150 का हुआ गणेश उत्सव : शहर को डूब मरने वाली खबर, विघ्नहर्ता पर विघ्न

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एक्सरे ललित मुदगल/शिवपुरी। पूरे प्रदेश में कहीं भी बादल नहीं मंडरा रहे है परन्तु शिवपुरी में विघ्नहर्ता पर विघ्न के बादल अवश्य मंडरा रहे है। खबर शिवुपरी वासियो को सूखी भदैया कुंड में डूब कर मरने जैसी है कि इस बार गणेश सांस्कृतिक समारोह पूरी तरह से रामगोपाल वर्मा की मूवी जैसा फ्लाप शो जैसा साबित होगा। इस देश में गणेश सास्कृतिंक समारोह को इस वर्ष 150 साल पूर्ण हो रहे है। 

आज से 150 साल पूर्व महाराष्ट्र में आजादी की लड़ाई को सशक्त बनाने के लिए आजादी के महानायक लोक मान्य गंगाधर तिलक ने शुरू किया था और शिवुपरी में गणेश सांस्कृतिक समारोह की परंपरा सिंधिया राजवंश की महारानी जीजाबाई ने शुरू की थी। शहर ने इस परंपरा को आज तक जीवित रखा है। इसे शिवपुरी का गणेश उत्सव कहा जाता था, लेकिन एक समिति ने इसका नाम बदलकर श्री गणेश सांस्कृतिक समारोह कर दिया।

शिवपुरी में गणेश उत्सव पूरे 10 दिन तक चलता था। अचल झांकियों से इस उत्सव का शुभांरम माना जाता था और अत: में अन्नत चौदहस की रात मंदिरो और घरों में विराजे श्रीगजानन भगवान को लाग धूमधाम के साथ नाचते गाते विदा करते थे। 

समय के साथ अंनत चौदस के दिन होने वाले समापन समारोह ने तो भव्य रूप ले लिया। गणेश जी के विमान के साथ-साथ चल झांकियो का चलन भी इस दिन शुरू हो गया। जो आज भी निर्वाध रूप से जारी है।   

शहर में 10 दिन तक लगने वाली अचल झांकिया इस उत्सव की जान होती थीं। इन झांकियो को देखने शहर ही नही गावों से भी प्रतिदिन हजारों लोग आते थे। आज से दस वर्ष पूर्व शहर में अनेको मंदिरो की समितियों द्वारा अचल झांकिया लगाई जाती थी। 

पीछे देखा जाए तो अंनत चौदस की रात जितनी भीड़-भाड़ और आंनद और उत्सव का महौल रहता था। यह माहौल अचल झाकियों के लगने से पूरे 10 दिन तक शहर में रहता था। 10 दिन से 1 दिन में कन्वर्ट यह उत्सव अब 1 दिन भी पूरे शबाव पर इस बार नही रहेगा। खबर पूरे उत्सव को हिलाने वाली आ रही है कि शहर की प्रतिष्ठित और चल झांकी की जान या यूं कह लो पूरे गणेश उत्सव की जान भैरो बाबा उत्सव समिति और इच्छापूर्ण समिति इस बार अपनी चल झाकी नही निकाल रही है। 

यह दोनो समितियो की झांकिया अनंत चौहदस की जान होती थी, पूरा शहर इन दोनो समिति की झांकीयो को देखने आता था। भैरो बाबा ने पिछले वर्ष समिति से विवाद होने के कारण ढोल ग्यारस को अपनी झांकिया निकाली थी। लेकिन इस बार इस समिति ने कोई भी झांकी न निकलाने का मन बनाया है। झांकिया बंद होने की अगली कडी में ईच्छापूर्ण शिव मंदिर का भी आ गया है। 

भैरो बाबा उत्सव समिति ने इस समारोह की जान और शान होती है। गणेश सांस्कृतिक समारोह पर इस साल रिचार्च होने समिति के गणमान्यो ने इस वर्ष भी कोई सबक नही लिया है,पूरे वर्ष में समिति के कर्ताधर्ता पूरे 365 में दिन में एक भी दिन झांकी बंद करने वाली समितियो के पास नही गई। 

गणेश सांस्कृतिक सामारोह के नाम पर हर वर्ष चेहरे चमकाने वाली समिति सन 1985 से सक्रिय है। यह समिति का अघोषित रूप से दावा है कि इस आयोजन को भव्य और आर्कषक बनाने में समिति का योगदान है लेकिन लगातार पुरूषकारो के विवाद के कारण यह विशाल उत्सव का स्वरूप बिगडता जा रहा है। 

परन्तु समिति से यह सवाल अभी भी खडा है शहर में लगने वाली अचल झांकियो जो इस त्यौहार की जान होती थी वे गायब क्यों हो गई, क्या समिति ने इन अचल झांकियो को लगाने वाली समितियो से कभी संपर्क किया। नही तो क्यो............ अब धीरे-धीरे चल झांकी भी बंद होने के कगार पर आ रही है। 

समिति को यह बता दिया जाना उचित होगा कि इस समिति के परिदृश्य में आने से पूर्व भी गणेश उत्सव पर शहर में झांकियो का चलन था। इन झांकियो से यह समिति जिंदा है ना कि समिति से झांकिया।

क्या कारण रहे कि शहर में लगने वाली अंचल झाकिया बंद हो गई और समिति सोती रही। क्या समिति का यह नैतिक दायित्व नही बनता कि वह इन अचल झांकियो को लगाने वाली समितियों से मिले और पता करे कि आखिर 10 दिन तक चलने वाला यह उत्सव 3 दिन के आयोजन में सिमटकर क्यों रह गया।

15 साल पहले का गणेश उत्सव और आजकल होने वाले सांस्कृतिक समारोह की तुलना करें तो लगता है कि 10 दिन का उत्सव 3 दिन के समारोह में सिमटकर रह गया। समिति ने आयोजन का विस्तार किया या अतिक्रमण। 10 दिन तक चलने वाला यह उत्सव 3 दिन के समारोह पर आ गया है। अब 2 दिन बडी समितियो के चल झाकी बंद करने पर यह उत्सव प्राणहीन हो जाऐगा।
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