैक क्यो नहीं लिया। इनके खासों ने इन तक पूरी जानकारी उपलब्ध क्यो नही कराई, फिर राजे की राजनीति की कार्यशैली पर प्रश्र चिन्ह खडे हो रहे है। ऐसे कई सवाल शिवपुरी की फिजाओ में तैर रहे है।
दोशियान कंपनी बटन के प्रोग्राम से पूर्व टेस्टिंग कर सकती थी, लेकिन ऐसा नही हुआ। शिवपुरी की फिजा र्में सवाल के साथ जबाव भी तैर रहे है। कही दोशियान को मोहरा बनाकर कोई राजनीति तो नही कर गया। पर्दे के पीछे कोई विलेन तो नही बैठा था। दोशियान पर भुगतान को लेकर दबाब तो नही बनाया गया कि फूटी लाईन पर ही बटन को प्रेस करा दो। फिर से बडे ही तामझाम से इस बटन को दबाने के प्रोग्राम की बुनियाद गढी जा रही हो, ऐसी हवा शिवपुरी की नपा से शहर की ओर आ रही है।