जमींन की छाती फाडक़र प्रकट हुई थी मां कैलादेवी,हवन कुण्ड से आई मां चामुण्डा

शिवपुरी। शहर के मां राजेश्वरी रोड पर स्थित प्रसिद्व मां कैलादेवी के मंदिर पर नवरात्रि महोत्सव के दौरान श्रद्वालुओ और भक्तो की भीड है। इस मंदिर पर मां की प्रतिमा के प्रकट होने की भी एक अदभुत कथा है। बताया गया है कि मां कैलादेवी की प्रतिमा जमीन की छाती को फाड प्रकट हुई है। 

मंदिर के चमत्कारों से बहुत कम ही लोग परिचित हैं। इसके बाद भी इस मंदिर की मान्यता सर्व व्यापी हैं और शिवपुरी के अलावा आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लोगों का भी यहां नवरात्रि के दौरान दर्शनों के लिए तांता लगा रहता है और प्रतिदिन 10 से 15 हजार श्रद्धालु माँ के दर्शनों के लिए यहां आते हैं और मन्नतें मांगते हैं। 

मंदिर में माँ कैलादेवी की जो प्रतिमा स्थापित हैं उसे लेकर एक किवदंती है कि वह प्रतिमा अपने आप जमीन से निकल कर बाहर आई।  बताया जाता है कि सदियों पूर्व मंदिर स्थल पर एक बरगद का पेड़ हुआ करता था। जहां माँ की प्रतिमा स्वयं अवतरित हुई। मंदिर के प्रथम पुजारी पीताम्बर पुरी गोस्वामी ने मढिया का निर्माण कराया और माँ की प्रतिमा को बरगद के पेड़ से हटाकर दूर रखा। 

इसके तीन दिन बाद ही वह बरगद का पेड़ स्वत: ही टूट गया। इसके बाद धीरे-धीरे  जन सहयोग से मंदिर का निर्माण कराया गया। मंदिर के पुजारी पीता बर पुरी की मृत्यु के बाद मंदिर की सेवा उनके पुत्र हरदयाल पुरी द्वारा की जाने लगी और वर्तमान में चरणपुरी और उनके पुत्र शरदपुरी गोस्वामी माँ की सेवा में लगे हुए हैं। 

पुजारी को स्वप्र के बाद हवन वेदी से निकली माई चामुण्ड़ा
माँ कैलादेवी मंदिर में स्थित कैलामाता की प्रतिमाँ के ठीक सामने पीपल के पेड़ के नीचे माँ चामुण्ड़ा देवी की प्रतिमा स्थापित है। इस प्रतिमा के अवतरण को लेकर भी एक किवंदती प्रचलित है। बताया जाता है कि 11 वर्ष पूर्व मंदिर के पुजारी चरणपुरी गोस्वामी की माताश्री रामप्यारी गोस्वामी को माँ चामुण्डा देवी ने स्वप्न देकर उन्हें मंदिर परिसर में बनी हवन वेदी की खुदाई करने के लिए कहा और हवन वेदी का पुन: निर्माण करने का आदेश दिया। 

स्वप्न में दिये गए माँ के आदेश को मानकर जब रामप्यारी गोस्वामी ने हवन वेदी की खुदाई कराई तो वहां से माँ चामुण्डा की एक सुन्दर प्रतिमा निकली जिसे माँ कैलादेवी के ठीक सामने स्थापित किया गया। खास बात यह रही कि  कैलादेवी की प्रतिमा जहां स्थापित थीं वहां बरगद का पेड़ था वहीं माँ चामुण्डा देवी की प्रतिमा स्थापित की गई वहां आज पीपल का पेड़ा लगा हुआ है। 

जिले का एक मात्र गिर्राजधरण मंदिर भी है स्थापित 
कैलादेवी मंदिर प्रांगण में शिवपुरी जिले का एक मात्र भगवान गिर्राज का मंदिर भी स्थापित है जहां प्रतिदिन भक्त भगवान गिर्राज धरण को दूध और जल चढ़ा कर वहां की परिक्रमा करते हैं। 

मान्यता है कि गिर्राजधरण की परिक्रमा करने से मथुरा में स्थित गोवर्धन की पूजा का फल भक्त को प्राप्त होता है। मंदिर परिसर में सिद्ध हनुमान मंदिर, नागेश्वर महादेव, संतोषी माता मंदिर भी स्थापित हैं। 

सबसे पहले कैलादेवी मंदिर में लगाई गई थी पशु बलि पर रोक 
मंदिर के पुजारी शरदपुरी गोस्वामी बताते हैं कि पूर्व में प्रथा थी कि मंदिर में पशुओं की बलि दी जाये। जिससे माँ प्रसन्न हों और यह प्रथा संपूर्ण भारत में प्रचलित थी। जहां लाखों की संख्या में बेजुवान जानवरों की धर्म की आड़ में बलि दी जाती थी। 

कैलादेवी मंदिर में भी यह प्रथा चली आ रही थी। लेकिन मंदिर से जुड़े भक्तों ने इसका विरोध किया तो सर्व प्रथम कैलादेवी मंदिर पर बलि प्रथा को खत्म किया गया। इसके बाद राजराजेश्वरी मंदिर पर भी इस प्रथा को समाप्त किया गया।