जीवन में बदले का नहीं बदलने का भाव होना चाहिए: मुनि श्री अजितसागर

0
शिवपुरी। इस संसार में अनंतानंत जीव है, जो अपनी प्रकृति के अनुसार जीवन जीते हैं, और हमें भी कुछ प्रेरणा देते हैं। जैसे मक्खी बैठती है, तो अपने पंखों को साफ करती रहती है। हमें भी प्रभु भक्ति में बैठकर आत्मा जमी हुई कर्मों की धूल को साफ करना चाहिए। उसी प्रकार वृक्ष से दान की प्रेरणा लेना चाहिये, जो बिना कुछ चाहे अपने फल स्वयं न खाकर दूसरों को दे दिया करता है। ख्याति-लाभ-पूजा और मान के लिए दिया गया दान व्यर्थ होता है। उक्त मंगल प्रवचन पूज्यमुनि श्री अजितसागर जी महाराज ने अतिशय क्षेत्र श्री सेसई में श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान के में दिये। 

उन्होनें दान की महिमा पर प्रकाश डालते हुये कहा कि त्याग और वीतराग की भावना से ही जीवन जीने में आनंद आता है। अतिशय क्षेत्र और सिद्धक्षेत्र साधना के लिए होते हैं, इनके विकाश के लिये मुक्त हस्त से दिया गया दान उन्नति का कारण है। आपके थोड़े से परित्याग से ही क्षेत्रों का विकास होता है, और वही हमारी आत्मा की उन्नति का कारण बनता है। 

जीवन निर्वाह तो पशु-पक्षी भी कर लेते हैं। वह भी अपने बच्चों के लिए घौंसले का निर्माण कर लेते हैं, परन्तु मनुष्य ही मात्र ऐसा प्राणी है, जो स्वयं के साथ-साथ परहित के लिये और संतो के लिए साधना-स्थली का निर्माण कराते हैं, जिससे जीवन पवित्र होता है। त्याग से ही हमारी वीतरागता और अहिंसा की अभिव्यक्ति होती है और शक्ति प्राप्त होती है। जीवन में सौभाग्य का निर्माण त्याग अहिंसा से ही होता है। 

उन्होंने क्रोध को सबसे अधिक घातक बताते हुये कहा कि कषाय करने वाला स्वयं का नाश करता है, ना कि दूसरे का। लकड़ी पहले स्वयं जलती है, फिर दूसरों को जलाती है। कषाय करना ऐसा ही है, जैसे दूसरे की गलती का स्वयं प्रायश्चित करना। जीवन में बदले की भावना से नहीं अपितु बदलने की भावना से जीवन जीना चाहिए।

एलक दयासागर जी महाराज ने कहा कि पैसा जब परमेश्वर बन जाता है, तब व्यक्ति परिवार और समाज धर्म से दूर हो जाता है। सच्चा श्रद्धालु कभी अपने कर्तव्य से विमुख नहीं होता। मरने के बाद जब शरीर हमारे साथ नहीं जाता, तो हम कुछ भी द्रव्य साथ नहीं ले जा सकते। पर जिनालय, जिनबिंब आदि का निर्माण कराकर हम पुण्र्याजन करके परलोक में उस पुण्य को ले जा सकते हैं। 
Tags

Post a Comment

0Comments

Please Select Embedded Mode To show the Comment System.*

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!