शिवपुरी उत्सव: 80 लाख मनोरंजन पर खर्च,बन सकता था पितामह का भव्य म्यूजियम

सतेन्द्र उपाध्याय/शिवपुरी। शहर में नव बर्ष के आगमन पर जिला प्रशासन और जिला पर्यटन संबर्धन द्वारा आयोजित शिवपुरी उत्सव पर आयोजित कार्यक्रम को लेकर आज सोशल मीडिया पर लोगों ने अपनी भड़ास जमकर निकाली। जैसे ही लोगो ने सुना कि इस कार्यक्रम पर टोटल 80 लाख का खर्चा हुआ है तो शहर वासियो ने सोशल मीडिया पर भडास निकालना शुरू कर दी। सब अपने -अपने हिसाब से तर्क दे रहे है। 

जानकारी के अनुसार 2 दिन चले इस उत्सव में आल्का याग्निक को 30 लाख रू का भुगतान दिया गया है। अल्का याग्निक ने मात्र 13 गाने दर्शको सुनाए। उनका एक गाना 2.5 लाख रूपए का शहर वासियो के कानो में गया। शहर को यह उत्सव पसंद नही आया। बात सीधे-सीधे करते है उत्सव खुशी में सुहाना लगता है। लेकिन मातम में नही .......इस समय तो हम शोकाकुल है कि हमारे पितामह का हमे पता नही है....... जिस पितामह ने इस शहर को बसाया, आजादी से पूर्व इस शहर को देश के चुनिंदा शहरों में गिना जाता था। उस शहर के वासियो के चेहरो पर आज इस शहर के हालत को देखते हुए मातम है और ऐसे मातम में ये उत्सव कैस। 

इस समय शहर की संस्कृति में कट्टी कल्चर समा गया है। लोग पानी के लिए जगराता कर रहे है। आजादी के बाद यह शहर पेयजल संकट के निवारण के लिए लड़ाई लड़ रहा है। और हम सिर्फ उत्सव के नाम पर 80 लाख रूपए फूंक रहे है। हम उत्सव और निर्माण के विरोध का नही है लेकिन पैसे की बर्बादी के विरोध में अवश्य है। अस्सी लाख रूपए खर्च करके इस शहर को बसाने वाले माधौ महाराज का शानदार म्यूजियम बनाया जा सकता था। शहर के किसी तालाब को अहमदाबाद में बने काकरिया लेक जैसा डवलप किया जा सकता था। 

इस कारण है आवश्यक है माधौ महाराज का म्यूजियम
मुझे जंगल से शहर की ओर ले जाने वाले पितामह माधौ महाराज इस शहर के रूप में बसाया था। जब मप्र में नहीं संपूर्ण भारत में एक विकसित शहर के रूप में पहचान होती थी लेकिन अब भारत तो छोडो इस संभाग का सबसे पिछडा शहर है यह शिवपुरी। 

कैलाश वासी माधौ महाराज ने मैसूर रियासत के इंजीनियर जो उस समय के विश्व प्रसिद्व इंजीनियर थे, उन्है मेरा डवलपमेंट की जिम्मेदारी दी थी, इंजीनियर विश्ववरैया की सोच ने आजादी से 50 साल पूर्व आजादी से 50 साल बाद तक की सोच में विकसित किया था। माधौ महाराज शिवपुरी के संस्थापक हैं। जंगल में बसे भील आदिवासियों के एक गांव को उन्होंने ना केवल शहर बनाया परंतु उस समय का सबसे बेहतरीन शहर बनाया। सर्वसुविधा सम्पन्न शहर। जहां सडकें थीं, पेयजल के भंडार थे, खुला वातावरण, स्वच्छ पर्यावरण, रेल यातायात और वो सबकुछ जो उस जमाने में कल्पना से भी बाहर हुआ करता था।

सन् 1915 में जब लगभग पूरा का पूरा देश बैलगाडीं से सफर करता था। देश के कई बड़े शहरों से लोग यहां बसने के लिए चले आए थे, आज भी उनकी दूसरी या तीसरी पीढ़ी के लोग यहीं रह रहे हैं। आज शहर का मैन चौराहे से शहर के पितामह गायब है। आज की नई पीढी ने सिर्फ माधौ महाराज का नाम सुना होगा। चौराहे पर उनकी मूर्ति देखी होगी। लेकिन उनकी सोच और शिवपुरी शहर को गांव से विकसित शहर बनाने की यात्रा से वह रूबरू नही है। अगर शहर में पर्यटन का बढावा देना है तो सबसे पहले पर्यटन की सोच से इस शहर को बसाने वाले पितामह का म्यूजियम अती आवश्यक है।