शासकीय शब्दावली से भृत्य शब्द हो विलोपित, मांग

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शिवपुरी ब्यूरो। नया शब्द बना भी और अल्पकाल में मिट भी गया। शासन ने कर्मी से कर्मचारी पद के अनुरूप सम्मानजनक पदनाम दे दिया कृषि, स्वास्थ्य विभाग में भी पदनाम परिवर्तित किए गए। किन्तु इसे विडम्बना ही कहलें या फिर उपेक्षा पूर्ण भाव की अंग्रेजी सत्ता स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात ही भृत्य शब्द नहीं हटा जो की गुलामी का पर्यायवाची प्रतीत होता है। 

मध्य प्रदेश लघु वेतन कर्मचारी संघ के प्रांताध्यक्ष महेन्द्र शर्मा एवं प्रांतीय सचिव अरविन्द कुमार जैन ने बताया कि शासन की अंतिम पंक्ति में खड़े चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी जो कि दफ्तर खोलने, रख रखाव, फाईलों का संधारण, डाक व्यवस्था आदि कर्तव्यों का वर्षों से भली भांति निर्वहन कर रहे हैं। फिर भी उन्हें आज तक चपरासी, चौकीदार, जमादार, भृत्य शब्दों से पुकारा जाता है और पत्र व्यवहार में भी इन्हीं शब्दों का प्रयोग किया जाता है यह सभी संबोधन विट्रिश शासन काल से प्रचलन में हैं। 

जिनसे गुलामी, तिरस्कार, उपेक्षा और निम्न श्रेणी के भाव पनपते हैं जिसे समाप्त करने की सख्त आवश्यकता है। श्री शर्मा ने राज्य शासन के शीर्ष स्थरों पर पत्र लिखकर प्रदेश के हजारों चतुर्थ श्रेणी कर्मचारियों को शासकीय शब्दावली में कार्यालय सहायक का पदनाम देकर इस वर्ग की सेवाओं को अहमीयत देने की मांग की है। मांग करने वालों में जशपाल भारती, नारायण सिंह रजक, महेश सविता, धीरज सिंह, अमित चंदेल, गोविन्द सिंह कुशवाह, भग्गूराम करौसिया, हवीब खांन आदि हैं।  
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